भारत, खेती के साथ-साथ पशुधन आर्थिक सुदृढ़ता का भी सूचक है। पशुधन (गाय, भैंस, भेड़, बकरी) भी देश की आर्थिक व्यवस्था का एक घटक है। दुनिया में मवेशियों की कुल 231 नस्लें हैं, जिनमें से 26 भारत में हैं। जिनमें से 5,54,765 मवेशी लखनऊ जिले में पाए जाते हैं जिनमे से 2,74,625 भैंस है । दुधारू पशुओं में भैंस जाति का उद्भव स्थान भारत है। वर्तमान-समय की भैंसे उत्तर-पूर्वी हिस्सों में विशेष रूप से असम में पाए जाने वाली प्रारम्भिक ‘अर्नी’ नाम की भैंस के वंशज हैं। भैंस के दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है। भारत के कई राज्यों में गाय की अपेक्षा भैंस को पाला जाता है, क्योंकि आज भी भैंस के दूध व घी को प्राथमिकता दी जाती है। विश्व में भैंसों की कुल संख्या की आधी आबादी भारत में पाई जाती हैं। देश की श्वेत क्रांति में भारतीय मूल की भैंसो का बहुत योगदान है, चलिए आज हम आपको बताते हैं भारत की मूल भैंसो की प्रमुख 7 किस्मों के बारे में।
1. मूर्रा : मूर्रा नस्ल रोहतक, हिसार और हरियाणा के सिंध, पंजाब के नाभा और पटियाला जिलों के साथ-साथ दिल्ली राज्य के दक्षिणी भाग में पाई जाती हैं। इस नस्ल की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक ठोस घुमावदार सींग हैं। दूध में वसा की मात्रा लगभग 7-8% होती है, जबकि औसत दूध उत्पादन 1,500 से 2,500 किलोग्राम प्रति लैक्टेशन के बीच होता है।
2. सूरती: सूरती नस्ल गुजरात के कैरा और बड़ौदा जिलें में पाई जाती है। सूरती भैंस मध्यम आकार के साथ ही विनम्र स्वभाव की होती हैं। औसत दूध उत्पादन 1,500 - 1,600 किलोग्राम प्रति लैक्टेशन होता है। इस नस्ल की ख़ासियत यह है कि दूध में वसा का प्रतिशत बहुत अधिक होता है, यह आम तौर पर लगभग 8-12% होता है।
3. जाफराबादी: जाफराबादी गुजरात के कच्छ और जामनगर जिले के गिर वनों में पाई जाती हैं। इसका वजन 800 किग्रा तक हो सकता है और इस नस्ल के सींग भारी होते हैं। जाफ़राबाड़ी का दूध उत्पादन औसतन 1,000 से 1200 किलो प्रति लैक्टेशन होता है।
4. भदावरी: इसे "इटावा" के नाम से भी जाना जाता है, और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में फैले यमुना, और चंबल नदियों की खाड़ी में ये भैंसे पायी जाती हैं। इसके दूध में वसा की मात्रा 6 से 12.5% के बीच होती है।,
5. मेहसाना: मेहसाना नस्ल को सुरती और मुर्रा के बीच क्रॉस-प्रजनन से विकसित किया गया है। मुर्रा की तुलना में इसके सींग कम घुमावदार और अनियमित होते हैं, तथा ये एक लैक्टेशन अवधि में 1,200-1,500 किलो दूध का उत्पादन करती हैं।
6. नागपुरी: यह नस्ल मुख्यत: महाराष्ट्र के अकोला, अमरावती और नागपुर जिले में पायी जाती है। इसे इलिचपुरी या बरारी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक लैक्टेशन अवधि में औसतन 700-1200 किलो दूध देती है।
7. नीली रावी: नीली रावि का जन्म स्थान पंजाब के फिरोजपुर जिले की सतलज घाटी में और अविभाजित भारत के साहिल (पाकिस्तान) में है। यह औसतन 1600-1800 किलो प्रति लैक्टेशन दूध देती है और दूध में वसा की मात्रा 7 प्रतिशत होती है।
1.https://www.influxlipids.com/single-post/2017/03/23/7-Important-Breeds-of-Indian-Buffaloes
2.https://en.engormix.com/dairy-cattle/articles/buffalo-breeds-in-india-t35502.htm
3.http://dairyknowledge.in/section/buffalo-breeds
4.http://dcmsme.gov.in/dips/2016-17/DIP%20Lucknow%20RK%20DD%20(IMT)%20%2003.06.2016.pdf
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.