भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाति, भूगोल, जलवायु और सांस्कृतिक परंपराओं के आधार पर वस्त्रों की भी काफ़ी भिन्नता है। यहाँ के वस्त्रों में भारतीय कढ़ाई, प्रिंट (Print), हस्तशिल्प, सजावटी, वस्त्र पहनने की शैलियों की विस्तृत विविधता शामिल है। भारत के पारंपरिक कपड़ों मे पश्चिमी शैलियों का मिश्रण भी हमें देखने को मिलता है। भारत में भारतीय कढ़ाई सबसे स्थायी कलात्मक परंपराओं में से एक है। यह भी क्षेत्र और वस्त्रों की शैली में भिन्न होती हैं। भारतीय कढ़ाई की बात हो रही हो और लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई का ज़िक्र ना हो, ऐसा संभव नहीं है।
उत्कृष्ट और जटिल चिकनकारी कार्य के लिए लखनऊ भारत का मुख्य केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी नूर जहां द्वारा इसे भारत में पेश किया गया और मुगल साम्राज्य के दौरान ही इसने लोकप्रियता हासिल की। इसमें मलमल, रेशम, शिफॉन, नेट इत्यादि जैसे विभिन्न प्रकार के कपड़ों में हाथ से एक नाज़ुक और कलात्मक रूप से कढा़ई की जाती है।
आम तौर पर एक पूरे पैटर्न (Pattern) में विभिन्न लखनवी चिकनकारी कढ़ाई का संयोजन होता है। मूल रूप से इसमें 35 प्रकार की कढ़ाई होती हैं, और 6 से 8 प्रकार की चिकनकारी कढ़ाई 90% महिलाओं द्वारा होती है। और वहीं दूसरी ओर लगभग 35 प्रकार की पूरी श्रृंखला केवल कुछ महिलाओं द्वारा ही की जाती है, जिन्हें 'मास्टर कलाकार या कारीगर' के रूप में मान्यता प्राप्त है।
चिकनकारी में कढ़ाई के टांकों के प्रकार कुछ इस तरह हैं –
टेपचि, राहत, बनारसी, फंदा, जाली, तुर्पाई, दर्ज़दारी, पेचानी, बिजली, घसपट्टी, हथकड़ी, बंजकली, साज़ी, कपकपी, मदराज़ी, ताजमहल, ज़ंजीर, कंगन, धनिया-पट्टी, रोज़न, मेहरकी, चनापट्टी, बालदा, जोरा, कील कंगन, बुलबुल आदि।
मुगलों और नवाबों की अवधि में इसके सुनहरे सालों के बाद, ब्रिटिश शासन के दौरान इसमें बड़ी गिरावट देखी गई। उसके बाद औद्योगिक युग के दौरान चिकन ने पहले के समान लोकप्रियता के साथ फिर से उभरना शुरू कर दिया और साथ ही इसे व्यावसायीकरण में भी ज्यादा समय नहीं लगा। बॉलीवुड फिल्म जगत में और साथ ही छोटे डिजाइन (Design) उद्यमों ने राष्ट्रीय स्तर पर चिकनकारी कार्य के सम्मान और प्रशंसा की वापसी में अपना बड़ा योगदान दिया। इस प्रकार, निस्संदेह, लखनऊ चिकन की विविधता में आज पहले की तुलना से और भी अधिक संपन्न है। आज यह सामान्य शहरी जनता, उच्च वर्गों, और बॉलीवुड और हॉलीवुड की हस्तियों में समान रूप से प्रचलित है।
संदर्भ :
1. http://sonamsrivastava.blogspot.com/2011/04/chikankari-not-just-embroidery.html/
2. http://chikankaari.com/the-history-behind-chikankari-and-types-of-stitches/
3. http://blog.myne.in/post/41453379850/types-of-stitches-in-chikankari
4. https://www.utsavpedia.com/motifs-embroideries/murri-and-phanda-stitch/
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