हिन्दी सिनेमा की शुरुआत राजा हरीश चंद्र पर बनी एक फिल्म से हुई थी। तब से अब तक सिनेमा के माध्यम से विभिन्न कलाओं का विकास हुआ है। संगीत, नृत्य, काव्य-कला, आदि कलाओं के विकास में भी सिनेमा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, चूंकि सिनेमा मनोरंजन का माध्यम है। हमारी फिल्में ना केवल एक व्यक्ति की कहानी को दिखाती हैं बल्कि एक स्थान से संबंधित कला और संस्कृति को भी जन साधारण तक पहुंचाती हैं। ऐसी ही हमारे फिल्म जगत की तीन फिल्में हैं जो लखनऊ से जुड़ी हुई हैं, और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यहां की जीवन शैली, संस्कृति, तथा भाषा को दर्शाती हैं।
उन्हीं में से पहली फिल्म है ‘उमराव जान’। यदि उमराव जान का नाम आये और तब लखनऊ का ज़िक्र न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। 1981 में बनी उमराव जान, मिर्ज़ा मुहम्मद हादी रुस्वा के उपन्यास ‘उमराव जान अदा’ पर आधारित है। यह फिल्म लखनऊ के नवाबी अंदाज़, मुशायरों और शायरियों को प्रदर्शित करती है। इस फिल्म के गीतों को अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान ने लिखा था, जिन्हें ‘शहरयार’ नाम से भी जाना जाता है। शहरयार का जन्म 1936 में बरेली के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उन्होनें 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता उमराव जान के गीतों ‘इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं’ और ‘दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये’ से मिली। उन्हें वर्ष 2008 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।
‘शतरंज के खिलाड़ी’ फिल्म 1977 में बनी थी। यह फिल्म मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी पर आधारित है, तथा इस फिल्म का निर्देशन प्रसिद्ध बांग्ला फिल्मकार सत्यजित राय ने किया था। इसकी कहानी लखनऊ तथा अवध के नवाब वाजिद अली शाह के साम्राज्य के दो समृद्ध नवाबों मिर्ज़ा सज्जद अली (संजीव कुमार द्वारा निभाया गया) और मीर रोशन अली (सईद जाफरी द्वारा निभाया गया) के इर्द-गिर्द घूमती है। ये दोनों नवाब शतरंज खेलने में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें अपने शासन की भी फ़िक्र नहीं रहती थी। जहां इस फिल्म की शुरूआत अमिताभ बच्चन की शानदार आवाज से होती है, वहीं इसका अंत अंग्रेज़ों के अवध पर आधिपत्य के बाद के एक दृश्य से होता है, जिसमें दोनों खिलाड़ी शतरंज अपने पुराने देशी अंदाज़ की बजाय अंग्रेज़ी शैली में खेलने लगते हैं। फिल्म के संगीत के बारे में तो क्या ही कहना। फिल्म में संगीत निर्देशक के रूप में भी सत्यजीत राय ने ही कार्य किया था, तथा फिल्म में एक बड़ा ही अनोखा गीत है ‘तड़प तड़प सगरी रैन गुज़री’ जिसे गाया गया है मशहूर अभिनेता अमजद खान द्वारा। इस गीत को आप नीचे दिए गए वीडियो पर क्लिक करके सुन सकते हैं।
‘लखनऊ सेंट्रल’ एक और ऐसी फिल्म है जो ज़ाहिर तौर पर लखनऊ पर ही आधारित है क्योंकि इसके नाम में ही हमारे लखनऊ का ज़िक्र हो जाता है। यह फिल्म हत्या के आरोप में फंसे एक व्यक्ति के बारे में है, जो लखनऊ सेंट्रल जेल में सज़ा काट रहा है। इस बीच लखनऊ सेंट्रल जेल में एक बैंड प्रतियोगिता का आयोजन होता है जिसमें भाग लेने के लिए यह शख्स एक बैंड बनाता है। यह फिल्म बताती है कि कैसे इस व्यक्ति का जीवन जेल में व्यतीत होता है और कैसे वह इस बैंड को बनाकर संगीत के माध्यम से अपने जीवन को एक नयी दिशा देता है। फिल्म के गानों की बात करें तो वे बेहद आकर्षक और खूबसूरत हैं। फिल्म में एक से अधिक संगीत निर्देशकों ने कार्य किया था: तनिष्क बागची, अर्जुन हरजाई, रोचक कोहली। फिल्म में एक पुराने लोकप्रिय गीत ‘कावाँ कावाँ’ को पुनः जीवित किया गया है जिसे लेख के पहले वीडियो पर क्लिक करके आप सून सकते हैं। साथ ही एक गाना मशहूर गायक अरिजीत सिंह द्वारा भी गाया गया है। फिल्म में कुछ गाने सूफी शैली के गीत की ओर भी इशारा करते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.thehindu.com/arts/shahryar-19362012-the-poet-who-gave-umrao-jaan-her-voice/article2893025.ece#!
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Akhlaq_Mohammed_Khan
3.https://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-fridayreview/shatranj-ke-khilari-1977/article6063082.ece
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Lucknow_Central
5.http://www.musicaloud.com/2017/09/08/lucknow-central-music-review-bollywood-soundtrack/
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