लखनऊ का हैं एक विविध समाज। यहाँ जनगणना(census) 2011 के अनुसार, 67 से अधिक मातृभाषाएं बोली जाती हैं। (लखनऊ के विभिन्न भाषाओं के विवरण के लिए देखिये हमारे पिछले महीने का व्यापक पोस्ट (http://lucknow.prarang.in/1807251608). लखनऊ की विभिन्नता, जिसमे पारसी, सिन्धी, कश्मीरी, मराठी, आदि, यहाँ तक कि चीनी संप्रदायें भी रहती है, की एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है बंगाली संप्रदाय।
ऊपर उल्लेख किए जनगणना के अनुसार, लखनऊ में 14000 के करीब लोगों की मातृभाषा बंगाली है। 1857 के पश्चात, ब्रिटेन के अनुशासन के दौरान यहाँ बंगाली बड़ी संख्या में विस्थापित हुए, और तब से उन्होंने लखनऊ को अपनाया ही नहीं बल्कि यहाँ के ताना-बाना में एक हो गए।
कला के क्षेत्र में लखनऊ में बंगालियों का बहुत बड़ा योगदान है। लखनऊ विश्वविद्यालय के कला महाविद्यालय (Arts College अथवा Faculty of Fine Arts; चित्र में) में बंगाल के प्रसिद्द चित्रकारों ने पढ़ाया व सिखाया है।
सन् 1892 में इस संस्था की शुरुआत हुई थी, जब मूल रूप से यह 'स्कूल ऑफ़ इंडसट्रीअल डिज़ाईन' (School of Industrial Design) के नाम से स्थापित किया गया था। 1925 तक यहाँ की शिक्षा में पश्चिमी यथार्थवाद (Western Realism)पर ज़ोर दिया जाता था। उस वर्ष भारतीय कलाकार शामिल होने लगे और यहाँ के पाठ्यक्रम में भारतीय कला को और अधिक शामिल किया गया। इसी साल,श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर से संमबंधित प्रसिद्द छविकार श्री असीत हल्दार यहाँ के प्रधानचार्य (principal) नियुक्त किये गए। 1956 में श्री सुधीर कष्टगीर ने यह पद संभाला और 1926 में यहाँ श्री बिरेश्वर सेन शिक्षक बनें। यहाँ से पढ़े श्री ललित मोहन सेन ने आगे जाकर राष्ट्रपति भवन को, जो तब वाइसरोय्स हाउस (Viceroy’s House) कहलाता था, और लन्दन के इंडिया हाउस (India House) को अलंकृत की।
संदर्भ:
1. अंग्रेज़ी पुस्तक: 2016. Lucknow ki Rachi Basi Tehzeeb. Sanatkada Publications
2. अंग्रेज़ी पुस्तक: 2016. The Other Lucknow, Vaani Prakashan
3. https://www.telegraphindia.com/1140329/jsp/opinion/story_18129038.jsp
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