भारतीय हस्तकला आज वर्तमान जगत में एक वृहद् क्षेत्र में फैली हुई है। देश भर में विभिन्न स्थानों पर हस्तकला से सम्बन्धित प्रदर्शनियाँ लगायी जाती हैं जो कि भारतीय हस्तकला को प्रदर्शित करती हैं। वर्तमान समय में भारत में कई प्रकार की हस्तकलायें मौजूद हैं और कई कलायें काल के गाल में समा चुकी हैं।
अब यह प्रश्न उठ सकता है कि आखिर आज के इस कम्प्यूटरीकृत युग में कला का क्या महत्व है? कला के महत्व की यदि बात की जाये तो कला मानव जीवन को विकसित करने का एवं इतिहास का एक महत्वपूर्ण साधन रही है। जब मानव आधुनिक होने की जद्दोजहद में लगा था तो हस्तकला ही एक मात्र साधन था जिसके सहारे प्रागैतिहासिक मानव अपने जीवन चक्रण को प्रदर्शित करता था तथा विभिन्न प्रकार के हथियारों का निर्माण भी करता था। पत्थर के बनाये तीर, कुल्हाड़ी, मिट्टी की बनी मूर्तियाँ, गुफा की दीवारों पर की गयी चित्रकारियाँ हस्तकला की ही श्रेणी में आते हैं।
भारत हमेशा से ही हस्तकला का केन्द्र रहा है। यहाँ पर विभिन्न भौगोलिक स्थान पर विभिन्न प्रकार की हस्तकला का विकास हुआ, जैसे:
• महाराष्ट्र की वार्ली, बिहार के मिथिला क्षेत्र की चित्रकारी, बंगाल का पट चित्र, पहाड़ी लघु चित्र कला, राजस्थानी लघुचित्र, भील चित्रकारी आदि।
• तीरूपति, सहारनपुर, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि स्थानों की काष्ठ कला।
• बनारस, लखनऊ, चन्देरी, कोटा, पालघाट, मदुरई, काँचीपुरम आदि की वस्त्र निर्माण कला।
• जयपुर, खुर्जा, चुनार, चिनहट, आज़मगढ, लद्दाख, रोहतक, भुज, कच्छ, सौराष्ट्र, छोटा उदयपुर, रायपुर, आदि स्थानों की मिट्टी के बर्तनों की निर्माण कला।
• लद्दाख (गारा), छोटा नागपुर (असुर, बिर्जा), राजस्थान (गडिया लोहार), हरियाणा (गडिया लोहार), केरल, बिसनपुर, आदि स्थानों की धातु निर्माण कला।
• तमिलनाडु (थंडगोंडनपल्यम, स्वामीमलाई, रामनाथपुरम, तिरुनवेल्ली), केरल, राजस्थान (जयपुर, सवाई माधोपुर, बिकानेर, जैसलमेर), उत्तर प्रदेश (आगरा, मिर्जापुर), उड़ीसा, बिहार (गया), गुजरात आदि स्थानों की पत्थर निर्माण कला।
• रामपुर और लखनऊ की ज़री-ज़रदोज़ी एवं चिकनकारी।
• बिहार, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, असम, अरूणाचल, उड़ीसा, केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आदि स्थानों की चटाई व डलिया बनाने की कला।
• बिहार, लद्दाख, जयपुर, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, आदि स्थानों की आभूषण निर्माण कला।
उपरोक्त लिखित कलाओं के अलावा भी कुछ अन्य हस्त कलायें भारत में विभिन्न स्थानों पर पायी जाती हैं।
इन विभिन्न कलाओं का विकास कई शताब्दियों में हुआ तथा आज वर्तमान में ये अपने इस स्वरूप में आ पहुँची हैं। हड़प्पा काल से सम्बन्धित कांस्य की मूर्तियाँ तथा महाराष्ट्र के दायमाबाद से मिली कांस्य मूर्तियाँ हस्तकला का एक अनुपम उदाहरण देती हैं। बिहार के दीदारगंज यक्षी से लेकर सारनाथ के अशोक स्तम्भ तक, लपाक्षी मंदिर की चित्रकारी से लेकर बृहदेश्वर की ऊँचाई तक हर स्थान पर हस्तकला का ही योगदान है। भारत की भौगोलिक स्थिति यहाँ के भवन निर्माण के साथ-साथ कला को प्रस्तुत करती है।
यह कहना कतिपय गलत नहीं होगा कि वर्तमान के आधुनिक समाज का निर्माण प्राचीनकाल की इन्हीं हस्तकलाओं द्वारा बनायी गयी नींव पर हुआ है।
संदर्भ:
1. भट्टाचार्य, डी.के., 1991. एन आउटलाइन ऑफ़ इंडियन प्रीहिस्ट्री, पलका प्रकाशन
2. धमीजा, जसलीन, 2004. एशियन एम्ब्रायडरी, अभिनव पब्लिकेशन्स
3. अग्रवाल, वासुदेव शरण, 1966. भारतीय कला, पृथ्वी प्रकाशन
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