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जामुन का नाम सुनते ही सभी के मुख पर एक प्रसन्नता आ जाती है, काले-काले रसीले जामुन भला किसे नहीं भाते? जैसे ही गर्मी शुरू होती है, बाजार में आम के साथ जामुन की भी बाहार आ जाती है। थोड़े समय के लिए ही आने वाले जामुन की प्रकृति अम्लीय और कसैली होती है, लेकिन इसका स्वाद खाने में खट्टा मीठा होता है और यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदयक होते हैं। गर्मियों के आते ही लखनऊ में पके हुए गहरे नीले और काले रंग के जामुनों से लदे हुए वृक्षों का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है।
लखनऊ का कुल 4.66 प्रतिशत हिस्सा वनों से घिरा हुआ है, जिसमें शिशम, बबुल, नीम, पीपल, अशोक, खजूर, आम और जामुन प्रमुख हैं। जामुन के पेड़ लखनऊ में बागीचों से लेकर वनों तक आसानी से देखे जा सकते हैं, लखनऊ में यह बड़े पैमाने पर पाया जाता है, ये यहां की वनस्पति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जामुन एक सदाबहार पेड़ है, जामुन का वैज्ञानिक नाम ‘सिजीयम क्यूमिनी’ (Syzygium cumini) है तथा इसका संस्कृत नाम जंबू या महाफला है, अंग्रेजी में इसे ब्लैकबेरी तथा हिंदी में जामुन के नाम से जानते हैं। इसका वृक्ष लगभग 100 फीट लंबा और 12 फीट चौड़ा होता है तथा इसकी पत्तियां 3-6 इंच चौड़ी और 7-15 इंच लम्बी होती हैं।
कहा जाता है कि जामुन के वृक्ष का जिक्र सबसे पवित्र और प्राचीन ग्रंथ गणेश पुराण में मिलता है। भगवान श्री गणेश को अक्सर हाथों में मिठाई तथा जामुन और कपीथा के फल के साथ चित्रित किया जाता है। औषधीय रूप से भी इसका उपयोग विभिन्न देशों में भिन्न भिन्न रोगों से निजात पाने के लिये किया जाता है। जामुन एक अत्यंत आयुर्वेदिक गुणों वाला वृक्ष है, इसकी छाल, फल, बीज तथा पत्तियों में प्रचूर मात्रा में आयुर्वेदिक गुण से भरे होते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न बीमारियों जैसे लू लगना, मधुमेह, पेट की समस्याएं, एनिमिया, मसूड़ों की समस्याएं, लीवर की समस्याएं, पत्थरी, गठीया, त्वचा संबंधित रोग, उल्टी, रक्तस्राव, दस्त, एलर्जी, अस्थमा, खांसी, मुंह और गले से संबंधित समस्याएं आदि से निजात पाने में किया जाता है।
आम के आम और गुठलियों के दाम, यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी, इसका एक उदाहरण जामुन को भी कह सकते हैं, जामुन जितना खाने में स्वादिष्ट होता है उतना ही लाभकारी होता है। जामुन में ग्लूकोज, फ्रुक्टोज एल्कलॉइड (alkaloid), गैलिक एसिड, फाइबर, जल, प्रोटीन, वसा, विटामिन B1, B2, B3, B6, कैल्शियम, लौह, जस्ता, पोटेशियम, सोडियम, फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
अतः एक औषधीय वृक्ष के रूप में हम इसे संरक्षण प्रदान कर लोगों को इसके फायदे के लिए जागरूक कर सकते हैं तथा लंबे समय तक इसके माध्यम से हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।