अरबी लिपि और उर्दू का सम्बन्ध

ध्वनि II - भाषाएँ
19-07-2018 01:07 PM
अरबी लिपि और उर्दू का सम्बन्ध

रामपुर ही नहीं अपितु विश्व के अन्य कई देशों के कई शहरों में उर्दू भाषा बोली या पढ़ी जाती है। यदि देखा जाये तो उर्दू लिपि का मूल अरबी लिपि है। जिसका प्रयोग आज संसार के कई देशों में होता है। इस लिपि का इतिहास ब्राह्मी या लैटिन लिपि जितना पुराना नहीं है परन्तु इस लिपि की ऐतिहासिकता काफी प्राचीन है।

अरबी लिपि से पूर्व मिस्र, सीरिया आदि देशों में यूनानी लिपि चलती थी। उर्दू लिपि के विकास में अरबी लिपि के विकास को देखना अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा। अरबी लिपि का उद्भव किस लिपि से हुआ है इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। माना जाता है कि नबाती व पालीमारी लिपियों से यह लिपि विकसित हुई है। अरबी लिपि की दो प्रमुख शैलियां हैं- ‘नस्खी’ और ‘कूफी’। नस्खी का शाब्दिक अर्थ है नकल उतारना और कूफी नाम मेसापोटामिया में कूफा नगर के नाम पर दिया गया।

सातवीं सदी में मौजूद और भारत में कुतुब मीनार के पास के मकबरे में देखी जाने वाली कूफी लिपि कलात्मक लिपि है, लेकिन वह अरबी भाषा की सभी ध्वनियों को व्यक्त नहीं कर पाती थी और धर्मग्रन्थ कुरान को शुद्ध रूप में लिखना आवश्यक था, इसलिए नस्खी लिपि विकसित की गई। किन्तु यह कोशिश भी अपर्याप्त रह गई। जहां तक भारत का सवाल है, भारत में अंग्रेजी के आने के पहले कूफी (अरबी) लिपि की अनेक शैलियां चल रही थीं, सन् 1028 में लाहौर की टकसाल से निकले सिक्कों पर कूफी (अरबी) में धर्ममंत्र लिखा गया। फिर स्मारकों के लिए इस लिपि का उपयोग होने लगा पर कूफी लिपि कोणात्मक थी। अत: लिखने में कठिन थी। इसलिए धीरे-धीरे यह प्रचलन से बाहर हो गई और नस्ख लिपि लोकप्रिय हो गई, क्योंकि इसके अक्षर गोलाकार थे। अत: इसे लिखना आसान था। उर्दू के लिए भारत में जो लिपि सर्वाधिक प्रचलित हुई, वह पंद्रहवीं सदी से शुरू हुई। ईरान में इसी लिपि को अपनाया गया।

उर्दू लिपि की दो विशेषताएं हैं- एक यह कि अन्य सेमेटिक (Semitic) लिपियों, जैसे हिब्रू, की तरह यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती है और दूसरी यह कि इसके अक्षरों को उन अक्षरों के उच्चारण से अलग नाम दिया गया है। जैसे- अ-आ उच्चारण के लिए अलिफ, ब के लिए बे, ज के लिए ज्रिभ, द के लिए दाल, स के लिए स्वाद और श के लिए शीन अक्षर का प्रयोग किया जाता है। सेमेटिक लिपियों मे 22 अक्षर थे, अरबी में 28 हो गए और जब अरबी लिपि फारसी के लिए अपना ली गई तो इसमें चार चिह्न ‘प’ ‘च’ ‘ज्ह’ और ‘ग’ भी जोड़ दिए गए। जब भारत में यह उर्दू के रूप में प्रचलित हुई तो इसमें ‘ट’ ‘ड’ और ‘ड़’ अक्षर भी जोड़ दिए गए जिससे उर्दू लिपि अब 35 अक्षर की हो गई। कुछ विद्वान इसमें 37 अक्षर मानते हैं।

उर्दू व्यंजन प्रधान लिपि है और स्वर बनाने के लिए ‘जेर’ ‘जबर’ ‘पेश’ आदि अक्षरों का आश्रय लेना पड़ता है। उर्दू लिपि की एक और खासियत स्वरमाला में है। उर्दू में कुछ स्वरों के लिए अक्षर हैं, जैसे-अलिफऐनये आदि कुछ स्वरों के लिए ऊपर नीचे लगाए जाने के चिह्न (‘जेर’ ‘जबर’ ‘पेश’) हैं पर इन चिह्नों का प्रयोग ऐच्छिक रहता है। जैसे उर्दू लिपि में क+स+न लिखे जाने पर उसे कसन भी जा सकता है और कुसन, किसन, किसिन आदि भी पढ़ा जा सकता है। उसी प्रकार ‘व’ के लिए प्रयुक्त होने वाला उर्दू अक्षर (काव) ऊ ओ और औ के लिए भी प्रयुक्त होता है।

संदर्भ:
1. https://goo.gl/eaQuRd
2. https://goo.gl/M5HJmQ
3. https://goo.gl/BVCmtP