आज कितना आसान है ना हमारे लिए कोई भी चित्र किसी कागज़ पर छापना? बस प्रिंटर में कागज़ डालो, एक बटन दबाओ और गरमा गरम छपाई तैयार। परन्तु क्या आप देखना चाहते हैं कि शुरुआती छपाई कैसी होती थी?
पिछले कुछ लेखों में आपने जाना होगा कि शुरूआती छपाई मशीन का आविष्कार गुटेनबर्ग द्वारा जर्मनी में किया गया था तथा इसका निर्माण यूरोप में 14वीं शताब्दी में हुआ था (http://lucknow.prarang.in/1805061268)। इस मशीन को भारत पहुँचने में काफी समय लग गया था। सन 1800 के करीब कलकत्ता में बसे हुए यूरोपीयों ने इस मशीन का आयात भारत में करवाया। भारतीय भाषाओँ जैसे उर्दू, बंगाली और नगरी आदि में किताब छापने के लिए इनके अक्षरों के लोहे से बने सांचे बनवाने पड़ते थे जो काफी महंगे थे। परन्तु चित्रों की छपाई के लिए दो तकनीकों का इस्तेमाल होता था: (1) वुड कट प्रिंटिंग (Wood Cut Printting), (2) लिथोग्रफिक स्टोन प्रिंटिंग (Lithographic Stone Printing)। भारत में लिथोग्रफिक पत्थर उपलब्ध नहीं थे तथा वुड ब्लॉक प्रिंटिंग का इस्तेमाल पहले से भारत में कपड़ों की और भगवान के चित्रों की छपाई के लिए हो रहा था।
दुनिया की पहली सचित्र किताब एक बौद्ध हस्तलिपि थी – ‘दी डायमंड सूत्र’ (संस्कृत: वज्रछेदिका प्रजना पारमिता सूत्र) जो सन 868 में छापी गयी थी तथा इसमें एक बड़ा सा चित्र बुद्ध को वाराणसी के बाहर सारनाथ में उपदेश देते हुए दिखाता है।
भारत की सबसे पुरानी सचित्र किताब कलकत्ता में सन 1816 में छापी गयी थी जिसमें 6 वुडकट चित्र मौजूद हैं। यह सन 1752 की एक बंगाली कविता है जिसका शीर्षक है- अन्नदा मंगल। प्रस्तुत चित्र उसी किताब में से एक है-
संदर्भ:
1. http://www.bl.uk/onlinegallery/sacredtexts/diamondsutra.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Annada_Mangal
3. वुडकट प्रिंट्स ऑफ़ नाइनटीन्थ सेंचुरी कलकत्ता, अशित पॉल
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