संगीत भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे हम विभिन्न स्थानों पर देखते हैं। लखनऊ में संगीत का अपना महत्व है, यहाँ पर ठुमरी, ख्याल आदि प्रकार के संगीत और नृत्य अपनी परम पराकाष्ठा पर पहुंचे थे। संगीत के विभिन्न ऐसे भी रूप पाए जाते हैं जो कि दिन के आधार पर, महीने के आधार पर और ऋतुओं के आधार पर बांटे गए थे। इन सभी संगीतों में से कुछ इस प्रकार से हैं- राग भैरवी, सुबह राग आदि। इन्हीं के आधार पर ऋतुओं पर बसी एक संगीत का रूप है ‘ग्रीष्म राग (संगीत)’। यह संगीत ग्रीष्म काल में गाया जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में यदि हम ऋतुओं पर आधारित संगीत को देखते हैं तो यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अंग हैं। कार्नाटिक शास्त्रीय परंपरा और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के मध्य यदि हम अध्ययन करते हैं तो हमें पता चलता है कि कार्नाटिक शास्त्रीय में लोगों ने भगवान के ऊपर संगीत को ज्यादा आधारित रखा और ऋतुओं पर कम। हिन्दुस्तानी संगीत में वसंत और वर्षा ऋतु को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आइये जानने की कोशिश करते हैं कि ग्रीष्म ऋतु में संगीत किस प्रकार से गाया जाता है?
ग्रीष्म ऋतु और ग्रीष्म गीत को कालिदास के शब्दों में निम्नलिखित रूप से लिखा गया है-
ग्रीष्म महीने में कामिनियाँ धूप लगे कुम्हलाय |
इस ऋतु में वो अगर चन्दन का, अंग में लेप लगाए ||
सूख गया है सरोवर का जल, सूख गयी सरिताएं ||
सूख गए हैं पीपल के दल, मुरझाई हैं लताएँ ||
जाने कहाँ घबरा के छुपी हैं, चंचल आज हवाएं ||
ऊंघ रहे डालों पर पंछी ,पंखों में चोंच छुपाये ||
अंग अंग में आलस छाया, अँखियाँ हैं अकुलानी ||
तन मन को पल भर में बदल दें, ऋतुएं बड़ी सुहानी ||
ये ऋतुएं बड़ी सुहानी ||
अर्जुन सिंह द्वारा लिखित ये ग्रीष्म ऋतु गीत अवधि संगीत को प्रदर्शित करता है-
कुहुकि-कुहुकि कुहकावे कोइलिया,
कुहुकि-कुहुकि कुहुकावे।।
पतझड़ आइल, उजड़ल बगिया,
मधु ऋतु में टुसिआइल फुलुंगिया।
इन हरियर-हरियर पलइन में,
सुतल सनेहिया जगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
खिसिकल मधु-ऋतु, उठल बजरिया,
चुवल कोंच, झर गइल मोंजरिया।
पछिया झरकि चले, तलफे भुभुरिया,
देहिया में अगिया लगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
झुलसि गइल दिन, अउँसी के रतिया
बरसे फुहार रिमझिम बरसतिया।
करिया बदरवा के सजल करेजवा में,
चमकि बिजुरिया डेरावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
उपटि गइल भरि छिछली पोखरिया,
बिछली भइल किंच-किंचर डगरिया।
सूनी बँसवरिया में धोबिनी चिरइया,
घुघवा पहरुआ जगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
टाइल शरद ऋतु उगल अँजोरिया,
दुधवा में लउके नहाइल नगरिया।
सिहरी गइल सखि छतिया निरखि चाँद,
पुरवा झटकि सिहरावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
ठिठुरि शरद ऋतु ओढ़ले दोलइया,
केंकुरी कुहरियाँ में कटेला समइया।
मागल उमिरिया, जड़इया के जगरम
अइसन सरदिया मुआवे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
सरसो-केरइया-सनइया फुलाइल,
झिर-झिर-झिहिर शिशिर-ऋतु आइल।
सलिया गुजरि गइल, तबहूँ ना हलिया,
पुरुब मुलुकवा से आवे कोइलिया।। कुहुकि.....।।
संदर्भ:
1.https://goo.gl/BpVe8o
2.http://mishraraag.blogspot.com/2010/02/ritu-samhaar-of-kalidas-as-raagmaalika.html
3.https://goo.gl/D3uP8k
4.http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-fridayreview/song-of-the-seasons/article8533765.ece
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.