भारतीय दर्शनशास्त्र के 6 मुख्य दर्शन

लखनऊ

 23-06-2018 03:11 PM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

भारतीय दर्शन विशाल और गहरा है। ऋषि व्यास ने वेदों को चार समूहों में- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में व्यवस्थित किया। उन्होंने वेदों को दो वर्गों- कर्म कांड (अनुष्ठान व मंत्र) और ज्ञान कांड (अंतिम भाग) में विभाजित किया। ज्ञान कांड को वेदान्त भी कहा जाता है, यह दार्शनिक हिस्सा है। वेदान्त एक कल्पना और अनुमान नहीं है। वैदिक दर्शन के आधार पर हिन्दू दर्शन के छः विद्यालय या प्रणालियां हैं।

न्याय दर्शन-
इसे तर्कों का शास्त्र कहा जाता है। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ऋषि गौतम इस विद्यालय के संस्थापक थे। उनके अनुसार, वैध ज्ञान प्राप्त करना ही पीड़ा से मुक्त होने का एकमात्र तरीका था। उन्होंने ज्ञान के चार स्त्रोतों- धारणा, अनुमान, तुलना और गवाही की पहचान की।

वैशेषिक दर्शन-
यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास ऋषि कणाद द्वारा स्थापित किया गया था। इसके अनुसार, भगवान की इच्छा सृजन का कारण है, एक आत्मा अपने गुणों और दोषों के अनुसार पैदा होती है।

सांख्य दर्शन-
200 ईसवी में इस विद्यालय की संस्थापना कपिला मुनि द्वारा की गई। इसके अनुसार, अचानक से या एकाएक कुछ भी नहीं बनाया जा सकता है। यह ब्रह्माण्ड, प्रकृति और पुरूष के पारस्परिक संपर्क का परिणाम है। प्रकृति के तीन गुण हैं- सत्व, रजस और तमस। सत्व ख़ुशी का स्रोत है, रजस दर्द का स्रोत है और तमस उदासीनता का स्रोत है।

योग दर्शन-
दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इस विद्यालय की संस्थापना ऋषि पतंजलि द्वारा की गई। उनके अनुसार, ब्रहमांड दो श्रेणियों, प्रकृति और पुरूष के परस्पर मेल का परिणाम है। योग दर्शन व्यावहारिक तरीके से अष्टांग योग अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का समूह है। इसको राजा योग भी कहा जाता है।

पूर्वमीमांसा-
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इस विद्यालय की संस्थापना ऋषि जैमिनी द्वारा की गई। यह वेदों के कर्म कांड पर आधारित है। यह हिन्दू दार्शनिक विद्यालयों में सबसे शुरूआती विद्यालयों में से एक था। इसका मुख्य उद्देश्य वेदों का अधिकार स्थापित करना है।

वेदान्त या पाणिनीय दर्शन-
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में इस विद्यालय की संस्थापना ऋषि पाणिनि ने की थी। यह वेदों के अंतिम भाग अर्थात ज्ञान कांड पर आधारित है, जो उपनिषद हैं। यह ज्ञान के माध्यम से मोक्ष या मुक्ति देता है। वेदान्त के चार उपविभाजन- अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैत और भेदाभेद हैं।


भारतीय दर्शन, दार्शनिक विचारों की कई परंपराओं को संदर्भित करता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दू दर्शन, बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन सहित उत्पन्न होते हैं। भारतीय विचारकों द्वारा एक व्यावहारिक अनुशासन बनाने के लिए भारतीय दर्शनों का मंथन किया जाता है और इसका लक्ष्य हमेशा मानव जीवन में सुधार करना होना चाहिए। भारतीय दर्शन में कुछ ऐसे विद्यालय भी हैं, जो गैर हिन्दू विद्यालयों के नाम से जाने जाते हैं। गैर-हिन्दू विद्यालय अर्थात् नास्तिक विद्यालय, वेदों के अधिकार को स्वीकार नहीं करते हैं। यहां पर ऐसे कुछ विद्यालयों का परिचय दिया जा रहा है-

चार्वाक-
चार्वाक को लोकायत के नाम से भी जाना जाता है। ये एक भौतिकवादी, संदिग्ध, नास्तिक और धार्मिक विरोधी विद्यालय संस्थापक थे। ये ब्रहस्पति सूत्र के लेखक थे। हालांकि मूल ग्रन्थों को खो दिया गया है, लेकिन हमारे द्वारा उन सूत्रों को अन्य विद्यालयों के विचारों की आलोचना के आधार पर समझा जाता है।

बौद्ध दर्शन-
सिद्धार्थ गौतम, जो एक राजकुमार थे, आगे चलकर भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए और इन्होंने बौद्ध धर्म की संस्थापना की। बौद्ध धर्म, एक गैर-आस्तिक प्रणाली है, जो बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है। बौद्ध धर्म में हिन्दू धर्म की तरह ईश्वर में विश्वास नहीं किया जाता, हालांकि यह मुख्य रूप से कुछ हिन्दू दार्शनिक अवधारणाओं को स्वीकार करता है जैसे ‘कर्म’।

जैन दर्शन-
इसके संस्थापक महावीर जैन थे। जिन्होंने जैन दर्शन के केंद्रीय सिद्धान्त स्थापित किए थे। इस धर्मानुसार, जिसके पास अनंत ज्ञान है केवल वे ही सही उत्तर जान सकते हैं और बाकि सब उत्तर का केवल एक ही हिस्सा जान पाऐंगे। यह आध्यात्मिक स्वतंत्रता, समानता और अहिंसा का अनुसरण करता है।

भारतीय राजनीतिक दर्शन-
अर्थशास्त्र का भारतीय राजनीतिक दर्शन में अहम भूमिका है। इसकी शुरूवात मौर्य मंत्री चाणक्य द्वारा की गई। अर्थशास्त्र, राजनीतिक दर्शन के लिए समर्पित सबसे पुराने भारतीय ग्रंथों में से एक है और यह राज्य यातायात और आर्थिक नीति के विचारों पर चर्चा करता है।

संदर्भ

1. https://www.philosophybasics.com/general_eastern_indian.html
2. https://www.advaitamandscience.org/six-schools-of-hindu-philosophy/
3. पहला चित्र – चित्रकार एस. एच. रज़ा
4. दूसरा चित्र – एपिस्टेमोलोजी, लॉजिक, एंड ग्रामर इन इं
डियन फिलोसोफिकल एनालिसिस, बिमल कृष्ण माटीलाल



RECENT POST

  • जानें, प्रिंट ऑन डिमांड क्या है और क्यों हो सकता है यह आपके लिए एक बेहतरीन व्यवसाय
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:32 AM


  • मकर संक्रांति के जैसे ही, दशहरा और शरद नवरात्रि का भी है एक गहरा संबंध, कृषि से
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:28 AM


  • भारत में पशुपालन, असंख्य किसानों व लोगों को देता है, रोज़गार व विविध सुविधाएं
    स्तनधारी

     13-01-2025 09:29 AM


  • आइए, आज देखें, कैसे मनाया जाता है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:32 AM


  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id