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‘ठीक ही तो रहा उनका हम पर राज करना, आखिर हमारा कितना विकास हुआ।’ 20वीं शताब्दी के गौरवीय दिनों में अभी तक इस प्रकार की बातें कुछ लोग द्वारा कही जाती हैं, जबकि आज भी ब्रिटेन और भारत के बीच के रिश्ते से हम बहुत अनजान हैं।
हम अपनी अज्ञानता में अकेले नहीं हैं। एक देश के रूप में, हम ब्रिटिश साम्राज्य की वास्तविकताओं के बारे में बुरी तरह से अशिक्षित हैं। 2016 में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 44% लोगों को ब्रिटेन उपनिवेशवाद पर गर्व था। उसी सर्वेक्षण में पूछा गया कि ब्रिटिश साम्राज्य की अच्छी या बुरी बात क्या थी? 43% लोगों ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य अच्छा था। ज़रूर, हम पर राज करने वालों के लिए वह बेशक बहुत अच्छा था। परन्तु जिन पर राज किया गया उनके लिए शायद इतना अच्छा नहीं था। यह विडम्बना है कि ब्रिटिश साम्राज्य को ट्रान्साटलांटिक (अटलाण्टिक महासमुद्र के उस पार का) गुलाम व्यापार को समाप्त करने का श्रेय दिया गया है- जिन्होंने खुद इसकी शुरूवात की थी। कैसे भूल जाएं कि देश के विभाजन के लिए यही साम्राज्य जिम्मेदार था? जिसके परिणाम स्वरूप 1 करोड़ लोगों का पलायन और 10 लाख लोगों की हत्या हुयी थी। इस साम्राज्य के कारण भारत में अकाल की स्थिति पैदा हुयी थी, जिसके कारण 2.9 करोड़ लोगों की मौतें हुईं। ऐसे में ब्रिटेन और भारत किस तरह साथ-साथ थे।
लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि भारत में रेलों का जाल भी तो अंग्रजों ने ही बिछाया था। शायद, हमें ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में और खुले तरीकों से बात करने की आवश्यकता है और सोचना चाहिए है कि उन्होनें यहां के लोग और जमीनों के साथ क्या-क्या किया था? सच में ऐसे लोग कहेंगे कि हमें रेल की शुरूवात करने के लिए अंग्रेजों का धन्यवाद करना चाहिए। ब्रिटिशों के द्वारा किये गये कार्यों की तुलना करने पर कुछ लोग हमेशा रेलवे को मुद्दा बनाकर सामने रख देते हैं। रेलवे का निर्माण वास्तव में यात्रा के लिए नहीं हुआ था, वो तो सैनिकों और हमारे देश से लूटे साधनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचाने के लिए बनी थीं। लेकिन फिर भी कुछ लोगों का कहना है कि रेलवे के माध्यम से देश में रोजगार लाने के लिए हमें उनका कृतज्ञ होना चाहिए। दिए गए चित्र में हम देख सकते हैं कैसे अंग्रेज़ों द्वारा भारतियों के साथ बर्ताव किया जाता था। चित्र में बंगाल के नवाब टॉम रॉ नाम के अंग्रेज़ को गले लगाने आते हैं परन्तु टॉम उस बर्ताव को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं करता।
टोनी मॉरिसन ने एक बार कहा था कि ’’नस्लवाद का एक बहुत अहम् कार्य है, और वो है विचलित करना। यह आपको अपना कार्य करने से रोकता है। हकीकत में यदि मैं ब्रिटिश साम्राज्य की बुराईयों का जिक्र करता हूं, तो दूसरा कोई मुझे अन्य साम्राज्य की भयावहता और क्रूरता के बारे में उदाहरण देगा। यदि मैं उन लोगों को बताता हूँ कि चर्चिल बंगालियों की भुखमरी का अपराधी है, तो कोई अन्य व्यक्ति किसी और तोलना को लेके बैठ जाएगा। यह हमें ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में महत्तवपूर्ण राष्ट्रीय वार्तालाप करने से रोकता है।
विभाजन के बारे में गुरिन्दर चड्ढा की फिल्म के एक दृश्य में जिन्ना और नेहरू बहस कर रहे हैं और माउंटबेटन पहली बार देश को विभाजित करने का सुझाव देता है, जो दोनों नेताओं को बहस करने से रोक देता है। कुछ लोग कहेंगे कि ‘अब यह अच्छी कूटनीति है’। एक निर्णय जो लाखों लोगों की मौत और विस्थापन का कारण था, वह अच्छी कूटनीति कैसे हो सकती है। अंग्रेजों की तरफ कृतज्ञता की दिशा में यह चलन रोकने की जरूरत है। साथ ही साथ हमें उपनिवेशवाद की विरासत और इसके बारे में कैसे बात करें, इस सन्दर्भ में गहराई से समझने और विचार करने की आवश्यकता है। अन्यथा हम साथ-साथ नहीं बढ़ सकते हैं। अगर यह वार्तालाप शुरू करने में हमारी मदद करता है, तो हाँ मान लेते हैं कि हम रेलवे के लिए अंग्रेजों के आभारी हैं। परन्तु यह वार्तालाप शुरू करना और इस पर विचार-विमर्श करना ज़रूरी है।
संदर्भ:
1.https://www.theguardian.com/lifeandstyle/2018/may/06/no-im-not-grateful-for-colonialism-and-heres-why
2.चित्र – टॉम रॉ, दि ग्रिफ्फिन: अ बर्लेस्क पोएम, 1828