‘प्राण’, यह नाम आते ही हमारे समक्ष एक ऐसा किरदार खड़ा हो जाता है जिसने हिंदी सिनेमा जगत को एक नयी पहचान दिलायी थी। प्राण का योगदान सिनेमा जगत में भुलाया नहीं जा सकता है। हिंदी सिनेमा जगत का योगदान उर्दू भाषा के उत्थान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। रामपुर उर्दू भाषा के गढ़ के रूप में जाना जाता है और यहीं से प्राण की शिक्षा दीक्षा हुयी है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि प्राण जो हिंदी और उर्दू के लच्छेदार डायलाग बोलते थे वो रामपुर की ही देन थी।
प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को दिल्ली के एक सिकंद परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री केवल कृष्ण सिकंद एक प्रसिद्ध सिविल ठेकेदार थे। प्राण की शिक्षा मेरठ, कपूरथला, उन्नाव, देहरादून और रामपुर में हुयी थी। रामपुर के ही हामिद स्कूल से प्राण ने मेट्रिक की थी। शुरुआत में प्राण एक पेशेवर फोटोग्राफर बनना चाहते थे और वे एक प्रशिक्षु के रूप में ए. दास एंड कंपनी में शामिल हो गए। शिमला में ही पहली बार प्राण ने अभिनेता के रूप में काम किया। उन्होंने मंच पर मदन पुरी की रामलीला में सीता की भूमिका का निर्वहन किया था। कालांतर में उन्होंने एक पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ में खलनायक के रूप में कार्य किया था। प्राण उन चुनिन्दा व्यक्तियों में से थे जो नायक से खलनायक बने थे। उन्होंने नूर जहाँ के साथ नायक के रूप में भी ‘खानदान’ फिल्म में काम किया। उनकी बुलंद आवाज और उर्दू-हिंदी के लच्छेदार प्रयोग का ही फल था कि प्राण हिंदी सिनेमा जगत में अमर हो गए।
‘जंजीर’ फिल्म में प्राण द्वारा अति विशिष्ट उर्दू भाषा का प्रयोग किया गया था जिसे सबने सराहा। उर्दू आज के समय में एक मृत प्राय भाषा के रूप में जानी जाती है लेकिन हम जाने-अनजाने में रोज उर्दू के अनेक शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे शख्स, ख़बरें, अदालत आदि। ये भाषा हमारे समाज में एक काल में बड़े पैमाने पर बोली जाती थी। समय के साथ-साथ यह भाषा काल कवलित हो गयी। दिए गए चित्र में रामपुर के हामिद स्कूल को प्रदर्शित किया गया है, यह चित्र किसी अनजान फोटोग्राफर द्वारा सन 1911 ईसवी में लिया गया था। यह इमारत इस्लामिक, हिन्दू व अंग्रेजी वास्तुकला के मिश्रण से बनायी गयी थी। यह वो दौर था जब पोस्टकार्ड व फोटोग्राफी एक नए शौक और व्यापार के रूप में ऊपर उठ रहे थे। हो सकता है यही कारण रहा हो कि प्राण भी एक फोटोग्राफर बनने की इच्छा रखते थे।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Pran_(actor)
2. http://indianexpress.com/article/opinion/columns/finding-the-lost-urdu/
3. http://www.frontline.in/arts-and-culture/cinema/hindi-films-saved-urdu/article5185078.ece#test
4. https://www.imdb.com/name/nm0695199/bio
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