हम जितना सोचते हैं, मनुष्य उससे कहीं अधिक गर्मी बर्दाश्त कर सकता है। पृथ्वी पर प्रकृति में 57 डिग्री (सेल्सियस) से अधिक का तापमान अवलोकित नहीं हुआ है। इतनी गर्मी कैलिफ़ोर्निया की ‘मृत्यु घाटी’ में होती है। मध्य एशिया सोवियत संघ का सबसे गर्म स्थान माना जाता है, जहाँ 50 डिग्री से अधिक तापमान नहीं होता।
ऊपर बताये गए तापमान छाया में नापे गए हैं। मौसम विशेषज्ञों की दिलचस्पी धूप में नहीं, छाये में नापे तापमान के साथ होती है। बात यह है कि हवा का तापमान सिर्फ छाया में रखा गया थर्मामीटर ही बता सकता है। यदि उसे धूप में रखा जाएगा, तो वह सूर्य-किरणों से गर्म हो कर परिवेशी हवा के तापमान से अधिक दिखाने लगेगा; उसका पारा हवा की तापीय-अवस्था निर्धारित करने में कोई सहायता नहीं देगा। इसलिए धूप में रखे हुए तापमान का पठन करके मौसम को गर्म करार करना कोई मानी नहीं रखता।
ऐसे प्रयोग भी किये गए थे, जिससे निर्धारित हो सके कि कौन सा अधिकतम तापमान मानव-शरीर बर्दाश्त कर सकता है। पता चला कि शुष्क हवा में यदि शरीर धीरे-धीरे गर्म किया जाये, तो वह पानी के उबलने का तापमान (100 डिग्री सेल्सियस) ही नहीं, उससे कहीं अधिक ऊंचा तापमान (160 डिग्री सेल्सियस तक) सहन कर सकता है। यह सिद्ध किया ब्लैकडेन और चेंट्री नामक अंग्रेज भौतिकविदों ने, जो प्रयोग के लिए डबल रोटी बनाने की बेकरी में भट्टी जला कर घंटों व्यतीत किया करते थे। कमरे की हवा में अंडा उबाला जा सकता था, पर लोगों का वहाँ बाल-बाँका नहीं होता था’।
इस सहनशीलता का कारण क्या है? यही कि व्यवहारतः हमारा शरीर इस तापमान का एक अंश भी नहीं ग्रहण करता; वह अपना साधारण तापमान सुरक्षित रखता है। गर्मी के विरुद्ध उसके संघर्ष का साधन है पसीना बहाना। पसीने का वाष्पीकरण हवा की उस परत का अधिकाँश ताप हजम कर जाता है, जो प्रत्यक्षतः त्वचा के संसर्ग में आती है और इसी से उसका तापमान पर्याप्त कम हो जाता है। इन सब बातों के लिए एक मात्र शर्त यही है कि शरीर गर्मी के स्रोत के साथ प्रत्यक्ष संसर्ग में न आये और हवा शुष्क हो।
कई बार अधिक तापमान भी बिना किसी कष्ट के सहन हो जाता है, पर कम तापमान सहन नहीं हो पाता। कारण यही है कि कम तापमान में भी अधिक आर्द्र हवा हो तो वह सहन नहीं होगी क्योंकि पसीने के वाष्पीकरण में दिक्कत आएगी लेकिन अधिक तापमान में यदि हवा शुष्क हुई तो पसीने का वाष्पीकरण आसानी से होगा और गर्मी सहन कर ली जाएगी।
1. मनोरंजक भौतिकी, या. इ. पेरेलमान
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