बुलबुल को एक गायक पक्षी भी कहा जाता है। यह पूरे भारत में पायी जाती है तथा विश्व भर में इसकी कुल 1700 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। बुलबुल में दो अत्यंत महत्वपूर्ण बातें पायी जाती हैं पहली, कि ये लड़ने की शौकीन होती हैं और दूसरी कि, नर बुलबुल ही गीत गाते हैं। बुलबुल कद में गौरैया से बड़ी होती है तथा इनकी बनावट सुन्दर होती है। कई बुलबुलों के सर पर एक त्रिकोण बना हुआ होता है। ये पंक्षी काले रंग के होने के बाद भी चित्त को मनोरंजित करने वाले होते हैं। इनकी दुम के नीचे का भाग सुर्ख रंग का होता है जो कि इनकी सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है। ये भोजन में फल-फूल व कीड़े मकोड़ों का सेवन करते हैं। ये पक्षी घास फूस के घोसलों में रहते हैं तथा इनका घोसला अति साधारण होता है। इनका घोसला टहनियों आदि से लटकता हुआ दिखाई देता है। ये आमतौर पर 2 से 4 अंडे तक देती हैं, इनका अंडा हल्का गुलाबी सफ़ेद रंग का होता है तथा इनके अण्डों पर लाल या नीलेपन से युक्त कत्थई रंग के धब्बे पड़े होते हैं। ये सफाई पसंद पक्षी होते हैं जो अपने घोसलों का ख़ास ख्याल रखते हैं। बुलबुल को लोग पालना भी पसंद करते हैं, ये पिंजरे आदि में नहीं रहती बल्कि पालने वाले के हाथों या कन्धों पर बैठती हैं। प्राचीन काल से ही बुलबुल को पालने का शौक चले आ रहा है। राजा महाराजा आदि बुलबुल को लड़ाने का कार्यक्रम रखा करते थे और दूर-दूर से लोग इनकी लड़ाई देखने आया करते थे। अवध के नवाबों को बुलबुल को लड़ाने का शौक था। बुलबुल की कई उपजातियां पायी जाती हैं जिनमें से 22 किस्म के बुलबुलों का जिक्र एलन ह्यूम ने किया है। भारत में पायी जाने वाली कुछ प्रसिद्द बुलबुल निम्नलिखित हैं-
1. गुलदुम बुलबुल
2. सिपाही बुलबुल
3. मछरिया बुलबुल
4. पीला बुलबुल
5. कांगड़ा बुलबुल
एक अन्य बुलबुल भी भारत व अन्य देशों में पायी जाती है जिसका नाम है शाह बुलबुल। इस बुलबुल की पूँछ अत्यंत लम्बी होती है तथा ये प्रवास करती हैं। भारत के विभिन्न कवियों ने बुलबुलों के ऊपर अपनी कवितायेँ भी लिखी हैं जो इनकी महत्ता को प्रदर्शित करती है। भारत में पायी जाने वाली आम बुलबुल 23 सेंटी मीटर की होती हैं और ये बिलकुल काले रंग की होती हैं तथा इनकी दुम के नीचे कुछ सफ़ेद या लाल रंग पाया जाता है। इसके अलावा अन्य कई बुलबुल भी भारत में पाई जाती हैं जिनमें रंग और आकार का फर्क देखा जा सकता है। बहुतायत में पायी जाने वाली बुलबुल को ही सिपाही बुलबुल के नाम से जाना जाता है। राम प्रसाद बिस्मिल ने इसी बुलबुल को मद्देनजर रखकर कई गजलों का लेखन किया था।
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