सनातनी धर्म में कई वृक्षों का विवरण हमें देखने को मिलता है। उन्ही वृक्षों में से एक है पारिजात का पेड़। पारिजात के वृक्ष का विवरण हमें विभिन्न पुराणों और महाकाव्यों में दिखाई दे जाता है। हरिवंश पुराण में पारिजात वृक्ष का विवरण मिलता है, साथ ही साथ महाभारत में भी इस वृक्ष का विवरण दिखाई देता है। वक कथा के अनुसार, पारिजात नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी जो सूर्य से अथाह प्रेम करती थी परन्तु सूर्य ने पारिजात को स्वीकार नहीं किया जिस बात से खिन्न होकर राजकुमारी ने आत्महत्या कर ली, जिस स्थान पर राजकुमारी ने आत्महत्या की थी वहीँ पर एक वृक्ष उगता है जिसे पारिजात नाम से जाना गया।
एक अन्य कथा के अनुसार पारिजात वृक्ष का जन्म सुर और असुरों द्वारा किये जा रहे समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। यह वृक्ष समुद्रमंथन से निकला था और इसको इंद्र द्वारा नंदन कानन अर्थात स्वर्ग में लगाया था। इस वृक्ष को बाद में कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के लिए इंद्र से छीना और रानी के बगीचे में लगाया। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस वृक्ष के सामने या छाया में बैठकर ध्यान लगाने या मन्नत मांगने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
परिजात वृक्ष के पुष्प में एक ख़ास बात होती है, यह अत्यंत सुन्दर दिखने वाला सफ़ेद रंग का पुष्प होता है जो कि समय के साथ साथ सूखने पर सुनहरे रंग में ढल जाता है। इस वृक्ष का वानस्पतिक वैज्ञानिक नाम अडेनसोनिया डिजीटाटा है। इस वृक्ष का सम्पूर्ण जीवन काल 1000 से 5000 वर्ष का है। बाराबंकी जिले (जो कि लखनऊ के पास स्थित है) के किन्तुर नामक स्थान का पारिजात वृक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा यह देश विदेश में मशहूर है। यह वृक्ष भारत सरकार द्वारा संरक्षित है तथा किवंदंतियों की मानें तो यह वही वृक्ष है जिसका उल्लेख महाभारत में दिखाई देता है। पारिजात वृक्ष के तने की मोटाई लगभग 50 फीट और उंचाई करीब 45 फीट की होती है। इसे अक्सर उल्टा पेड़ भी माना जाता है क्योंकि इसका तना काफी मोटा होता है और शाखाएँ छोटी और पतली (जड़ों जैसी)। यह माना जाता है कि इस वृक्ष की शाखाएं टूटती या सूखती नहीं हैं परन्तु समय के साथ-साथ सिकुड़ जाती हैं। लखनऊ के प्राणी उद्यान परिसर में परिजात वृक्ष उपस्थित है जिसे कि भारतीय वानस्पतिक अनुसंधान केंद्र द्वारा पहचाना गया था। एक ही परिसर में कुल 4 वृक्ष मौजूद हैं जो अपने में किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं।
पारिजात की ये प्रजातियाँ जो लखनऊ में स्थित हैं सन 1832 में अरब व्यापारियों द्वारा यहाँ लायी गयी थीं। पारिजात वृक्ष का महत्व यदि देखा जाए तो मात्र यह अध्यात्म से ही नहीं जुड़ा हुआ है बल्कि यह वृक्ष औषधीय गुणों वाला भी है। इस वृक्ष में उदर विकार से लड़ने की क्षमता होती है, यह विटामिन और खनिज से परिपूर्ण होता है। इस वृक्ष के बीज को खाया जाता है, मलेरिया आदि बिमारियों में इस वृक्ष के गूदा और छाल का प्रयोग किया जाता है। यह एक वृक्ष लखनऊ संग्रहालय में भी उपस्थित है।
इस वृक्ष को बाओबाब या गोरख इमली के नाम से भी जाना जाता है। यह मांडू में मांडू की इमली के नाम से भी जाना जाता है। लम्बाई और चौड़ाई के साथ यह वृक्ष अपने आप को सभी वृक्षों से अलग प्रस्तुत करता है। इसका पुष्प आकार में 5 से 8 सेंटीमीटर का होता है तथा कालांतर में इसका फल मोटे गोल और लम्बे इमली की तरह दिखाई देता है।
1. https://indiaheritagehub.org/2012/06/16/parijat-the-grand-symbol-of-indian-mythology/
2. https://www.deccanchronicle.com/nation/in-other-news/070517/mahabharata-era-parijat-tree-to-be-cloned.html
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Adansonia_digitata
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