बौद्ध स्थापत्यकला

लखनऊ

 08-05-2018 01:15 PM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

बौद्ध स्थापत्यकला का विकास भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ। इस वास्तुकला के प्रमुखता से तीन प्रकार होते हैं: चैत्य, स्तूप और विहार। पॅगोडा यह स्तूप का उन्नत रूप है।

पहले बौद्ध स्तूप भगवान बुद्ध के शरीर के अवशेष रखने के लिए बनाए गये थे। स्तूप बहुत प्रकार के होते हैं जैसे शारीरिक स्तूप, स्मारक स्तूप, प्रतीक स्तूप, मन्नत-पूर्ती स्तूप आदी।

मान्यता है कि स्तूप दूसरी शती ईसा पूर्व से बन रहे हैं, सिर्फ वक्त के साथ इनके बहुत प्रकार और इनमें बदलाव आये हैं, लेकिन भारत में सबसे पहले स्तूप चौथी शती ईसा पूर्व के हैं।

स्तूप का शब्दशः अर्थ होता है मिट्टी का टीला। सांची, भरहूत, अमरावती यह भारत के सबसे पुराने स्तूपों मे से हैं। कहते हैं स्तूप भगवान बुद्ध का रूप होता है, एक बैठा हुआ बुद्ध जो ध्यानी मुद्रा मे व्याग्रजीन/ सिमहासन पर मुकूट धारण किये बैठा है, उसका मुकुट मतलब स्तूप का शिखर, उसका सर मतलब शिखर के नीचे का चौकोर आकारवाला आधार है, स्तूप का अंग उसका अंग है और सीढ़ियाँ उसके पैर तथा प्रातिपदीका उसका सिमहासन।

विहार मतलब रहने का स्थान। बौद्ध भिक्कू को वर्षावास के वक्त रुकने के लिए ये बनाए गए थे लेकिन समय के साथ वे वस्ती स्थान में तब्दील हो गये, इनका इस्तेमाल बौद्ध धर्म-दीक्षा लेने वाले छात्र आदि की पाठशाला और बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए होने लगा। विहार एक विशाल सभामंडप/ कक्ष अथवा आंगन जैसा होता है जिसके चारों ओर बौद्ध भिक्कू को रहने के लिए छोटे-छोटे कमरे बने होते हैं और बीचोबीच पिछले भाग में मंदिर रहता है जिसमें बहुतायता से बुद्ध मूर्ती अथवा छोटा स्तूप या फिर तो उस पिछली दीवार पर स्तूप अथवा बुद्ध मूर्ती रेखांकीत की होती है। चैत्य का मतलब है मंदिर। यह बौद्ध धर्मियों का मंदिर होता है जिसके बीचोबीच स्तूप रहता है। बहुत बार चारों ओर बड़े स्तंभ घेरे मे खड़े बनाए हुए होते हैं। यहां पर भिक्कू एक साथ अर्चना एवं ध्यानधारणा करते हैं।

बौद्ध वास्तुकला बहुतायता से हमें दुर्गम पहाड़ियों में चट्टानों को काट कर गुफा आदि आकार में बनायी हुई मिलती हैं। पहले तो यह पूरी वास्तुकला बहुत ही सादी और सरल होती थी लेकिन राजाश्रय के साथ और व्यापारी समाज की मदद से ये अलंकारिक और पेचीदा होती गई। व्यापारी समाज के वित्त आश्रय की वजह से बौद्ध श्रेणियों की स्थापना हुई जिस वजह से एक समय बौद्ध भिक्कू और ऊनके विहार तथा मठ बहुत ही संपन्न थे। बौद्ध विहार और चैत्य बहुतायता से व्यापारी मार्गों पर स्थित थे जिस वजह से व्यापारी यहाँ आकर रात को आश्रय लेते थे।

राजाश्रय आदि की वाजह से बौद्ध वास्तुकला और कला कौशल में बहुत अच्छा बदलाव आया। राजा एवं बौद्ध धर्म के धनी आश्रयदाता, विहार और चैत्य की गुफाएँ और स्तूप बनाते वक्त कोई भी कसर नहीं छोड़ते थे। अजंता की गुफाँए, सांची का स्तूप उसका बड़ा उदाहरण हैं।

यह वास्तु बनाते वक्त पहले लकड़ी का ढांचा तैयार किया जाता था फिर बाद में कारीगरों की हाथ सफाई की वजह से सिर्फ पत्थर को ही काटा जाने लागा।

अलग अलग संस्कृतियों का आपस में मिल जाना या उनका एक दूसरे से कुछ ना कुछ अनुसरण करना यह सदियों से चला आ रहा है, फिर वो भाषा हो या कला।

बौद्ध और हिंदू स्थापत्यकला और मूर्तीकला आदि ने भी धर्म की कुछ चीजों का आदान प्रदान किया। बुद्ध को विष्णु का अवतार माना जाता है। वज्रपाणी, पद्मपाणी यह जय-विजय जैसे द्वारपाल की तरह दिखाई देते हैं मगर वे वज्रपुरुष आदि जैसे हैं, नाग और कुबेर ये यक्ष देवता हिंदुओं में भी हैं और बौद्ध धर्म में भी। लकड़ी का ढांचा बनाना और चट्टानों को काटकर वास्तु निर्माण करना यह भी इन दो धर्मों के बीच का आदान प्रदान ही है।

बुद्ध मूर्ती और स्तूप की जो पूजा की जाती है यह भी हिंदू धर्म से ही प्रेरित है, क्यूँकी पहले बौद्ध धर्म में मूर्ती पूजा वर्ज्य थी, इसी करण बुद्ध धर्म में बहुत से प्रवाद आये जैसे हिनयान, महायान, तंत्रयान आदी। जावा, इंडोनेशिया, बाली, तिब्बत, चीन और जापान आदि सब जगहों पर हमें बौद्ध धर्म के विभिन्न प्रकार देखने को मिलते हैं जिनमें अब हिंदू धर्म और उनके भगवान भी शामिल हैं।

मान्यता है कि लखनऊ का पुराना नाम नखलऊ था जिसके तहत भगवान् बुद्ध के नाख़ून यहाँ पर लाकर उसपर स्तूप बनाया गया था। दूसरी कहानी के हिसाब से बुद्धेश्वर चौराहे पर पहले एक बौद्ध मंदिर था तथा लखनऊ में अमावसी बौद्ध विहार था जिससे अमौसी हवाई अड्डे का नाम रखा गया था जिसे आज चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता है।

1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोमी ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी 2. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Buddhist_architecture 3. https://roundtableindia.co.in/index.php?option=com_content&view=article&id=5291:buddhism-in-lucknow-history-and-culture-from-alternative-sources&catid=119&Itemid=132


RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id