घड़ियाँ किसे नहीं अपनी तरफ आकर्षित करती हैं, आज कल सूईं वाली घड़ी से लेकर डिजिटल घड़ी तक का आगमन हो गया है। एक वक़्त ऐसा था जब भारत में विभिन्न स्थानों पर घंटाघरों के निर्माण में प्रयुक्त घड़ियाँ लन्दन से मंगाई जाती थी, पर आज भारत में ही घड़ियों का बड़े पैमाने पर व्यापार होने लगा है। स्विस कलाकार मैक्स बिल आधुनिक आंदोलन के पुनर्जागरण के ज़िम्मेदार पुरुषों में से एक थे। उन्होंने 1962 में कलाई में पहनी जाने वाली घड़ी का निर्माण किया था। मैक्स बिल द्वारा तैयार की गयी मूल घड़ी आज भी बाजारों में मिल जाती है।
मैक्स बिल की कलाई घड़ी एक संग्रह का हिस्सा है जो अभी भी उत्पादन में है। बिल एक वास्तुकार, चित्रकार और मूर्तिकार के साथ ग्राफिक और औद्योगिक रचनाकार थे। उन्होंने 1930 में स्विस स्कूल ऑफ़ ग्राफ़िक डिजाईन में रचना के उद्भव में एक प्रमुख भूमिका निभाई। इनकी घड़ियों की उत्कृष्टता अत्यंत उम्दा थी। भारत में टाईमेक्स और एच.एम.टी. सबसे पुरानी घड़ी निर्माता कंपनी है।
दिल्ली दरबार के समय में रामपुर के नवाब के लिए हीरे जड़ित घड़ी स्विस कंपनी से मंगाई गयी थी, यह घड़ी यूरोपियन चर्च के घंटे की तरह की थी। भारत के राजाओं के लिए यूरोपीय कम्पनियाँ विभिन्न घड़ियाँ बनाती थीं। भारत की आज़ादी के बाद टाइमेक्स और एच.एम.टी. कंपनियों की नीवं पड़ी। एच.एम.टी. घड़ी सबसे लोकप्रिय घड़ियों में से थी तथा इसका पहला संस्करण सन 1961 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने प्रारंभ किया था। यह घड़ी ‘द टाइम कीपर्स टू द नेशन’ के आधार पर कार्य कर रही थी। समय के साथ यह एक आभूषण के रूप में उभरी और कई वर्षों तक सबकी पसंद बनी रही। इसकी जनता प्रकार की घड़ी सबकी प्रिय थी। परन्तु समय के साथ घड़ियों का संसार बदल गया और एच.एम.टी. घाटे में चलने लगी और दस साल तक घाटे में चलने के बाद भारत सर्कार ने 2016 में इस कंपनी पर ताला लगा दिया।
1. http://www.thehindu.com/life-and-style/the-india-watch-story/article20103193.ece
2. https://www.thebetterindia.com/14359/walk-memory-lane-hmts-watches-stop-ticking/
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