बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सनातन धर्म 6ठी शती आते आते अनगिनित पंथों और सम्प्रदायों में बट चुके थे। इसी वक़्त वामचार तथा तांत्रिक तत्त्वज्ञान ने भी इन सभी धर्मों में अपना स्थान बना लिया था और अब वह इनका निहित हिस्सा बन चुका था।
इस समय आदि शंकराचार्य ने इस धार्मिक उलझन की गुत्थी को सुलझाया। उन्होंने सनातन धर्म के अनुयायियों को 6 प्रमुख समुदायों में विभाजित किया:
शैववादी सम्प्रदाय: जो शिव को इष्ट देव मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
वैष्णव सम्प्रदाय: जो विष्णु को इष्ट देव मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
शाक्त सम्प्रदाय: जो देवी (दुर्गा, काली आदि) को इष्ट देव मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
कौमारम/कुमार सम्प्रदाय: जो स्कन्द की पूजा करते हैं।
सौर सम्प्रदाय: यह सूर्य-उपासक होते हैं।
गाणपत्य सम्प्रदाय: यह सम्प्रदाय गणपति को सगुण ब्रह्म के रूप में मानते एवं पूजते है।
इस तरह इस धार्मिक कलह को सुलझाते हुए उन्होंने आगमों को संयोजित किया। आगम धर्म तथा पूजा अर्चना की नियमावली हैं। कुछ धर्म ग्रंथो के अनुसार आगम तीन शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना है, आगदम, गदम और मठम। ‘आगदम’ का मतलब है जो आध्यात्मिक सत्य शिवजी ने सिखाये हैं, यह सत्य उनकी सहचारी ने सुने एवं आत्मसात किये जिसे ‘गदम’ कहते हैं और ‘मठम’ इन सत्यों को ऋषिमुनियों के जरिये लोगों तक पहुँचाने की क्रिया को सूचित करता है। कुछ शैव आगमों के अनुसार आ+ग+म यह हर अक्षर क्रमशः पाश ( सांसारिक चीजों के प्रति आसक्ति), पशु ( जीवात्मा- व्यक्ति की आत्मा) और पति (परमात्मा) का प्रतीक है। आगम ज्ञान, मोक्ष और अहंकार और विषयासक्ति के विनाश का भी प्रतीक है। इस तरह आगमों का उद्देश्य है साधकों को ज्ञान प्राप्ति के तरीके से अहंकार और आसक्ति से दूर जाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाना।
शैव सम्प्रदाय के लोग ज्यादातर कामिक आगम अथवा कारण आगम का अनुसरण करते हैं, वैष्णव पंचरात्र और वैखानस आगम का, कौमार कुमारतंत्र/ कुमारआगम का, गाणपत्य गणपति पुराण का। शाक्त संप्रदाय के आगमों को तंत्र कहा जाता है जिसका मतलब है ‘शरणार्थियों की रक्षा करनेवाला’।
लखनऊ में बड़ी काली मंदिर है जहाँ पर आज भी शाक्त आगम तंत्र का पालन किया जाता है, कहते हैं यहाँ पर भक्त अपनी जिव्हा काट कर रखते थे जो 16 घंटो में वापस उग जाती थी।
इन आगमों और तंत्र शास्त्रों के साथ-साथ कई पुराण भी पूजा-अर्चना के विधि-विधान के बारे में बताते हैं। हर आगम में 4 मुख्य भाग होते हैं जिसे पद कहा जाता है:
1. चर्या पद: इसमें पूजा की विधि के लिए लगने वाले सामान के बारे में बताया होता है, साथ ही कौन से मंत्र, श्लोक अथवा प्रार्थना करनी है यह भी लिखा होता है।
2. क्रिया पद: इसमें पूजा-विधि, यज्ञविधि, अभिषेक तथा उत्सव कैसे किया जाए इस बारे में बताया होता है।
3. योग पद: इस भाग में मन्त्रों को सही तरीके से कैसे पढ़ा जाए एवं योग साधना आदि से मन और शरीर को कैसे स्वस्थ रखा जाए तथा उन पर कैसे काबू पाया जाए इस बारे में लिखा होता है।
4. ज्ञान पद: इसमें मनुष्य को परमात्मा प्राप्ति, सर्वोच्च सच की प्राप्ति कैसे की जाए इस बारे में बताया जाता है। यह एक तरीके का अध्यात्मिक प्रबंध है जिसमें आत्मा, माया, पाश, आसक्ति, शक्ति, पंचतत्त्व (पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश) के बारे में बताया जाता है ताकि वह परमात्मा के नज़दीक जा सके।
आगम और वेदों का रिश्ता आत्मा और परमात्मा की तरह है जिसमें अगर हम वेदों को वृक्ष के तने की उपमा दें तो आगम इस वृक्ष के हरित पर्णावली से भरी डालियों जैसे हैं। सभी आगमों का यह मानना है तथा यह आधारभूत सिद्धांत है कि भगवान एक है और वह परमपुरुष या परमात्मा बन के सभी जीवों में बसता है, जल-स्थल, पाषाण से लेकर परमाणु तक। आगमों के अनुसार सारे देवता उस एक परमोच्च परमात्मा के अनेक रूप हैं। इसे पुरुषवाद अथवा अद्वैत वेदांत भी कहते हैं। अद्वैत का मतलब है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं, दो नहीं और ज्ञान से हमें मोक्ष प्राप्ति इसी जन्म में मिल सकती है यह उसका परम सिद्धांत है।
1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2. https://en.wikipedia.org/wiki/%C4%80gama_(Hinduism)
3. https://www.flickr.com/photos/firozeshakir/1455549354/in/photostream/
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