मंदिर स्थापत्य के प्रकार

लखनऊ

 28-04-2018 01:21 PM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

भारत में आपको हर जगह पर विभिन्न प्रकार के मंदिर देखने को मिलेंगे, कुछ बहुत ही सामान्य घर जैसे होते हैं तो कुछ बहुत अलंकृत। लखनऊ में हमें मुग़लकालीन बहुत सी स्थापत्य शैली देखने मिलती है लेकिन साथ ही यहाँ पर मनकामेश्वर, नागेश्वर शिव मंदिर तक़रीबन 1000 साल पुराने मंदिर भी मौजूद हैं। इन मंदिरों की पुरातन स्थापत्यशैली आज सिर्फ टुकड़ों में ही देखी जा सकती है क्यूंकि यहाँ पर जो जीर्णोद्धार हुए उनमें नए सिरे से मंदिर पुनर्निर्मित किये गए। मनकामेश्वर मंदिर को देखा जाए तो आज भी यहाँ पर कुछ मूर्तियाँ पुरानी शैली में जतन हैं। स्थान एवं स्थापत्य में वास्तुकला परिमाण के बिनाह पर मंदिर स्थापत्य को कुछ प्रमुख प्रकारों में बांटा जाता है: द्राविड़, नागर और वेसर। इनके अलावा भूमिज, कलिंग, हेमाडपंथी, गडग, मारू-गुर्जर, बादामी-चालुक्य यह कुछ प्रकार हैं।

1. द्राविड़ स्थापत्य शैली:
यह मंदिर स्थापत्य शैली दक्षिण भारत में उभरी और विकसित हुई इसीलिए इसे द्राविड़ स्थापत्य शैली कहते हैं, 16वी शती में यह अपने चरम सीमा पर पहुंची। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिल नाडू, और कर्नाटक के साथ-साथ यह शैली उड़ीसा, मध्य प्रदेश और श्रीलंका में भी देखी जाती है। चोल, चेर, काकतीय, पाण्ड्य, पल्लव, गंग, राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसल, विजयनगर संगम आदि ने इस शैली में कई मंदिर बनवाए हैं। 5वी-7वी शती के शिल्पशास्त्रों मायामता और मानसार के अनुसार यह स्थापत्य शैली विकसित हुई थी और इन्ही में लिखे निर्देशानुसार द्राविड़ मंदिर बनाये जाते थे। परंपरागत द्राविड़ी स्थापत्य और प्रतीक बहुतायता से आगमों के अनुसार होते हैं। अलग अलग राज्य-कालों में इस स्थापत्य में थोड़े-बहुत बदलाव आये। इस काल का सबसे खुबसूरत मंदिर बृहदेश्वर मंदिर है जो राजा चोल ने बनाया था। भारत सरकार ने सन 2010 और सन 2013 में इस मंदिर के स्मारक-रूप में 5 रुपये और 1000 रुपये के सिक्के जारी किये थे। इस प्रकार के मंदिर का सबसे निराला लक्षण है गोपुरम और इसका शिखर प्रकार, तथा यह काफी ऊँचे होते हैं और बहुत ही विशाल प्रांगण के साथ बनाए जाते हैं। गर्भगृह के उपर का भाग जिसे विमान कहते हैं सीधा होता है और पिरामिड के जैसे दिखता है इसमें अनेक मंजिलें होती हैं जिसे मंदिर स्थापत्यशास्त्र में ताल कहते हैं। सबसे उपरी हिस्से को शिखर कहते हैं। मंडप पर कोई शिखर नहीं होता तथा यह मंदिर चतुरस्त्र प्रकार के होते हैं। मंदिर के प्रमुख प्रवेशद्वार को गोपुरम कहते हैं और मंदिर के चारों ओर प्राकार भिक्ति होती है, प्राकार दीवार सिर्फ द्राविड़ स्थापत्य में ही ज्यादातर दिखती है। इन मंदिरों में पानी की छोटी टंकी पुष्कर्णी अथवा तालाब रहता है जो मंदिर कार्य के लिए इस्तेमाल होता है तथा स्तंभों से खड़ा एक सभामंड़प भी होता है जो विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

2. नागर स्थापत्य शैली:
यह शैली हिमालय से लेकर विन्ध्य तक दिखाई देती है, यह उत्तर भारत में विकसित हुई थी। बहुतायता से वराहमीर की बृहत्संहिता के अनुसार यह मंदिर बनाए जाते थे। नागर मंदिर में गर्भगृह के सामने अंतराल, मंडप और अर्धमंडप होता है तथा इन मंदिरों में गोपुरम और प्राकार नहीं होते। गर्भगृह और मंडप दोनों पर शिखर होते हैं। शिखरों के प्रकार के अनुसार लतिन, फमसन, शेखरी और वल्लभी यह उप-प्रकार देखे जाते हैं, शेखरी और भूमिज को लतिन के उप-प्रकार माना जाता है।
इस प्रकार के मंदिर के प्रमुख अंग कुछ इस प्रकार हैं:
1. मूल आधार: यह मंदिर की बुनियाद होती है।
2. मसूरक: नींव और दीवारों के बीच का हिस्सा।
3. जंघा: दीवारें।
4. कपोत: स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा, मेहराब।
5. शिखर: गर्भगृह का ऊपरी हिस्सा।
6. ग्रीवा: शिखर का ऊपरी भाग।
7. आमलक: कलश का निचला हिस्सा।
8. कलश: शिखर का सबसे ऊपरी हिस्सा।

नागरी मंदिर बहुतायता से बुनियाद से लेकर कलश तक चतुष्कोण होते हैं। इसके अलावा इन मंदिरों में भोगमंडप भी होते हैं। कंदरिया महादेव मंदिर इस प्रकार का बहुत ही सुन्दर मंदिर है।

3. वेसर स्थापत्य शैली:
वेसर शैली नागर और द्राविड़ मंदिर शैलियों का मिश्रित रूप है जो मध्यकालीन भारत में कल्याणी चालुक्य और होयसल राजाओं ने इस्तेमाल कर मंदिर बनाए। मध्य भारत और दक्षिण भारत में इस प्रकार के बहुत से मंदिर देखे जाते हैं, कृष्णा नदी से लेकर विन्ध्य पर्वत माला के क्षेत्र में यह शैली विस्तारित हुई थी। इसमें मंदिर के शिखर के तालों की उंचाई कम की जाती है जिस वजह से इन मंदिरों की ऊंचाई भी कम होती है। पत्तदकल का पापनाथ मंदिर इस शैली का अच्छा नमूना है।

4. कलिंग स्थापत्य शैली:
यह शैली उत्तरी आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में विकसित हुई थी, रेखा देऊळ, पिधा देऊळ और खाखर देऊळ यह इस मंदिर के प्रकार हैं, देऊळ मतलब मंदिर। रेखा देऊळ और पिधा देऊळ यह विष्णु, सूर्य और शिव के मंदिर होते हैं तथा खाखर देऊळ यह चामुंडा अथवा दुर्ग के मंदिर होते हैं। रेखा में गर्भगृह होता है और पीढ़ा में सभा मंडप और रंग मंडप होता है। भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर और पुरी का जगन्नाथ मंदिर यह रेखा मंदिर के प्रकार हैं। भुवनेश्वर का बेताल मंदिर खाखर प्रकार का है और कोणार्क का सूर्य मंदिर पीढ़ा प्रकार का है। भूमिज, हेमाडपंथी, गडग आदि प्रकार क्षेत्रीय विविधताओं पर आधारित हैं।

1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी
2. https://www.britannica.com/technology/shikhara
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_temple_architecture#Different_styles_of_architecture
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_temple_architecture
5. http://stylesatlife.com/articles/temples-in-lucknow/



RECENT POST

  • जानें, प्रिंट ऑन डिमांड क्या है और क्यों हो सकता है यह आपके लिए एक बेहतरीन व्यवसाय
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:32 AM


  • मकर संक्रांति के जैसे ही, दशहरा और शरद नवरात्रि का भी है एक गहरा संबंध, कृषि से
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:28 AM


  • भारत में पशुपालन, असंख्य किसानों व लोगों को देता है, रोज़गार व विविध सुविधाएं
    स्तनधारी

     13-01-2025 09:29 AM


  • आइए, आज देखें, कैसे मनाया जाता है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:32 AM


  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id