भारत भर के विभिन्न शहरों को किसी एक वस्तु या महत्ता के लिए जाना जाता है जैसे नवाबों का शहर लखनऊ, इमरती के लिए जौनपुर, चंदेरी अपनी साड़ियों के लिए। ठीक उसी प्रकार से अमरोहा को इमामबाड़ों का शहर कहना कतिपय गलत नहीं है। अमरोहा रामपुर से आधे घंटे की दूरी पर स्थित है, अमरोहा में सबसे ज़्यादा शिया सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। यदि अमरोहा में इमामबाड़ों की संख्या के बारे में बात की जाए तो यहाँ पर कुल 52 इमामबाड़े हैं जो शिया संप्रदाय द्वारा बनवाये गए हैं। जैसा कि ज्ञात होता है कि रामपुर, आंवला, बरेली आदि मुस्लिम संप्रदाय के बड़े गढ़ थे तथा यह क्षेत्र रोहिलखंड के क्षेत्र में आता था। जब रोहिलखंड में नवाब का राज था तब दोनों शहरों के शिया सम्प्रदाय के मध्य बहुत से धार्मिक बदलाव आए थे; आज के समय में यह दोनों शहरों के बीच के व्यापार संबंधों को दर्शाता है। अमरोहा और रामपुर शहर में आज बहुत से सुन्नी सम्प्रदाय और हिन्दू सम्प्रय्दाय के परिवार रहते हैं। अमरोहा में बहुत सी अद्भुत ऐतिहासिक इमारतें हैं जैसे-
*मुरादाबादी गेट
*शाहविलायत साहब बिच्छु वाली दरगाह
*वज़ीर उन निसा इमामबाड़ा
इन इमारतों का निर्माण यहाँ पर धार्मिक संस्थानों व अध्ययन के स्थानों के रूप में थी। 1863 के बाद इमामबाड़ों का एक बड़े पैमाने पर अचानक उभरना इस बात का घोतक है कि यहाँ पर बड़े पैमाने पर धार्मिकता का प्रसार हुआ था। यह तथ्य इस बात को भी प्रेषित करता है कि यहाँ पर व्यापर आदि फल फूल रहा था। इमामबाड़ा शब्बीर अली (1868 की स्थापना), इमामबाड़ा शेख अब्दुल्ला और इमामबाड़ा मिस्मत-उल-चाजी (दोनों 1870) और इमामबाड़ा मिस्वत-उल-जिवानी (1880) ये सारे इमामबाड़े कुछ उदाहरण हैं। सईद परिवार और हकानी आदि का अमरोहा में इमामबाड़ों के निर्माण में बड़ा योगदान था। जैसा कि सभी इमामबाड़ों का निर्माण अकेले सईदों द्वारा ही नहीं किया गया था और सभी शिया संप्रदाय से सम्बंधित नहीं थे परन्तु अधिकता में वे इन्हीं से सम्बंधित थे।
इस शहर का इतिहास काफ़ी अद्भुत है। 20 दिसम्बर 1305 को अमरोहा की जंग में अल्लाउद्दीन खिलजी ने मोंगोलों को हराया था। बाद में यह ज़िला मुग़लिया सल्तनत के अन्दर लाया गया और अवध में शामिल कर दिया गया। 1801 में अवध के नवाब और अंग्रेजों द्वारा इस ज़िले को तीन अन्य ज़िलों में बाँट दिया गया। वे ज़िले अमरोहा, धनोरा और हसनपुर हैं। यह सारे जिले मुरादाबाद के पूरब में स्थित है। शाहविलायत साहब बिच्छु वाली दरगाह काफ़ी रोचक है, इस दरगाह की दीवार और आस पास के पेड़ों पर बिच्छु पाए जाते हैं। लोग यह मानते हैं कि इस दरगाह के अन्दर सांप और बिच्छु भी संत बन जाते हैं। यहाँ हर दिन लोग मनोकामनाएँ मांगने आते हैं और लोग बिच्छु से भयभीत भी होते हैं लेकिन मज़े की बात यह है कि यह बिच्छु न तो किसी को काटते हैं और न ही परेशान करते हैं। यह दरगाह 800 साल से भी ज्यादा पुरानी है और लोगों में इस दरगाह को लेकर अटूट आस्था है। 2011 की जनगणना के अनुसार अमरोहा ज़िले की तादाद 18,38,771 है और यह कोसोवो के राष्ट्र से थोड़ी ही कम है। यह शहर भारत में 258 वीं श्रेणी में है, जिले की आबादी 818 प्रति वर्ग किलोमीटर है।
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