स्वच्छता से हम रोगों से दूर रह सकते हैं और अगर किसी शहर में स्वच्छता है तो उस शहर में बीमारियाँ आम तौर पर नहीं फैलती। देश के विकास के लिए देश में स्वच्छता होना ज़रूरी है और यह मानवीय विकास का एक अहम् हिस्सा है। भारत में साफ़-सफ़ाई केवल कुछ ही शहरों में देखी जा सकती है, और अधिकतम फ़ीसदी शहर और गाँव स्वच्छ नहीं हैं। आंकड़ों से यह पता लगा है कि शहर में लोग प्रदूषण से बीमार रहते हैं तथा गाँव में स्वच्छता न होने से। इसका यह कारण है कि लोग नदी, भूमि और वायु को प्रदूषित करते हैं और खुले में शौच कर बीमारियों को न्यौता देते हैं। स्वछता न होने से कई जानलेवा बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं जैसे - डेंगू, मलेरिया, पीलिया आदि।
इस समस्या को हल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा ह्युमन राइट टू वाटर एण्ड सैनिटेशन 2010 (Human Right to Water and Sanitation 2010) को प्रायोजित किया गया। इस मुहीम के अंतर्गत लोगों को यह सीख दी गई कि कम से कम कचरा फैलाएं और बिना वजह वातावरण को दूषित नहीं करें। वैश्विक विकास के लिए सबसे पहला और महत्वपूर्ण लक्ष्य सतत विकास है। शोध से यह पता लगा कि 2017 में 40 करोड़ लोग स्वछता से दूर थे। भारत में 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी और इसका अहम् मकसद भारत के हर गाँव और शहर में स्वच्छता का भाव पैदा करना था। इस मुहीम के अंतर्गत पूरे भारत के देहाती इलाकों में 9 करोड़ शौचालय बनाए गए।
लखनऊ में लोग कई अलग-अलग शहरों और गाँवों से काम की खोज में आते हैं और शहर में जनसँख्या काफ़ी ज्यादा बढ़ जाती है, ज्यादा जनसँख्या होने से शहर जल्दी दूषित हो जाता है। इस परेशानी से निपटने के लिए गोमती नदी प्रदूषण कन्ट्रोल परियोजना (GRPCP) की शुरूआत की गई। यह प्रोजेक्ट युनाइटेड किंगडम द्वारा वित्त पोषित हुआ है और इसका मकसद लखनऊ शहर में स्वच्छता लाना है। इस प्रोजेक्ट के लखनऊ में कई दर (फेज़) हैं, यह दर लोगों को स्वच्छता रखने के तरीके बताते हैं, हर तरह के कचरे को नियमित करने की तैयारी लखनऊ के लोगों को समझ आ गई है। और 2017 में यह पाया गया कि लखनऊ में बीमारियाँ पूर्व सालों से कम हुईं, इसका कारण लखनऊ शहर का स्वच्छ होना है। भारत के अन्य शहरों में अभी यह मुहीम चलाई जा रही है और माना जा रहा है कि आने वाले कुछ सालों में भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ जाएगा।
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