भारत के कई शहरों में पूर्व ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा बनाए गए छावनी देखे जा सकते हैं जैसे उत्तर प्रदेश में लखनऊ , मेरठ , आगरा , बरेली, झाँसी , व अन्य । छावनी का अर्थ है क्वार्टर(quarter) जहाँ पर सैनिकों को अस्थाई आवास दिया जाता है , यह छावनी शहरों से दूर बनायी जाती है। आज के समय में भारत में कुल 62 छावनी हैं और इन सभी के बीच लखनऊ की छावनी का इतिहास काफी रोचक है। यह इतिहास हमें 1857 की ग़दर की ओर ले जाता है।
लखनऊ में पहली ब्रिटिश छावनी गोमती नदी के उत्तरी तट पर बनाई गई थी जो कि दौलत खाना के बिलकुल विपरीत दिशा में थी , उस वक्त गोमती नदी को पार करने के लिए केवल एक ही पुल था। 1801 में अंग्रेज़ सरकार ने जबरन नवाब सादत अली खान' के आधे इलाकों को अपने हाथों में ले लिया था या नवाब को वह इलाके अंग्रेज़ सरकार को देने पड़े थे। नवाब को डर था कि उनका राज्य अंग्रेजों द्वारा हड़प लिया जाएगा और उसी डर से उन्होंने अपने 10,000 सैनिकों को अंग्रेजी सैनिकों के साथ मित्रपक्ष में रखा, लेकिन नवाब ने अपने 10,000 सैनिकों को लखनऊ की सरहद पर रखने की योजना बनायी। और इसी तरह नवाब सादत अली खान की छत्रछाया के अन्दर ब्रिटिश छावनी में तीव्र बदलाव आया, छावनी का स्थानान्तरण (Transfer) गोमती नदी के तट से मरिओम कर दिया गया। शहर के 4 मील उत्तर , सीतापुर रोड से लखनऊ शहर तक , छावनी का क्षेत्र 312 एकड़ (Acres) फैल गया।
इस जगह पर ब्रिटिश सैनिक सादत अली खान के सैनिकों से ज्यादा थे। उन्होंने सोचा कि अगर उन्होंने कुछ भौतिक बल लगाया तो ब्रिटिश सैनिकों की तादाद नियंत्रित की जा सकती है । तब एक सूची बनाई गई जिसमें शर्तें लिखी गईं और वह सूची 1807 में कर्नल कॉलिन्स (Col. Collins) को भेजी गई, और इन शर्तों में नवाब की भी हामी थी ।
यह शर्तें कुछ इस तरह थी :-
-1- छावनी केवल ब्रिटिश फौजों के लिए थी।
-2- छावनी के भीतर कोई भी व्यापार नहीं हो सकता था।
-3- लखनऊ के कोई भी साहूकार और निवासी छावनी में बिना नवाब के अनुमति के नहीं रह सकते थे।
-4- छावनी के आस पास कोई भी दृढ (किलेबंद) मकान नहीं बन सकते थे।
-5- सैनिकों के लिए व्यायाम ज़मीन (Exercising Grounds) छावनी से कुछ दूरी पर बनाए जाएँ और उस ज़मीन पर कोई भी मकान न हो।
-6- छावनी के आस पास जासूस हों जो हर खबर नवाब तक भेजें, क्योंकि वह ज़मीन नवाब की थी।
इन तमाम शर्तों को मद्दे नज़र रखते हुए मरिओम छावनी बनी। इस छावनी के अन्दर चारों और पक्की सड़क थी, बंगले थे जिसमें बाग (Garden) थे, बिना किसी कार्यालय के, चर्च , त्रिमास, सिपाहियों के लिए झील और कब्रिस्तान, आदि । छावनी के आवास में मिस्टर रिकेट्स ने तीन साल गुज़ारे थे और बाद में उनके आवास को 'साहिब का बंगला' कहा जाने लगा। 1856 में अवध के राज्य-हरण के बाद छावनी ही वह जगह थी जहाँ से बगावत शुरू हुई थी और हर तरफ मस्केट (Musket) की फायरिंग की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी ।
आज के समय में इन ऐतिहासिक जगहों को ढूंढना काफी मुश्किल है, इन जगहों ने ही भारत का कल लिखा था, अब जो कुछ दिखाई पड़ता है वह बस एक स्तम्भ है जो सैनिकों की याद में बनाया गया है। हम मरिओम की कब्रिस्तान में अभी भी कुछ कब्र देख सकते हैं जिसपर नाम लिखा है और ऐसे भी कब्र हैं जो अज्ञात हैं। दुखद अंत पूरी कब्र बच नहीं पाई। लखनऊ के इस रोचक छावनी को हम अब केवल इतिहास के पन्नो में ही देख पाएँगे।
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