किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, हमारे शहर लखनऊ में एक लोकप्रिय सरकारी मेडिकल कॉलेज है। जबकि, दूसरी ओर, एराज़ लखनऊ मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, हमारे शहर के सबसे महंगे निजी चिकित्सा संस्थानों में से एक है। भारतीय चिकित्सा परिषद के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सरकारी एम बी बी एस (MBBS) कॉलेजों ने, नीट यू जी (NEET UG) 2024 के माध्यम से, पात्र उम्मीदवारों को कुल 55,648 सीटों की पेशकश की है। जबकि, निजी कॉलेजों ने छात्रों को 50,685 एम बी बी एस(MBBS) सीटों की पेशकश की है। तो आइए, आज भारत के मेडिकल कॉलेजों में सीटों की वर्तमान स्थिति का पता लगाते हैं। फिर हम इस लेख के माध्यम से यह समझने की कोशिश करेंगे कि, भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फ़ीस, इतनी महंगी क्यों है। आगे, हम भारत में विशिष्ट निजी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई की लागत के बारे में जानेंगे। इस संदर्भ में, हम देश के कुछ शीर्ष निजी मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फ़ीस की तुलना करेंगे। उसके बाद, हम भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर, चिकित्सा शिक्षा के निजीकरण के प्रभाव पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
भारत के मेडिकल कॉलेजों में, सीटों की वर्तमान स्थिति:
भारत में, वर्तमान में, 695 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए, कुल 1,06,333 सीटें हैं। इनमें से लगभग 55,648 सीटें, सरकारी कॉलेजों में हैं, और 50,685 सीटें निजी एम बी बी एस कॉलेजों में हैं। 2024 में, सरकार ने एम बी बी एस पाठ्यक्रमों के लिए, 5150 अधिक सीटें जोड़कर इस संख्या में वृद्धि की। इनमें हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के 35 मेडिकल कॉलेजों को, 4303 सीटों का हिस्सा मिला है।
नीट यूजी परीक्षा के माध्यम से सीटों की उपलब्धता:
1,06,333 एम बी बी एस सीटें;
27,698 बी डी एस(BDS) सीटें;
50,720 आयुष(AYUSH) सीटें; और
525 बी.वी.एस सी(B.VSc) और ए.एच.(A.H) सीटें।
भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों में, ट्यूशन फ़ीस (Tuition Fees) इतनी अधिक क्यों है?
1.) बुनियादी ढांचे में निवेश:
निजी संस्थान, अक्सर आधुनिक बुनियादी ढांचे, उन्नत चिकित्सा उपकरणों और अत्याधुनिक सुविधाओं में भारी निवेश करते हैं, जिससे परिचालन लागत बढ़ जाती है।
2.) संकाय वेतन:
अनुभवी संकाय सदस्यों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए, विशेष रूप से विशिष्ट क्षेत्रों में, प्रतिस्पर्धी वेतन की आवश्यकता होती है। उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण कर्मचारी, महत्वपूर्ण मुआविज़ा की मांग कर सकते हैं।
3.) मेडिकल सीटों की मांग:
सीमित मेडिकल सीटों के लिए अधिक छात्रों की होड़ के कारण, निजी कॉलेज, उच्च मांग का लाभ उठाते हुए, उच्च ट्यूशन फ़ीस निर्धारित कर सकते हैं।
4.) सरकारी फंड की कमी:
सरकार द्वारा संचालित संस्थानों के विपरीत, निजी कॉलेजों को राज्य सब्सिडी नहीं मिलती है। यह बात उनकी फ़ीस संरचना को प्रभावित करती है।
भारत में किसी निजी मेडिकल कॉलेज में, अध्ययन की लागत क्या है?
निजी कॉलेजों में एम बी बी एस की फ़ीस, 10 लाख से 25 लाख के बीच होती है। एम बी बी एस कोर्स की फ़ीस, स्थान और संबद्धता पर निर्भर करती है। कर्नाटक में स्थित कॉलेजों में, एम बी बी एस की फ़ीस, 6 लाख से 18 लाख रुपये है। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में, एम बी बी एस की फ़ीस, 8,000 से 16 लाख रुपये के बीच है। जबकि, एम बी बी एस के लिए सबसे सस्ते कॉलेज दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि, अधिकांश सरकारी कॉलेज, इन राज्यों में उपलब्ध हैं।
भारत के कुछ शीर्ष निजी मेडिकल कॉलेजों की एम बी बी एस फ़ीस के बारे में जानें:
•शीर्ष निजी एम बी बी एस कॉलेजों में, प्रथम वर्ष की फ़ीस, निम्न प्रकार से है।
1 दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ़ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, महाराष्ट्र – 21,50,000 रुपये
2. अमृता विश्व विद्यापीठम, कोयंबटूर – 18,68,000 रुपये
3. विनायक मिशन यूनिवर्सिटी – [वी एम यू], सेलम – 20,00,000 रुपये
4. सविता इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल एंड टेक्निकल साइंसेज, चेन्नई –24,75,000 रुपये
5. सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु – 6,79,680 रुपये
6. एस. आर. एम. विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई – 25,00,000 रुपये
7. श्री रामचन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ़ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, चेन्नई – 25,00,000 रुपये
तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय [टी एम यू], मुरादाबाद – 16,24,000 रुपये
भारत में, चिकित्सा शिक्षा के निजीकरण का स्वास्थ्य सेवा पर नकारात्मक प्रभाव:
कोविड-19 महामारी ने ये बात स्पष्ट रूप से उजागर की है कि, निजीकृत स्वास्थ्य सेवा, भारत के लोगों पर बहुत कहर बरपाती है। उस समय, असंख्य लोगों की मृत्यु हो गई, क्योंकि, वे इलाज का खर्च नहीं उठा सकते थे। जबकि, अन्य लोगों ने मनाफ़े के भूखे निजी अस्पतालों और दवा कंपनियों के लालच के कारण, अपने जीवन की पूर्ण बचत को बर्बाद होते देखा।
चिकित्सा शिक्षा के निजीकरण के कारण, निजी मेडिकल कॉलेजों में छात्रों और उनके माता-पिता को शिक्षा लागतों को पूरा करने के लिए, काफ़ी मेहनत से भुगतान करना पड़ता है। यह भी सच है कि, परिवहन, बिजली आदि जैसी अन्य आवश्यक सेवाओं की तरह, चिकित्सा शिक्षा निजीकरण द्वारा, समाज के बाकी हिस्सों से भी भारी कीमत वसूली जाती है।
भारत एकमात्र देश है, जो मेडिकल सीटों की बिक्री को अधिकृत करता है। निजी कॉलेजों में दान आधारित प्रवेश की अनुमति है। कई कॉलेज अवैध कैपिटेशन फ़ीस(Capitation fees) लेते हैं, जो पच्चीस लाख से एक करोड़ रुपये के बीच होती है।
इस प्रकार, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, भारत में चिकित्सा उपचार इतना महंगा है और अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर है। कोई भी उन डॉक्टरों की मजबूरियों की कल्पना कर सकता है, जिन्होंने इतनी कीमत पर अपनी डिग्री हासिल की है। उनके लिए, इसी कारण मरीज़ से ज़्यादा पैसा मायने रखता है।
क्यूंकि भारत में चिकित्सा शिक्षा इतनी महंगी है, तो बहुत सारे डॉक्टर, विदेशों में अपनी शिक्षा प्राप्त करते हैं। यदि उन्हें किसी भी तरह, भारत में ऋण लेना पड़ता है, तो वे ऋण लेना पसंद करते हैं और विदेश में अध्ययन करने जाते हैं। क्योंकि, वहां शिक्षा और अन्य संबंधित परिस्थितियां, सामान्य रूप से अधिक अनुकूल हो सकती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3b5fvajx
https://tinyurl.com/y3prr7hd
https://tinyurl.com/3pmvs3kd
https://tinyurl.com/58cbussa
चित्र संदर्भ
1. मेडिकल छात्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. परीक्षा की तैयारी करते छात्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नूह, हरियाणा में स्थित, शहीद हसन खान मेवाती राजकीय मेडिकल कॉलेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)