डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, हमारे लखनऊ शहर में, कुछ उत्कृष्ट कैंसर उपचार केंद्र हैं। ‘कैंसर(Cancer)’ शब्द, ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स(Hippocrates) (460-370 ईसा पूर्व) द्वारा गढ़ा गया था। पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में, डॉक्टर, घातक ट्यूमर(Tumor) का वर्णन करने के लिए, ‘कार्किनो(Karkinos)’ (केकड़े के लिए एक प्राचीन ग्रीक शब्द) का उपयोग कर रहे थे। कैंसर के बारे में बात करें तो, प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी (Precision Oncology) इसके उपचार के लिए, एक अभिनव दृष्टिकोण है, जो यह सुनिश्चित करता है कि, रोगी का उपचार, उनके अनूठे कैंसर के लिए डिज़ाइन और लक्षित किया गया है। यह प्रत्येक रोगी के व्यक्तिगत आनुवंशिकी का उपयोग करने का विज्ञान है और आनुवंशिक उत्परिवर्तनों के आधार पर, उनके लिए एक उपचार प्रोटोकॉल बनाने के लिए, इसका उपयोग किया जाता है। इस राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर, आइए, प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी के बारे में विस्तार से जानें। आगे, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि, इलाज का यह तरीका कैसे काम करता है। उसके बाद, हम सटीक चिकित्सा के क्षेत्र में, ए आई(Artificial Intelligence) पर, भारत के बढ़ते ध्यान पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम कुछ सर्वाधिक इलाज योग्य कैंसरों के बारे में जानेंगे।
प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी का परिचय:
अधिकांश चिकित्सा देखभाल प्रणालियों में, यह मुद्दा है कि, कैंसर को मुख्य रूप से ऊतक के प्रकार या शरीर के उस हिस्से के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें वे उत्पन्न हुए थे – फेफड़े, मस्तिष्क, स्तन, बृहदान्त्र, अग्न्याशय, इत्यादि। लेकिन, इस दिशा में एक आमूल परिवर्तन चल रहा है। शोधकर्ता अब, विभिन्न कैंसरों के आणविक फ़िंगरप्रिंट(Molecular fingerprint) की पहचान कर रहे हैं। वे इनका उपयोग, कैंसर की व्यापक श्रेणियों को, अधिक सटीक प्रकारों और उपप्रकारों में विभाजित करने के लिए कर रहे हैं। वे इस बात की भी खोज रहे हैं कि, शरीर के बिल्कुल अलग-अलग हिस्सों में विकसित होने वाले कैंसर में, कभी-कभी आणविक स्तर पर कुछ समानताएं होती हैं।
इस नए परिप्रेक्ष्य से कैंसर अनुसंधान में, एक रोमांचक युग का उदय होता है, जिसे प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी कहा जाता है। इसमें, डॉक्टर किसी क रोगी के ट्यूमर के डी एन ए(DNA) स्वरूप के आधार पर, उसके उपचार का चयन कर रहे हैं। एक उदाहरण में, कैंसर से पीड़ित बच्चों के ट्यूमर और रक्त के नमूनों का बड़ी संख्या में विश्लेषण करने के लिए, उन्नत तकनीक का उपयोग करते हुए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के शोधकर्ताओं ने, आनुवंशिक फ़िंगरप्रिंट को उजागर किया। ये फ़िंगरप्रिंट, कैंसर निदान को परिष्कृत , मरीज़ को विरासत में मिली कैंसर की संवेदनशीलता की पहचान , या लगभग 40 फ़ीसदी बच्चों के लिए, उपचार का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी कैसे काम करती है?
प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी, प्रत्येक कैंसर रोगी के लिए, अत्याधुनिक अनुक्रमित उपचार का उपयोग करती है। डॉक्टर, एक ट्यूमर का नमूना लेते हैं, उसमें से डी एन ए को अलग करते हैं, और फिर, उन जीनों(Genes) को अनुक्रमित करते हैं, जो इसके विकास को चला रहे हैं। डॉक्टर, इस जानकारी का उपयोग यह पहचानने के लिए कर सकते हैं कि, उनके रोगी के विशिष्ट कैंसर के लिए, कौन से उपचार सबसे अधिक प्रभावी होंगे। इससे रोगियों के लिए कई लाभ हैं, क्योंकि यह डॉक्टरों को उपचार योजनाओं को अनुकूलित करने, और उन दवाओं का चयन करने में मदद करती है, जो उनके लिए, उपचार की सफ़लता की अधिक संभावना रखते हैं।
कैंसर के इलाज का यह नया तरीका, एक रोमांचक प्रगति है, क्योंकि, सटीक ऑन्कोलॉजी, अनावश्यक दवाओं या उपचारों की आवश्यकता को कम करती है। मरीज़ उन उपचारों से भी बच सकते हैं, जो उनके ट्यूमर को और भी तेज़ी से बढ़ा सकते हैं। क्योंकि, इस प्रकार डॉक्टर उनके ट्यूमर के प्रकार और जीन संरचना पर सबसे अच्छा काम करने वाले उपचार को खोजने के लिए, सटीक ऑन्कोलॉजी का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
सटीक चिकित्सा के लिए, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या ए आई पर, भारत का बढ़ता ध्यान:
बेंगलुरु में, अपोलो कैंसर सेंटर ने हाल ही में, ए आई द्वारा संचालित, देश का पहला प्रिसिशन ऑन्कोलॉजी सेंटर खोला है। यह प्रत्येक व्यक्ति के कैंसर के अनुरूप, व्यापक व विशिष्ट उपचार एवं देखभाल प्रदान करता है।
इस सेंटर में, लक्षित चिकित्सा और इम्यूनोथेरेपी(Immunotherapy) के लिए, योग्य रोगियों की पहचान करने के साथ-साथ, रोगी की स्थिति बिगड़ने पर, चिकित्सकों के संघों को सचेत करने के लिए, ए आई स्वचालन की सुविधा है। यह रोगियों और उनके परिवारों को निदान, उपचार और सहायता समूहों से संयोजकता के बारे में शिक्षित करने के लिए संवादी ए आई को भी तैनात करता है। इसके अतिरिक्त, यह मानक देखभाल के पालन की निगरानी के लिए, ए आई का उपयोग करता है। जीन से संबंधित रोगविषयक और पैथोलॉजिकल डेटा(Pathological data) के आधार पर, रोगी प्रबंधन को सक्षम करना; नैदानिक परीक्षणों और मूल्य-आधारित देखभाल; और अन्य रोगी लाभ कार्यक्रमों में नामांकन के लिए, सिफ़ारिशें प्रदान करना; इस सेंटर की अन्य विशेषताएं हैं।
इस बीच, ए आई में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, भारतीय विज्ञान संस्थान ने हाल ही में, मेडिकल इमेजिंग(Medical imaging) में एक प्रसिद्ध ब्रांड – सीमेंस हेल्थिनियर्स(Siemens Healthineers) के साथ, प्रिसिशन मेडिसिन में ए आई के लिए, एक सहयोगी प्रयोगशाला शुरू की है। यह प्रयोगशाला, मस्तिष्क स्कैन में पैथोलॉजिकल निष्कर्षों को स्वचालित रूप से विभाजित करने के लिए, ओपन-सोर्स ए आई-आधारित उपकरण(Open-source AI-based tools) विकसित करेगी। जल्द ही, नियमित क्लिनिकल वर्कफ़्लो(Clinical workflow) में एकीकृत होने वाले इन उपकरणों का उद्देश्य, तंत्रिका व स्नायु संबंधित रोगों का सटीक निदान करने और जनसंख्या स्तर पर उनके नैदानिक प्रभाव का विश्लेषण करने में सहायता करना है।
इलाज योग्य कैंसरों में से कुछ, निम्नलिखित हैं:
1.) स्तन कैंसर: स्तन कैंसर के चरण 0 और 1 के लिए, 5 साल तक जीवित रहने का दर, 99-100% है। ये चरण, ट्यूमर के आकार और स्थान का वर्णन करते हैं। स्टेज 0, स्तन के ऊतकों या स्तन के भीतर लोब्यूल्स(Lobules) में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि को संदर्भित करता है। इस स्तर पर, डॉक्टर इसे कैंसर नहीं मानते हैं, लेकिन, यह कैंसर के बहुत शुरुआती लक्षणों का संकेत दे सकता है।
2.) प्रोस्टेट कैंसर: प्रोस्टेट कैंसर के चरण 1 और 2 में, 5 साल तक जीवित रहने का दर, 99% होता है। प्रोस्टेट कैंसर या तो बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, या बिल्कुल नहीं बढ़ता है, और ये इलाज योग्य होता है । प्रोस्टेट कैंसर ट्यूमर, जो आकार में नहीं बढ़ते हैं, उनकी समय-समय पर निगरानी की जाती है कि, क्या वे आकार में बढ़ रहे हैं, या फैल रहे हैं।
3.) वृषण कैंसर: वृषण कैंसर के लिए, 5 साल तक जीवित रहने का दर, स्थानीयकृत ट्यूमर के लिए 99% है, जो अंडकोष में होते हैं। जबकि, क्षेत्रीय ट्यूमर के लिए, यही दर 96% है, जो अंडकोष के करीब ऊतकों या लिम्फ़ नोड्स(Lymph nodes) में फैल गए हैं। वृषण कैंसर के प्रारंभिक चरण में, स्थिति का इलाज करने के लिए, डॉक्टर एक या दोनों अंडकोष को हटा सकते हैं। अंडकोष हटाना, उपचार का एक प्रभावी रूप है। हालांकि, जब कैंसर फैल गया हो, तो यह काफ़ी कम फ़ायदेमंद होता है।
4.) थाइरोइड कैंसर: चरण 1 और 2 पर, थाइरोइड कैंसर की 5 साल तक जीवित रहने की दर 98-100% है। थाइरोइड, गर्दन में एक ग्रंथि होती है, जो स्वस्थ शारीरिक कार्यों का समर्थन करने के लिए, हार्मोन का उत्पादन करती है। अधिकांश थाइरोइड कैंसर, धीरे-धीरे बढ़ते हैं, जिससे उपचार के लिए, अधिक समय मिल जाता है। यहां तक कि, जब कैंसर गले के आसपास के ऊतकों में फैल जाता है, तब भी थायरॉयड ग्रंथि को हटाना, इसे खत्म करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
5.) गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के सभी स्थानीय चरणों के लिए, 5 साल तक जीवित रहने का दर, 92% है। इसका शीघ्र पता लगाने पर, डॉक्टरों को असामान्य रूप से विकसित कोशिकाओं के बढ़ने, या शरीर के अन्य क्षेत्रों में फैलने से पहले, उनका इलाज करने की अनुमति मिलती है। इस कैंसर के, बाद के चरणों में भी, कैंसर कोशिकाएं बहुत धीमी गति से बढ़ती हैं। परिणामस्वरूप, उपचार तब भी प्रभावी हो सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3am76z5u
https://tinyurl.com/4u8xxb8u
https://tinyurl.com/yxvf5dv
https://tinyurl.com/29s7uznw
चित्र संदर्भ
1. कैंसर की जाँच करते एक चिकित्सक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कैंसर रोगी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer) की जाँच करते विशेषज्ञों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. स्तन कैंसर (Breast Cancer) के ट्यूमर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. वृषण कैंसर (Testicular Cancer) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर का कारण बनने वाले एच.पी.वी. वायरस (HPV Virus) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)