आधुनिक समय का पहला एल जी बी टी क्यू (LGBTQ) अधिकार संघर्ष 1969 में शुरू हुआ था। इस आंदोलन के बीज न्यूयॉर्क शहर में स्टोनवॉल दंगों (Stonewall Riots) के बाद पड़े थे। आज के इस लेख में, हम एल जी बी टी क्यू आंदोलन के इतिहास पर बारीकी से नज़र डालेंगे। इसके तहत हम यह भी चर्चा करेंगे कि 1980 के दशक में एच आई वी/एड्स (HIV/AIDS) महामारी ने इस समुदाय को कैसे प्रभावित किया। इसके बाद, हम जानेंगे कि इस समुदाय से संबंधित विभिन्न शब्द कैसे खोजे गए। आगे हम भारत में एल जी बी टी क्यू समुदाय का संक्षिप्त इतिहास भी साझा करेंगे। अंत में, हम हाल के वर्षों में भारत में इस समुदाय के लिए न्यायालय द्वारा लिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों की समीक्षा करेंगे।
जून 1969 में, न्यूयॉर्क (New York) के ग्रीनविच विलेज (Greenwich Village) में स्टोनवॉल इन (Stonewall Inn) नामक एक समलैंगिक बार (Gay Bar) में पुलिस ने छापा मारा। इस बार में ट्रांसजेंडर लोग (Transgender People), लिंग गैर-अनुरूप लोग (Gender Non-Conforming People), समलैंगिक महिलाएं और पुरुष मौजूद थे। छापेमारी के बाद उन्होंने पुलिस के खिलाफ, कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन किए। इस विरोध प्रदर्शन ने कई लोगों का ध्यान उनकी ओर खींचा। इस घटना के ठीक एक साल बाद यानी घटना की सालगिरह के दिन हज़ारों लोग क्रिस्टोफ़र स्ट्रीट लिबरेशन डे परेड (Christopher Street Liberation Day Parade) में शामिल होने के लिए सड़कों पर उतरे। इसे एल जी बी टी क्यू समुदाय के लिए आयोजित पहला व्यापक समारोह माना जाता है।
बाद के वर्षों में, समलैंगिक महिलाएं, पुरुष, उभयलिंगी (Bisexual) और ट्रांसजेंडर लोग समानता और नागरिक अधिकारों के लिए संगठित होकर लड़ाई लड़े। उन्होंने अपने लिए रोज़गार, सैन्य सेवा और विवाह के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और बहुत संघर्ष किया। 1980 के दशक में एच आई वी/एड्स (HIV/AIDS) महामारी ने भी एल जी बी टी क्यू समुदाय को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया। इस दौरान, एल जी बी टी क्यू समुदाय के लोगों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए और नए उपचारों की खोज में मदद की।
लेस्बियन (Lesbian), गे (Gay), और बाइसेक्सुअल (Bisexual) जैसे शब्दों की शुरुआत कैसे और कब हुई?
लेस्बियन: यह शब्द, पहली बार 1732 में सामने आया। इस शब्द को विलियम किंग (William King) ने अपनी किताब "द टोस्ट (The Toast)" में लिखा था। यह शब्द उन महिलाओं को संदर्भित करता है, जो महिलाओं के प्रति आकर्षित होती हैं।
होमोसेक्शुअल (Homosexual): इस शब्द की उत्पत्ति साल 1869 में हुई। इसे एक हंगेरियन पत्रकार, कार्ल-मारिया कर्टबेनी (Karl-Maria Kertbeny) ने गढ़ा था। यह शब्द समान-लिंग के बीच के संबंधों को दर्शाता है।
बाइसेक्शुअल (Bisexual): इस शब्द का इतिहास, दो महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है। पहली बार " बाइसेक्शुअल " शब्द का उपयोग, 1872 में एक पैम्फलेट "साइकोपैथिया सेक्शुअलिस (Psychopathia Sexualis)" के जर्मन अनुवाद में हुआ। फिर, 1967 में, सैन फ़्रांसिस्को में बाइसेक्शुअल लोगों के समर्थन के लिए सेक्शुअल फ़्रीडम लीग (Sexual Freedom League) की स्थापना की गई।
गे (Gay): इस शब्द का उपयोग, यूरोप में 1955 से पहले भी होता था, लेकिन इस साल से अधिकांश लोग इस शब्द को पुरुषों के बीच, समान-लिंग संबंधों के स्थान पर संदर्भित करने लगे।
ट्रांसजेंडर (Transgender): यह शब्द, 1965 में अस्तित्व में आया। जॉन ओलिवन (John Oliven) ने अपनी किताब " सेक्शुअल हाइजीन एंड पैथोलॉजी (Sexual Hygiene and Pathology)" में इसका उपयोग किया। उन्होंने इसे ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जो जन्म के समय निर्धारित लिंग से अलग पहचान बनाता है।
भारत में एल जी बी टी क्यू+ (LGBTQ+) का संक्षिप्त इतिहास:
●भारत में एल जी बी टी क्यू+ (LGBTQ+) के इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि भारत में मध्यकालीन युग के दौरान समलैंगिकता को कुछ हद तक अस्वीकार किया गया। हालांकि, एल जी बी टी क्यू+ समुदाय को पूरी तरह से नकारा नहीं किया गया। 1296 से 1316 के बीच, दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के बेटेमुबारक ने, अपने दरबार के एक रईस के साथ संबंध रखे। इसके अलावा मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने भी अपने लेखन में एक युवक, बाबरी के प्रति अपने प्रेम का उल्लेख किया है।
●1861 में, ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत, सभी समलैंगिक गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में रखा गया। यह मुख्य रूप से कैथोलिक चर्च की इस धारणा से प्रभावित था कि प्रजनन से संबंधित नहीं होने वाला यौन कृत्य पाप है।
●1977 में, शकुंतला देवी ने भारत में समलैंगिकता पर पहला अध्ययन "द वर्ल्ड ऑफ़ होमोसेक्शुअल (The World of Homosexual)" प्रकाशित किया। इसमें समलैंगिक लोगों के लिए "सहिष्णुता और सहानुभूति नहीं बल्कि पूर्ण स्वीकृति" की बात कही गई थी।
●1981 में आगरा में पहला अखिल भारतीय हिजड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें लगभग 50,000 सदस्यों ने भाग लिया। 1994 में, हिजड़ों को कानूनी रूप से तीसरे लिंग के रूप में मतदान का अधिकार मिला। उसी वर्ष, एड्स भेदभाव विरोधी आंदोलन के तहत, धारा 377 को चुनौती देने वाली पहली याचिका दायर की गई थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया।
●2001 में, नाज़ फाउंडेशन (Naz Foundation) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में धारा 377 को चुनौती देने के लिए, एक जनहित याचिका दायर की। ●2009 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना। न्यायालय ने धारा 377 को भारत के संविधान द्वारा प्रदान किए गए जीवन, स्वतंत्रता, गोपनीयता और समानता के मौलिक अधिकारों के सीधे उल्लंघन के तौर पर देखा। इससे समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, लेकिन यह अभी भी कानूनी नहीं था।
●अप्रैल 2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गई। 24 अगस्त 2017 को, सुप्रीम कोर्ट ने एल जी बी टी क्यू+ समुदाय को अपने यौन रुझान को सुरक्षित रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी। लेकिन समलैंगिक क्रियाएं अभी भी अपराध थीं। 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के उस हिस्से को समाप्त कर दिया, जिसमें सहमति के बावजूद समलैंगिक गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में रखा गया था।
●26 नवंबर 2019 को संसद ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक पारित किया। इस बिल में एक ट्रांसपर्सन (Transperson) को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका लिंग जन्म के समय निर्दिष्ट लिंग से मेल नहीं खाता है। इसने रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाओं में उनके खिलाफ भेदभाव पर रोक लगा दी।
आइए अब भारत में एल जी बी टी क्यू+ समुदाय से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण अदालती निर्णयों को देखते हैं, जिन्हें एल जी बी टी क्यू+ के पक्ष में मील का पत्थर माना जाता है:
नाज़ निर्णय (Naz Judgment, 2009): नाज़ फ़ाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार का मामला भारत में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देने वाला पहला मामला था। फ़ैसला सुनाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस धारा को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, (Right to Equality) और अनुच्छेद 15 (Right Against Discrimination) का उल्लंघन करता है।
सुरेश कुमार कौशल बनाम भारत संघ (2013): इस मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को फिर से अपराध घोषित कर दिया। इसके साथ ही एल जी बी टी क्यू+ अधिकारों के लिए एक कठिन दौर शुरू हो गया। हालांकि, इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। इस निर्णय में ट्रांसजेंडर लोगों को नागरिक के रूप में मान्यता दी गई और उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि की गई।
पुट्टस्वामी निर्णय (Puttaswamy Judgment, 2017): के.एस. पुट्टस्वामी (K.S. Puttaswamy) और अन्य बनाम भारत संघ का मामला, गोपनीयता के अधिकार को एक महत्वपूर्ण अधिकार के रूप में स्थापित करता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें गोपनीयता का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार सभी लोगों को उनके लिंग और सेक्स की परवाह किए बिना दिया जाता है। इससे एल जी बी टी क्यू+ लोगों की स्वायत्तता और सुरक्षा की पुष्टि होती है।
नवतेज जौहर (Navtej Johar Judgment, 2018): नवतेज सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ का निर्णय सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध से मुक्त करता है। यह निर्णय एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्यों द्वारा दायर कई जनहित याचिकाओं के परिणामस्वरूप लिया गया था, जो उनके अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण था।
अरुण कुमार निर्णय (Arun Kumar Judgment, 2019): अरुण कुमार बनाम पंजीकरण महानिरीक्षक का मामला, ट्रांस महिला (Transwoman) को विवाह की परिभाषा में शामिल करता है। 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार, विवाह की परिभाषा केवल पुरुषों और महिलाओं के बीच के मिलन को मानती थी। लेकिन इस निर्णय ने महिला के रूप में पहचान रखने वाले ट्रांसजेंडर लोगों को भी विवाह की श्रेणी में शामिल किया। यह निर्णय नालसा (NALSA) के सिद्धांत के अनुरूप है, जो व्यक्तियों को अपनी पहचान स्वयं निर्धारित करने की अनुमति देता है!
इन सभी बड़े निर्णयों ने भारत में एल जी बी टी क्यू+ समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/27eqdchf
https://tinyurl.com/27eqdchf
https://tinyurl.com/2clz2xkb
https://tinyurl.com/23sl566f
चित्र संदर्भ
1. समलैंगिक समुदाय के लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. हाथ में चिकनी मिट्टी (clay) से बने एल जी बी टी क्यू लेखन को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. 1970 के दशक की शुरुआत में, नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी गे लिबरेशन ग्रुप ने वाशिंगटन डीसी में वियतनाम युद्ध विरोधी प्रदर्शन में भाग लिया! इस दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मदुरई, तमिल नाडु में एशिया की पहली समलैंगिक गौरव परेड के दौरान, गोपी शंकर मदुरई और अंजलि गोपालन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कोलकाता के एल जी बी टी क्यू समुदाय ने 16/09/2018 के दिन, विजय परेड का आयोजन किया था। यह तस्वीर उसी दिन परेड में ली गई थी। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)