दुनिया भर के कई अन्य शहरों की तरह, लखनऊ में भी महिलाओं को भी बराबरी से वोट देने का अधिकार है। हालाँकि, परिस्थितियां हमेशा से ऐसी नहीं थीं। ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को इस बुनियादी अधिकार को हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। आज के इस लेख में, हम महिलाओं के मताधिकार आंदोलन के ऐतिहासिक सफ़र पर चलेंगे। इसके तहत, हम मताधिकार आंदोलन के इतिहास और इसमें शामिल प्रमुख हस्तियों के बारे में जानेंगे। साथ ही, हम इस आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों और क्षणों पर भी प्रकाश डालेंगे।
19वीं सदी के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में महिलाओं को बहुत कम अधिकार प्राप्त थे। यह स्थिति शुरुआती सभ्यताओं से चली आ रही थी। महिलाओं को कॉलेज जाने से रोका जाता था। समाज द्वारा महिलाओं पर यह दबाव बनाया जाता था कि वे शादी करें और अपने बच्चों, पतियों और घरों की देखभाल करें। शादी के बाद, महिलाएँ अपनी सुरक्षा और आजीविका के लिए, पूरी तरह से अपने पतियों पर निर्भर हो जाती थीं। वे संपत्ति की मालिक नहीं हो सकती थीं। अपनी कमाई का सारा पैसा, उन्हें अपने पतियों को देना पड़ता था। महिलाओं को वोट देने की अनुमति भी नहीं थी।
लेकिन 19वीं सदी के मध्य तक, महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। उन्होंने मताधिकार (suffrage) यानी वोट देने के अधिकार की मांग करनी शुरू कर दी। इन महिलाओं को मताधिकारवादी (suffragists) कहा जाता था।
चलिए अब विस्तार से मताधिकार आंदोलन के इतिहास में गोता लगाते हैं:
जुलाई 1848 में, एलिज़ाबेथ कैडी स्टैंटन (Elizabeth Cady Stanton) और ल्यूक्रेटिया मॉट (Lucretia Mott) ने न्यूयॉर्क (New York) के सेनेका फ़ाल्स (Seneca Falls) में पहला महिला अधिकार सम्मेलन आयोजित किया। सेनेका फ़ाल्स कन्वेंशन (Seneca Falls Convention) के तहत महिलाओं के लिए बेहतर शिक्षा और नौकरी के अवसरों की मांग की गई। इसके तहत यह मांग भी की गई कि विवाहित महिलाओं का अपने वेतन और संपत्ति पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। इस महत्वपूर्ण बैठक के बाद, महिलाओं के लिए मतदान का अधिकार, अमेरिका में एक बड़ा विषय बन गया। 1870 में इन प्रयासों के शुरुआती नतीजे आने शुरू हो गए। इस दौरान संविधान में 15वें संशोधन की पुष्टि की गई। इस संशोधन ने अश्वेत पुरुषों को वोट देने का अधिकार दिया।
मई 1869 में, एलिज़ाबेथ कैडी स्टैंटन (Elizabeth Cady Stanton) और सुसान बी. एंथोनी (Susan B. Anthony) ने नेशनल वूमन सफ़रेज एसोसिएशन (National Woman Suffrage Association) एन डब्ल्यू एस ए (NWSA) का गठन किया। उन्होंने 15वें संशोधन का विरोध किया क्योंकि इसमें महिलाओं को शामिल नहीं किया गया था। 15वें संशोधन की पुष्टि के बाद, एन डब्ल्यू एस ए ने सेनेट (Senate) और प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) को एक याचिका भेजी। उन्होंने महिलाओं को मतदान का अधिकार देने और कांग्रेस में बोलने की अनुमति देने की मांग की।
इसी संदर्भ में अमेरिकन वूमन सफ़रेज एसोसिएशन (American Woman Suffrage Association) (ए डब्ल्यू एस ए (AWSA)), 1869 में लुसी स्टोन (Lucy Stone), जूलिया वार्ड होवे (Julia Ward Howe) और थॉमस वेंटवर्थ हिगिन्सन (Thomas Wentworth Higginson) द्वारा दूसरा राष्ट्रीय मताधिकार समूह स्थापित किया गया। ए डब्ल्यू एस ए ने 15वें संशोधन का समर्थन किया। वह एन डब्ल्यू एस ए के टकरावपूर्ण तरीकों से असहमत था। ए डब्ल्यू एस ए ने राज्य और स्थानीय स्तर पर महिलाओं को वोट देने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित किया।
1890 में, ए डब्ल्यू एस ए और एन डब्ल्यू एस ए ने मिलकर नेशनल अमेरिकन वूमन सफ़रेज एसोसिएशन (National American Woman Suffrage Association)( एन एडब्लू एस ए-NAWSA) का गठन किया। यह संगठन देश में महिलाओं के मताधिकार के लिए सबसे बड़ा समूह बन गया। इसने 1920 तक वोट के लिए मताधिकार की लड़ाई का नेतृत्व किया। अपने प्रयासों का फल इन्हें साल 1920 में मिला जब 19वें संशोधन (19th Amendment) की पुष्टि हुई, जिसके तहत महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिल गया। 1919 में, 19वें संशोधन के साथ महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिलने से ठीक एक साल पहले, NAWSA ने अपना नाम बदलकर लीग ऑफ़ वूमेन वोटर्स (League of Women Voters) रख लिया।
आइए अब मताधिकार आंदोलन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों से परिचित होते हैं:
अमेरिका में महिला मताधिकार आंदोलन, उन्मूलन आंदोलन (Abolition Movement) के साथ शुरू हुआ। 1830 के दशक में उन्मूलनवादी समूहों के साथ काम करने के बाद कई शुरुआती कार्यकर्ता, महिलाओं के साथ उनके अधिकारों की लड़ाई में शामिल हो गए। विलियम लॉयड गैरीसन (William Lloyd Garrison) के नेतृत्व में अमेरिकन एंटी-स्लेवरी सोसाइटी (American Anti-Slavery Society, AASS) जैसे समूहों ने महिलाओं को गुलामी के विरोध में बोलने, लिखने और संगठित होने का अवसर प्रदान किया। कुछ महिलाओं ने इन समूहों में नेतृत्व की भूमिकाएँ भी निभाईं।
1872 में, सुसान बी. एंथनी (Susan B. Anthony) और 15 अन्य महिलाओं ने राष्ट्रपति चुनाव में अवैध रूप से मतदान किया। उन्होंने रोचेस्टर, न्यूयॉर्क (Rochester, New York) में पंजीकृत होने और मतदान करने की मांग की। हालांकि सभी 16 महिलाओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। लेकिन इनमें से केवल एंथनी को ही मुकदमे का सामना करना पड़ा। उन पर 14वें संशोधन (14th Amendment) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। 14वें संशोधन में कहा गया था कि केवल 21 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष नागरिकों को ही मतदान का अधिकार है।
महिला अधिकार आंदोलन ने एक फ़ैशन ट्रेंड (Fashion Trend) भी शुरू किया। दरअसल 1851 में, जिनेवा, न्यूयॉर्क (Geneva, New York) की एलिज़ाबे स्मिथ मिलर (Elizabeth Smith Miller) ने एक नई शैली पेश की। उन्होंने घुटनों तक की स्कर्ट और टखने पर इकट्ठी तुर्की शैली की पूरी पैंट पहनी थी। अमेलिया जेनक्स ब्लूमर (Amelia Jenks Bloomer), जिन्होंने ‘द लिली’ (The Lily) नामक महिलाओं के लिए एक समाचार पत्र प्रकाशित किया, ने मिलर के पहनावे के बारे में लिखा और चित्र साझा किए। हालांकि इनकी लोकप्रियता के बावजूद कुछ लोगों ने इनकी आलोचना की थी।
ब्रिटेन में महिलाओं का मताधिकार आंदोलन, अमेरिका के मताधिकार आंदोलन की तुलना में बहुत अधिक आक्रामक था। मतदान का अधिकार चाहने वाली ब्रिटिश महिलाओं ने खुद को " सफ़्राजेट्स (Suffragettes)" कहा, जबकि अमेरिकी महिलाओं ने " सफ़्राजिस्ट्स (Suffragists)" शब्द का इस्तेमाल किया। एमेलिन पंकहर्स्ट (Emmeline Pankhurst) और महिला सामाजिक और राजनीतिक संघ (Women’s Social and Political Union, WSPU) के नेतृत्व में ब्रिटिश मताधिकारियों ने कई विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में नारीवाद की विभिन्न लहरें उठी, जिन्होंने महिला अधिकारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पहली लहर- संघर्ष और अधिकारों की प्राप्ति: नारीवाद की पहली लहर, 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में उभरी। इस दौरान, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए, समाचार पत्रों में अपने विचार व्यक्त किए, और संगठित बहसों का आयोजन किया। इस दौर में कई अंतर्राष्ट्रीय महिला समूहों का निर्माण हुआ। 1920 के दशक तक, अधिकांश यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिल गया। इस समय, महिलाएं साम्यवादी (Communist), समाजवादी (Socialist) और सामाजिक लोकतांत्रिक दलों में शामिल होने लगीं। वे अब कारखानों और कार्यालयों में भी काम करने लगी थीं। इसके साथ ही, महिलाओं को विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने और पारिवारिक जीवन के साथ करियर को संतुलित करने की अनुमति भी मिली। हालांकि, कुछ देशों में फ़ासीवादी दलों (Fascist Parties) के नियंत्रण में आने पर नारीवादी आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
दूसरी लहर- मुक्ति की खोज: 1970 के दशक में, पश्चिमी यूरोप (Western Europe) और अमेरिका (America) में नारीवाद की दूसरी लहर ने जोर पकड़ा। इस लहर का मुख्य उद्देश्य "महिलाओं की मुक्ति" था। लेकिन इसे हासिल करने के तरीकों पर विभिन्न समूहों के विचार अलग-अलग थे। इस दौरान, विश्वविद्यालयों में महिला अध्ययन (Women’s Studies) एक महत्वपूर्ण विषय बन गया। इसी समय साहित्य, संगीत, और विज्ञान में महिलाओं की उपलब्धियों को दर्शाती किताबें प्रकाशित होने लगीं।
तीसरी लहर- पहचान और विविधता: 1990 के दशक में, नारीवाद की तीसरी लहर ने अमेरिकी आंदोलन (American Movement) को संदर्भित किया। इस लहर में रूढ़िवादी मीडिया और राजनेताओं की प्रतिक्रियाओं का जवाब दिया गया। तीसरी लहर ने जाति, वर्ग, लिंग, और यौन अभिविन्यास (Sexual Orientation) जैसी विभिन्न पहचानों के महत्व को उजागर किया। इसने नस्लीय मुद्दों और दुनिया के अन्य हिस्सों में महिलाओं की स्थिति को भी उजागर किया।
चौथी लहर- डिजिटल युग का नारीवाद: चौथी लहर को साइबर फ़ेमिनिज़्म (Cyberfeminism) के रूप में जाना जाता है। यह उन नारीवादियों के काम को दर्शाता है जो इंटरनेट और नई मीडिया तकनीकों (New Media Technologies) का उपयोग करती हैं। इस लहर में, लिंगवाद (Sexism), स्त्री-द्वेष (Misogyny), और लिंग-आधारित हिंसा (Gender-based Violence) के खिलाफ लोगों को संगठित करने का प्रयास किया गया। इसका एक प्रमुख उदाहरण, 2017 में चर्चित #मी टू आंदोलन (#MeToo Movement) था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yea5qlqs
https://tinyurl.com/y3x8r2re
https://tinyurl.com/ybpx6zlz
https://tinyurl.com/yew8xuyv
चित्र संदर्भ
1. मतदान के बाद, भारतीय महिलाओं के समूह को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 1911 में, पुलिस कोर्ट के बाहर एक प्रदर्शन में मेबेल कैपर (Mabel Capper) और अन्य महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वेल्स में महिला मताधिकार आंदोलन के पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. महिला मताधिकार आंदोलन की झलकियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 1933 में, मताधिकार का प्रयोग करती स्पेन की महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. मी टू आंदोलन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)