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क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर से हज़ारों किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया में भी 'लखनऊ' नाम का एक क्षेत्र है? हमारे लखनऊ को अपनी ऐतिहासिक संपन्नता के लिए जाना जाता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया के लखनऊ को उसके स्वर्णिम इतिहास, खासकर सोने की खदानों के कारण पहचाना जाता है।
1851 में न्यू साउथ वेल्स (New South Wales) में शुरू हुए गोल्ड रश (Gold Rush) से लेकर 20वीं सदी तक, यहाँ बड़े पैमाने पर सोने का खनन किया गया। वहीं, भारत के लखनऊ में सोने की खदानें नहीं हैं, लेकिन यहाँ हर रोज़ हमारा सामना कोयले से होता है। जी हाँ। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी भारत की 73% बिजली कोयले से बनाई जाती है। इतनी अधिक बिजली की मांग को पूरा करने के लिए, भारत को कोयला, विदेशों से आयात करना पड़ता है। आज के इस लेख में, हम जानेंगे कि भारत में क्यों और कितनी बड़ी मात्रा में कोयले का आयात किया जाता है। साथ ही, हम यह भी समझेंगे कि कोयले के ग्रेड और गुणवत्ता कैसे हमारी आयात पर निर्भरता को प्रभावित करते हैं।
भारत मुख्य रूप से कोयला इसलिए आयात करता है, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त कोकिंग कोल (Coking Coal) उपलब्ध नहीं है। कोकिंग कोल, एक खास प्रकार का कोयला होता है, जिसका उपयोग स्टील और अन्य संबंधित उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (Steel Authority of India Limited, SAIL) और अन्य स्टील कंपनियाँ, अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोकिंग कोल खरीदती हैं। आयात के ज़रिए, ये कंपनियां अपनी आवश्यकताओं और भारत में उपलब्ध कोयले के बीच के अंतर को भरती हैं, जिससे स्टील की गुणवत्ता में सुधार होता है।
अधिकतर कोकिंग कोल, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से आयात किया जाता है। इसके अलावा, भारत के तट पर स्थित बिजली संयंत्रों में भी आयातित कोयले का उपयोग किया जाता है। ये संयंत्र विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले आयातित कोयले के साथ काम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
भारत का कोयला मंत्रालय स्थानीय रूप से उत्पादित कोयले को 17 ग्रेड में बांटता है। इनमें से ग्रेड 1 से 8 (G1 से G8), उच्च ऊर्जा वाले कोयले को दर्शाते हैं, जिनका ऊर्जा मान 7,000 किलो कैलोरी/किलोग्राम (GAR) से लेकर 4,900 किलो कैलोरी/किलोग्राम (GAR) तक होता है। लेकिन, G1 से G6 तक के शीर्ष छह ग्रेड भारत के कुल कोयला उत्पादन का 4% से भी कम हिस्सा बनाते हैं। इसी तरह, G7 और G8 ग्रेड का योगदान भी 10% से कम है।
प्रमुख उद्योग जैसे कि निजी बिजली उत्पादक, सीमेंट, स्पंज आयरन (Sponge Iron), ईंट, कागज़ और उर्वरक के लिए, मुख्य रूप से G1 से G6 ग्रेड के कोयले का आयात किया जाता है। भारत सबसे अधिक कोयला, G10 से G14 ग्रेड के बीच उत्पादित करता है, जिनका ऊर्जा मान 4,300 किलो कैलोरी/किलोग्राम (GAR) से 3,100 किलो कैलोरी/किलोग्राम (GAR) तक होता है। यह समूह लगभग 600 से 650 मिलियन टन का है, जो देश के कुल कोयला उत्पादन का 60% से अधिक है।
ग्रेड G11, जिसका ऊर्जा मान 4,000 से 4,300 किलो कैलोरी/किलोग्राम है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक कारोबार किया जाने वाला ग्रेड है। भारतीय उपयोगकर्ता, इसे बड़ी मात्रा में आयात करते हैं, जबकि इसका घरेलू उत्पादन लगभग 250 मिलियन टन है।
भारत का कुल कोयला आयात लगभग 100 मिलियन टन है, जिसमें से लगभग 70% कोयला 3,400 किलो कैलोरी/किलोग्राम से 5,000 किलो कैलोरी/किलोग्राम (GAR) के बीच आता है। और दिलचस्प बात यह है कि इंडोनेशिया भारत के 50% से अधिक कोयला आयात की आपूर्ति करता है।
भारत में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों का एक नया समूह बनाने की योजना बनाई जा रही है, जिसका उद्देश्य स्थानीय स्टील कंपनियों को कोकिंग कोल आयात में मदद करना है। यह समूह, उन कंपनियों के लिए एक सहारा बनेगा, जो कोयले की कमी का सामना कर रही हैं। इसका मुख्य लक्ष्य है सबसे अच्छी कीमतें प्राप्त करना और आयात के स्रोतों में विविधता लाना तथा ऑस्ट्रेलिया के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश करना।
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय स्टील कंपनियाँ, हर साल, लगभग 70 मिलियन मेट्रिक टन कोकिंग कोल का उपयोग करती हैं। भारत की कोयला खपत का लगभग 85% हिस्सा आयात से आता है। इस स्थिति को देखते हुए, भारत ने ऑस्ट्रेलिया से अनियमित आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए, रूस से अधिक कोकिंग कोल खरीदने की योजना बनाई है। सूत्रों के अनुसार, रूसी कोयला ऑस्ट्रेलियाई कोयले की तुलना में सस्ता भी है।
इस समूह के गठन से पहले, सरकार कोकिंग कोल की सोर्सिंग के लिए मंगोलिया के साथ बातचीत फिर से शुरू करेगी। मंगोलिया में कई खनिज संसाधन हैं, लेकिन यह क्षेत्र चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ है। यह चीन और रूस के साथ सीमा साझा करता है, लेकिन भारत को कोयला परिवहन का कोई प्रभावी तरीका अभी तक नहीं मिला है।
भारत में कोयले के खनन के लिए कई प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जो इस प्रक्रिया को आसान और सुरक्षित बनाते हैं। आइए इनमें से कुछ प्रमुख उपकरणों के बारे में जानते हैं:
⦾ उत्खननकर्ता (Excavator): उत्खननकर्ता, विशालकाय मशीनें होती हैं जो ज़मीन से कोयला खोदती हैं।
⦾ ड्रैगलाइन (Dragline): ये विशाल मशीनें गहरे भूमिगत से कोयला निकालने के लिए बाल्टी प्रणाली (Bucket System) का उपयोग करती हैं।
⦾ लोडर (Loader): लोडर, खनन किए गए कोयले को ट्रकों या कन्वेयर बेल्ट में लोड करने में मदद करते हैं।
⦾ माल ढोने वाले ट्रक (Haul Truck): ये ट्रक भारी वाहन, कोयले को खदान से प्रसंस्करण या भंडारण स्थलों तक ले जाते हैं।
⦾ कन्वेयर (Conveyor): कन्वेयर लंबी दूरी तक कोयले का परिवहन करते हैं, चाहे वह भूमिगत हो या सतह पर।
⦾ क्रशर (Crusher): क्रशर कोयले के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं, जिससे प्रसंस्करण आसान हो जाता है।
⦾ विभाजक (Separator): विभाजक, कोयले से अन्य खनिज या अशुद्धियाँ हटाते हैं, जिससे कोयला साफ़ रहता है।
⦾ ड्रिल (Drill): ड्रिल, विस्फ़ोटकों के लिए छेद बनाते हैं या परीक्षण के लिए कोर के नमूने लेते हैं।
⦾ वेंटिलेशन सिस्टम (Ventilation System): ये सिस्टम, भूमिगत खदानों को ताज़ी हवा प्रदान करते हैं और हानिकारक गैसों को हटाते हैं।
⦾ सुरक्षा उपकरण (Safety Equipment): इनमें हेलमेट, श्वासयंत्र और सुरक्षात्मक गेयर शामिल हैं, जो खदान में श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
इन सभी मशीनों और उपकरणों की मदद से भारत में कोयला खनन को कुशल और सुरक्षित बनाया जा रहा है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yw58onoy
https://tinyurl.com/2xywyne9
https://tinyurl.com/yts7e24y
https://tinyurl.com/ytl5xxty
चित्र संदर्भ
1. कोयले से लदे ट्रक को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. कोयले की खदान से कोयला ले जा रहे ट्रक को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. कोयले की खदान में काम करते मज़दूर को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. कोयले के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
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