इतिहास और विज्ञान का जोड़ अत्यंत पुराना है। विज्ञान की ही मदद से प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली वस्तुओं के तिथि व सत्यता का निर्धारण किया जाता है। विज्ञान की कई शाखाएं हैं जो इतिहास के विभिन्न हिस्सों पर कार्य करती हैं। भारत में ऐतिहासिक रूप से प्रागैतिहासिक जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण व वृहत था। इसी कारण यहाँ पर कितने ही जीवाश्म उद्यानों का निर्माण किया गया है तथा कई विश्वविद्यालय इसकी शिक्षा प्रदान करते हैं। जीवों के अलावा वनस्पतियां भी अध्ययन का एक क्षेत्र हैं जो कि प्रागैतिहास काल के वनस्पतियों व ऐतिहासिक वनस्पतियों पर आधारित होती हैं।
भारत के सबसे उत्तम संस्थानों में से एक बीरबल साहनी पालिओसाइंस (Palaeoscience) संस्थान है। यह लखनऊ में स्थित है, यह संस्थान वनस्पतियों व जीवाश्म में तब्दील हो चुके वनस्पतियों पर कार्य करता है। भारत में हुयी चावल की खेती के खुदाई से प्राप्त अवशेषों का भी अध्ययन यही से किया गया था। बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञानं संस्थान की स्थापना सन 1946 में हुयी थी। यह संस्थान प्रोफ़ेसर बीरबल साहनी की दूर दर्शिता का नतीजा है। वर्तमान काल में यह भारत सरकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में कार्यरत है। यहाँ पर शैल वनस्पतियों या जीवाश्म में तब्दील हो चुके वनस्पतियों व प्रागैतिहासिक मानवों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली वनस्पतियों पर अध्ययन किया जाता है।
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