क्या आपने कभी लखनऊ समझौता (Lucknow Pact) के बारे में सुना है। यह दिसंबर 1916 में किया गया एक महत्वपूर्ण समझौता था। लखनऊ समझौता उस समय भारत के दो प्रमुख राजनीतिक समूहों: "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस" (Indian National Congress) और "मुस्लिम लीग" (Muslim League) के बीच हुआ था। यह समझौता हमारे लखनऊ में दोनों दलों की संयुक्त बैठक के दौरान किया गया था। इस समझौते के तहत, प्रांतीय विधानसभाओं में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की अनुमति दी गई। यानी अब स्थानीय सरकार में विभिन्न धार्मिक समूहों की बराबर भूमिका हो गई। मुस्लिम लीग के नेता, कांग्रेस आंदोलन का समर्थन करने के लिए सहमत हुए। इस आंदोलन के तहत, भारत के लिए अधिक स्वशासन (या स्वायत्तता) (Self-Governance) की मांग की जा रही थी। कई विद्वान इस समझौते को एक उदाहरण के तौर पर मानते हैं। यह दर्शाता है कि यदि लक्ष्य एक ही हो तो भारतीय राजनीति में विभिन्न समूह, एक साथ मिलकर भी काम कर सकते हैं। दिलचस्प रूप से एक ऐसी ही घटना साल 1952 में मिस्र में भी घटित हुई जहाँ देश की संप्रभुता के लिए हज़ारों लोग एकजुट हो गए। इसे मिस्र की क्रांति (Egyptian Revolution) कहा जाता है, जहां मिस्र वासियों ने बिना किसी हिसंक संघर्ष के शांति का मार्ग अपनाकर अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया। इस घटना को आज भी अहिंसक विद्रोह के एक उत्कृष्ट उदाहरण के तौर पर गिना जाता है। इसके अलावा, आज हम 1974 में पुर्तगाल में घटित कार्नेशन क्रांति (Carnation Revolution) के बारे में भी जानेंगे। इसे अक्सर दुनिया के सबसे शांतिपूर्ण विद्रोहों में से एक माना जाता है।
1948 के अरब-इज़राइल युद्ध (Arab-Israeli War) के बाद, मिस्र की सेना को कई विवादों का सामना करना पड़ा। कई सेना अधिकारियों ने युद्ध के दौरान उनकी मदद न करने के लिए राजा फ़ारूक (King Farouk) को दोषी ठहराया। युद्ध में भाग लेने वाले लेफ़्टिनेंट कर्नल जमाल अब्देल नासिर (Gamal Abdel Nasser) ने " फ़्री ऑफ़िसर्स" (Free Officers) का नाम एक गुप्त समूह की स्थापना की। इस समूह को, बाद (1949) में फ्री ऑफ़िसर्स मूवमेंट (Free Officers Movement) के रूप में जाना जाने लगा। इस आंदोलन के सदस्य, सेना के अधिकारी थे जो ब्रिटिश साम्राज्य से जुड़ी राजशाही को खत्म करना चाहते थे और मिस्र तथा सूडान पर शासन करने वाले मुहम्मद अली राजवंश (Muhammad Ali Dynasty) से मुक्ति चाहते थे।
23 जुलाई, 1952 के दिन जनरल मुहम्मद नागुइब (Mohammed Naguib) और नासिर के नेतृत्व में फ़्री ऑफ़िसर्स मूवमेंट की बदौलत राजा फ़ारूक को सफलतापूर्वक सत्ता से उखाड़ फेंक दिया गया। 26 जुलाई, 1952 को, राजा फ़ारूक को अपने छोटे बेटे के पक्ष में , अपना सिंहासन छोड़ना पड़ा। जून 1953 में वे उसी नौका पर निर्वासन के लिए मिस्र से चले गए, जिसका इस्तेमाल उनके दादा, इस्माइल (Ismail) ने 70 साल पहले अपने निर्वासन के लिए किया था। यह क्रांति, मिस्र में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव लेकर आई और देश में भविष्य के परिवर्तनों के लिए मंच तैयार किया।
फ़्री ऑफिसर्स का उद्देश्य स्पष्ट था: 'अपने देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराना।' हमारे भारत की तरह मिस्र को भी उपनिवेशवाद ने कई वर्षों तक, राज्य को अपने शिकंजे में कसकर जकड़ा हुआ था। परिवर्तन के लिए किए गए कई प्रयासों को विफल कर दिया था।
लेकिन फ़्री ऑफ़िसर्स ने अपने मिशन में दृढ़ता दिखाई, और फ़िलिस्तीनी युद्ध (Palestinian War) की विफलता ने उनके आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया। इस अडिग संकल्प ने उन्हें 23 जुलाई, 1952 को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इस क्रांति की सफलता में एक महत्वपूर्ण कारक फ़्री ऑफ़िसर्स का मज़बूत संगठन था।
वे स्पष्ट सिद्धांतों के तहत काम करते थे, जिनमें शामिल थे:
- सामंती व्यवस्था का अंत: उनका लक्ष्य, पुरानी भूमि स्वामित्व संरचनाओं को समाप्त करके किसानों के जीवन को बेहतर बनाना था।
- लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना: वे एक ऐसा राजनीतिक माहौल बनाना चाहते थे जहाँ सभी नागरिक समाज के विकास में भाग ले सकें।
- पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना: उनका प्राथमिक उद्देश्य अपने देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करना था।
क्रांति के बाद, मिस्र के पहले राष्ट्रपति मोहम्मद नागुइब (Mohammed Naguib) और बाद में जमाल अब्देल नासिर (Gamal Abdel Nasser) के नेतृत्व में एक नया राज्य उभरा। नासिर ने मिस्र को विदेशी प्रभुत्व से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वेज़ नहर (Suez Canal) के राष्ट्रीयकरण को उनके ऐतिहासिक फैसलों में से एक माना जाता है। साथ ही उन्होंने ब्रिटिश सेना को बाहर निकालने के कई प्रयास किए, जो 18 जून, 1956 को सफल हुए।
मिस्र की स्वतंत्रता से प्रेरित होकर अरब और अफ़्रीकी क्षेत्रों में उपनिवेशवाद को समाप्त करने के लिए एक अभियान छिड़ गया। मिस्र के आंदोलन का प्रभाव कई देशों तक फैला, जिनमें सूडान (Sudan), मोरक्को (Morocco), घाना (Ghana), सोमालिया (Somalia) और 1990 में नामीबिया (Namibia) शामिल थे । इस क्रांति ने, न केवल मिस्र को बदल दिया, बल्कि पूरे अरब दुनिया में आंदोलनों को भी प्रेरित किया, जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पुर्तगाल की शांतिपूर्ण कार्नेशन क्रांति: मिस्र की क्रांति की भांति ही 25 अप्रैल, 1974 के दिन, पुर्तगाल भी एक अनोखे तख्तापलट (Coup) का गवाह बना। यह तख्तापलट "कार्नेशन क्रांति" (Carnation Revolution) के सफ़ल होने का इनाम था। यह क्रांति, एक विचारधारात्मक और सत्ता के लिए संघर्ष करते हुए बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण तरीके से हुई। मोविमेंटो दास आर्मडास (Movimento das Forças Armadas) के नेतृत्व में शुरू हुई यह सैन्य क्रांति, जल्द ही एक व्यापक नागरिक आंदोलन में बदल गई।
इस क्रांति की अधिकांश योजना अंगोला (Angola), गिनी बिसाऊ (Guinea-Bissau) और मोज़ाम्बीक (Mozambique) जैसे पुर्तगाल के बाहरी क्षेत्रों में बनाई गई थी। इस क्रांति ने पुर्तगाली-अमेरिकी संबंधों में तनाव भी पैदा कर दिए। दरअसल अमेरिकी सरकार को डर था कि कम्युनिस्टों की जीत होनी तय है। अंततः, यह क्रांति शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त हुई, जिसके परिणामस्वरूप, 1933 से सत्ता में रहे कैटानो (Salazar) और एस्टाडो नोवो (Estado Novo) की सरकार को उखाड़ फेंक दिया गया। इसके बाद, एक नया संविधान (Constitution) भी बनाया गया। यह पश्चिमी यूरोप में सबसे लंबे समय तक चलने वाली सरकार थी।
कार्नेशन क्रांति ने पुर्तगाली उपनिवेशवाद के अंत और नागरिक स्वतंत्रताओं की बहाली की, जो कैटानो की सरकार के तहत प्रतिबंधित थी ।
कार्नेशन क्रांति क्यों हुई?
1933 से पुर्तगाल पर एस्टाडो नोवो (Estado Novo) या न्यू स्टेट (New State) नामक सरकार का शासन था। इस सरकार को दूसरा पुर्तगाली गणराज्य (Second Portuguese Republic) भी कहा जाता था। एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाज़ार (António de Oliveira Salazar), 1968 तक इसके प्रमुख लीडर थे। उनके शासन में पुर्तगाल की जनता पर सख्त नियंत्रण और उत्पीड़न किए गए।
एस्टाडो नोवो द्वारा सेंसरशिप (Censorship) लागू की गई थी। वहां पर समाचार पत्रों और पुस्तकों पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी और उन्हें सीमित किया जाता था। सरकार ने कैथोलिक धर्म (Catholicism) को आधिकारिक धर्म बना दिया। राजनीतिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को दबाने के लिए, शासन द्वारा एक गुप्त पुलिस बल (Secret Police) बनाया गया था। लोगों को हड़ताल करने या ट्रेड यूनियनों (Trade Unions) में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। जो लोग, सरकार से असहमत होते, उन्हें कारावास या यहाँ तक कि मौत का फ़रमान भी सुना दिया जाता। कई पुर्तगाली नागरिक, एस्टाडो नोवो को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे।
एस्टाडो नोवो शासन को पुर्तगाल के भीतर और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों से ही काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ा। इस अवधि के दौरान, पुर्तगाल एक औपनिवेशिक युद्ध (Colonial War) में लगा हुआ था जो 13 वर्षों तक चला। विभिन्न राष्ट्रवादी समूह अपने अफ़्रीकी क्षेत्रों में पुर्तगाली नियंत्रण का सक्रिय रूप से विरोध कर रहे थे। इनमें अंगोला, गिनी-बिसाऊ और मोज़ाम्बीक (Mozambique) शामिल थे। इस दौरान, कई सैनिकों को सेना में भर्ती किया गया था। इस हिंसक और महंगे युद्ध को समाप्त करने के लिए लोगों के बीच उपनिवेशवाद को समाप्त करने की तीव्र इच्छा थी। इस व्यापक भावना के बावजूद, एस्टाडो नोवो, शासन उपनिवेशवाद को समाप्त करने के विचार का विरोध करते रहे।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि जब समाज में असंतोष और अन्याय बढ़ता है, तो लोग एकजुट होकर परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। लखनऊ समझौता (Lucknow Pact), मिस्र की क्रांति (Egyptian Revolution) और कार्नेशन क्रांति (Carnation Revolution) सभी ने यह साबित किया कि सामूहिक प्रयास और एकजुटता से ही समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने न केवल अपने-अपने देशों में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उपनिवेशवाद और तानाशाही (Dictatorship) के खिलाफ संघर्ष को प्रेरित किया। इन घटनाओं का अध्ययन, हमें यह सिखाता है कि जब लोग एकजुट होते हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, तो वे अपने समाज में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण सबक है, जो आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि दुनिया भर में लोग समानता, स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2d9tgfoa
https://tinyurl.com/y5fvrqxm
https://tinyurl.com/2cq6hraz
https://tinyurl.com/2ymsurw8
https://tinyurl.com/236b4ou6
चित्र संदर्भ
1. 1939 में, अलेक्जेंड्रिया में एक भोज में राजा फ़ारूक और उनके परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 8 फ़रवरी 2011 के दौरान, मिस्र के तहरीर स्क्वैर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिस्र के राजा, फ़ारूक I को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिस्र का झंडा लिए एक प्रदर्शनकारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मिस्र के राजदूत मोहम्मद बासियोनी ने राजशाही के खिलाफ क्रांति की याद में स्मृति दिवस पर पारंपरिक स्वागत समारोह का आयोजन किया। इस दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कार्नेशन क्रांति के भित्तिचित्र (mural painting) को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)