जुलाई 2022 में, हमारे लखनऊ की चहल-पहल भरी सड़कों से एक रसेल वाइपर (Russell's Viper) को बचाया गया था। इस सांप की गिनती, दुनिया के सबसे ज़हरीले साँपों में होती है। रसेल वाइपर का वैज्ञानिक नाम दबोइया रसेली (Daboia russelii) है। यह वाइपरिडे परिवार (Viperidae family) से संबंधित है और यह पूरे दक्षिण एशिया में पाया जाता है। इस सांप का नाम स्कॉटिश सर्जन (Scottish surgeon) और प्रकृतिवादी पैट्रिक रसेल (Patrick Russell) के नाम पर रखा गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रजाति के काटे जाने से अकेले भारत में हर साल लगभग 25,000 लोग अपनी जान गवा बैठते हैं। आज हम इसी ज़हरीले सांप के बारे में गहराई से विश्लेषण करेंगे। इस विश्लेषण में हम सांप की विशेषताओं, इसके व्यवहार और पारिस्थितिकी को समझने का प्रयास करेंगे। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि इनके काटे जाने पर इंसानों पर क्या बीत सकती है। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि साँपों के ज़हर का इस्तेमाल दवा के रूप में कैसे किया जाता है?
रसेल वाइपर, एक बेहद ज़हरीला सांप होता है, जिसे अपने शक्तिशाली ज़हर के लिए जाना जाता है। इस ख़तरनाक सांप को एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। यह नाम इसे स्कॉटिश सरीसृप विज्ञानी पैट्रिक रसेल (Scottish herpetologist Patrick Russell) के सम्मान में दिया गया है। उन्होंने 1790 के दशक में भारत में साँप की कई प्रजातियों का दस्तावेज़ीकरण किया था।
भारत में, रसेल वाइपर को कॉमन क्रेट (Common Krait), इंडियन कोबरा (Indian Cobra) और सॉ-स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled Viper) के साथ "बिग फ़ोर " (Big Four) यानी चार सबसे घातक साँपों में से एक के रूप में उद्धृत किया जाता है। रसेल वाइपर, 1.5 मीटर (लगभग 5 फ़ीट ) तक की लंबाई तक पहुँच सकता है। इसे इसके अनोखे लाल-भूरे रंग के धब्बों से आसानी से पहचाना जा सकता है। ये धब्बे खूबसूरती से काले और सफ़ेद रंग से घिरे होते हैं। इस साँप का सिर चौड़ा और त्रिकोणीय होता है। इसके मस्तक में ओवरलैपिंग स्केल (Overlapping scales), बड़े नथुने (Large nostrils) और ऊर्ध्वाधर पुतलियों वाली छोटी आँखें (Vertical pupils) होती हैं। रसेल वाइपर बहुत ही रोचक साँप हैं।
ये स्थलीय साँप होते हैं, और ज़्यादातर रात में सक्रिय होते हैं। इस समय वे भोजन की तलाश में होते हैं। हालाँकि ठंडे मौसम में, वे दिन में भी सक्रिय हो सकते हैं। वयस्क रसेल वाइपर आमतौर पर धीमे और सुस्त होते हैं। वे आमतौर पर तब तक हमला नहीं करते जब तक कि उन्हें उकसाया न जाए या उन्हें ख़तरा महसूस न हो। लेकिन जब उन्हें ख़तरा महसूस होता है, तो वे बहुत तेज़ी से हमला कर सकते हैं। युवा रसेल वाइपर, आमतौर पर वयस्कों की तुलना में ज़्यादा चौकन्ने और घबराए हुए होते हैं। जब उन्हें ख़तरा महसूस होता है, तो वे अपने शरीर से S का आकार बनाते हैं। वे अपने शरीर के अगले हिस्से को ऊपर उठाते हैं और तेज़ फुफकारने की आवाज़ निकालते हैं। सामने से उनकी फुफकार, किसी भी अन्य साँप की तुलना में ज़्यादा तेज़ सुनाई देती है।
अगर उन्हें और ज़्यादा उकसाया जाए, तो वे हमला कर सकते हैं। वे इतना बल लगा सकते हैं कि हमला करते समय, एक लम्बे व्यक्ति से अधिक ऊपर उठ सकते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि ये बहुत ताकतवर सांप होते हैं। अगर इन्हें पकड़ लिया जाए तो ये हिंसक तरीके से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इनका काटना बहुत तेज़ हो सकता है और ये कई सेकंड तक अपने दांत गढ़ाए रख सकते हैं।
रसेल वाइपर कई देशों में पाया जाता है। इनमें भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में रसेल वाइपर की आबादी को अब एक अलग प्रजाति के रूप में देखा जाता है जिसे डाबोइया सियामेंसिस (Daboia siamensis) कहा जाता है। यह प्रजाति मूल रूप से "भारत" से है, जो विशेष रूप से कोरोमंडल तट से जुड़ी हुई है।
अपनी सीमा के भीतर, यह साँप अलग-अलग संख्या में पाए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में, आप उन्हें काफ़ी आम तौर पर देख सकते हैं, जबकि कई में इन्हें देखना बहुत दुर्लभ होता है। उदाहरण के लिए, भारत में, रसेल वाइपर पंजाब में प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं। इसके अलावा, इन्हें पश्चिमी तट और दक्षिणी भारत की पहाड़ियों विशेष रूप से कर्नाटक और उत्तरी बंगाल में भी बहुतायत में देखा जाता है। हालाँकि, आपको ये सांप गंगा घाटी, उत्तरी बंगाल और असम जैसी जगहों पर बहुत ही मुश्किल से दिखाई देंगे।
रसेल वाइपर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह सिर्फ़ एक तरह के आवास तक ही सीमित नहीं रहता है। यह घने जंगलों से बचता है और घास या झाड़ियों वाले खुले इलाकों को पसंद करता है। आप इन्हें कट रहे जंगलों, बागानों और खेत में भी देख सकते हैं। ये अक्सर मैदानों, तटीय तराई और पहाड़ियों में देखे जाते हैं। यहाँ की परिस्थितियां इनके लिए सही होती हैं।
हालाँकि रसेल वाइपर आमतौर पर ऊँचाई पर नहीं रहते हैं। लेकिन कुछ मामलों में इस सांप को 2,300 और 3,000 मीटर (या लगभग 7,500 से 9,800 फ़ीट) की ऊँचाई पर भी देखा गया। ये सांप दलदल और वर्षावन जैसी नम जगहों से भी दूर रहता है।
चलिए अब आपको रसेल वाइपर से जुड़े कुछ अनोखे और रोचक तथ्यों से परिचित कराते हैं:
नख के दांत आधे इंच से ज़्यादा बढ़ते हैं।: क्या आप जानते हैं कि रसेल वाइपर के नुकीले दांत, लगभग 0.65 इंच यानी आधे इंच से ज़्यादा लंबे हो सकते हैं। ये नुकीले दांत सिर्फ़ दिखावे के लिए नहीं होते। ख़तरा महसूस होने पर ये किसी को भी दर्दनाक रूप से काटने के साथ-साथ ज़हर भी दे सकते हैं। ख़तरा महसूस करने पर रसेल वाइपर S-लूप बना सकता है। इस आकृति के साथ यह शक्तिशाली झटके के साथ तेज़ी से हमला कर सकता है।
एक ख़तरनाक प्रतिष्ठा: हमने अभी पढ़ा कि रसेल वाइपर को दक्षिण एशिया के "बिग फ़ोर" विषैले साँपों में गिना जाता है। इसका ज़हर बेहद शक्तिशाली होता है। इस सांप के काटे जाने से अकेले भारत में हर साल लगभग 25,000 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इसके विष के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। इसके काटे जाने पर किडनी फ़ेलियर (Kidney failure) और रक्त के थक्के जमने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
रहस्यमय रडार (Mysterious radar): पिट वाइपर (Pit Viper) के विपरीत, रसेल वाइपर में गर्मी के प्रति संवेदनशील पिट ऑर्गन (Pit organ) नहीं होते हैं। हालाँकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें किसी प्रकार का गर्मी के प्रति संवेदनशील अंग ज़रूर होता है। इस अंग की सटीक प्रकृति आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
पारिस्थितिकी तंत्र में इनकी लाभकारी भूमिका: रसेल वाइपर जैसे साँप, छोटे स्तनपायी आबादी, विशेष रूप से कृन्तकों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन जीवों और कीटों की आबादी को नियंत्रित करके, वे एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं। साथ ही, वह कृन्तकों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारियों, जैसे लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) और हंटावायरस (Hantavirus) के प्रसार को भी कम करते हैं।
विष के चिकित्सकीय उपयोग: रसेल वाइपर का विष न केवल विष-निरोधक उपचारों के लिए एकत्र किया जाता है, बल्कि यह अन्य चिकित्सा अनुप्रयोग में भी लाभकारी साबित होता है। इसके विष में 12 अलग-अलग प्रोटीन परिवारों के 63 प्रोटीन होते हैं, जो इसे एक जटिल मिश्रण बनाते हैं। इन प्रोटीनों का अध्ययन प्रभावी सर्पदंश उपचार बनाने के लिए महत्वपूर्ण साबित होता है। कुछ प्रोटीन, घाव भरने में भी मदद कर सकते हैं, रोगाणुरोधी प्रभाव डाल सकते हैं और सूजन को कम कर सकते हैं। शोधकर्ता, साँप के काटने पर प्रभावी उपचार विकसित करने के लिए इन प्रोटीनों की जांच कर रहे हैं।
हालांकि केवल रसेल वाइपर ही नहीं बल्कि अधिकांश साँपों के ज़हर में कई शक्तिशाली यौगिक होते हैं। ये यौगिक, शरीर में महत्वपूर्ण अणुओं को बहुत प्रभावी ढंग से लक्षित करते हैं। विष के विषाक्त पदार्थों के विभिन्न प्रभाव, लगभग किसी भी अंग प्रणाली में गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकते हैं। लेकिन, इन विषाक्त पदार्थों का उपयोग, बेहतर स्वास्थ्य के लिए शरीर के कार्यों को प्रभावित करने के लिए भी किया जा सकता है। कुछ साँप के विष-आधारित उत्पादों का उपयोग क्लीनिकों में , परीक्षणों में , या भविष्य में चिकित्सा में उपयोग के लिए किया जा रहा है। यह रक्त के थक्के, रक्त प्रवाह और कैंसर के प्रसार जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी साबित हो सकता है।
साँप के ज़हर में इसके कई यौगिकों और उनकी विशिष्ट क्रियाओं के कारण इसका उपयोग दवा के रूप में किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कोबरा के ज़हर से दो दर्द निवारक ( नैलोक्सोन (Naloxone)) और कोब्रोक्सिन (Cobroxin)) बनाए जाते हैं। कोब्रोक्सिन का उपयोग, तंत्रिका संकेतों को अवरुद्ध करने के लिए मॉर्फीन (Morphine) की तरह किया जाता है। नैलोक्सोन का उपयोग गंभीर गठिया के दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। शोधकर्ता कई बीमारियों के इलाज हेतु नई दवाएँ बनाने के लिए विष घटकों का उपयोग कर रहे हैं। इन बीमारियों में मिर्गी (Epilepsy), मल्टिपल स्केलेरोसिस (Multiple sclerosis), मायस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia gravis), पार्किंसन रोग (Parkinson's disease) और पोलियोमाइलाइटिस (Poliomyelitis) आदि शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cbvh4bu
https://tinyurl.com/22g8b8lz
https://tinyurl.com/2d4lewww
https://tinyurl.com/2at8vcus
https://tinyurl.com/yg3hxb58
चित्र संदर्भ
1. पेड़ से लटके रसेल वाइपर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सरकते हुए रसेल वाइपर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रसेल्स सैंड बोआ (Russel's sand boa) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रसेल वाइपर के दांतों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. कुंडली मारे हुए रसेल वाइपर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)