क्या आप जानते हैं कि एक समय में हमारे लखनऊ में गोमती नदी के अलावा आठ अन्य नदियां भी बहा करती थीं। हालांकि, आज इनमें से चार नदियां लुप्त हो चुकी हैं। फ़रवरी 2024 में नदी वैज्ञानिक प्रो. वेंकटेश दत्ता जी के द्वारा एक सर्वेक्षण कराया गया था। वे बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के शिक्षक हैं। सर्वेक्षण में पता चला कि लखनऊ में प्रवेश करते ही पवित्र गोमती नदी प्रदूषित होने लगती है। प्रदूषण के कारण, इस नदी में घुली ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen (डी ओ)) का स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है। इस कमी से नदी की पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है। आज हम सभी, लखनऊ की इन लुप्त हो चुकी नदियों से रूबरू होंगे। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि हमने आखिर ऐसी कौन सी गलतियां कीं जिनकी वज़ह से ये नदियां आज विलुप्त हो चुकी हैं? आज हम लखनऊ में प्रवेश करने के बाद गोमती नदी में प्रदूषण के स्तर का भी आंकलन करेंगे। इसके बाद, हम यह भी जानेंगे कि गोमती नदी के रिवरफ़्रंट विकास ने नदी, इसमें पनपने वाली मछलियों और इससे जुड़े रोज़गार को कैसे प्रभावित किया? अंत में लखनऊ और इराक की यूफ्रेट्स नदी (Euphrates River) के बीच दिलचस्प संबंध को भी समझेंगे।
आज "गोमती", लखनऊ की सबसे प्रमुख नदी है। लेकिन इसके अलावा भी, शहर से होकर निम्नलिखित आठ नदियां बहा करती थीं।1. रैथ
2. बेहटा
3. कुकरैल
4. बख
5. नगवा
6. अकराडी
7. कडू
8. सई
लेकिन दुर्भाग्यवश, पिछले केवल 50 सालों के दरमियान इनमें से चार नदियाँ पूरी तरह से लुप्त हो गई हैं। इनके विलुप्त होने के कारण बेहद गंभीर और विचारणीय हैं। दरअसल इन नदियों के तल पर अतिक्रमण कर इंसानों ने घर, कॉलोनियाँ और सड़कें बना दीं। शेष बची चार नदियां भी इतनी छोटी कर दी गई हैं, कि इन्हें अब नाले या ड्रेन कहा जाता है।
1980 और 1990 के दशक के आख़िर में, नदियों और झरनों के दलदली इलाकों और बाढ़ के मैदानों पर कई कॉलोनियाँ बनाई गईं। इन इमारतों ने नदियों और दलदली इलाकों को गंभीर नुकसान पहुँचाया। नतीजतन, शहर में भूजल स्तर, हर साल एक मीटर गिरने लगा। यही कारण है कि आज हमारे अधिकांश प्राकृतिक पुनर्भरण क्षेत्र खत्म हो गए हैं। लखनऊ में नाले, तालाब और चारागाह जैसी सार्वजनिक भूमि को बिल्डरों और भूमि डेवलपर्स को बेच दिया गया है।
खुद लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा बड़े तालाबों के स्थान पर कॉलोनियाँ खड़ी कर दी गई हैं। सैटेलाइट छवियों को देखने पर पता चलता है कि पिछले 40 सालों में शहर के 70 फ़ीसदी तालाब ग़ायब हो चुके हैं। इस साल, जनवरी में गोमती नगर में तालाबों पर अतिक्रमण का मामला हाईकोर्ट में भी पहुंचा था। गोमती नगर एक्सटेंशन में 17 तालाबों की ज़मीन पर इमारतें बन गईं। हालांकि प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी थी।
केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि पूरे भारत की कई छोटी नदियां और जलधाराएं भी गायब हो रही हैं। कुछ नदियां, सीवेज नालों में बदल गई हैं, जबकि कई अन्य नदियों पर निजी और सरकारी डेवलपर्स ने कब्ज़ा कर लिया है। इन नदियों के किनारे की ज़मीन की सुरक्षा के लिए कोई कानून भी नहीं है।
लापरवाही से इस्तेमाल की जाने वाली कुछ प्रमुख नदियों के उदाहरणों में लखनऊ की गोमती के अलावा वडोदरा में विश्वामित्री, हैदराबाद में मूसी, नासिक में गोदावरी, पुणे में मुथा और कोयंबटूर में नोय्याल आदि भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, इनकी छोटी सहायक नदियाँ भी बड़ी ही तेज़ी से लुप्त हो रही हैं। शहरी विकास की तेज़ गति और शहरों और उपनगरों में जल निकासी प्रणालियों की उपेक्षा ने इन नदियों को गर्त में धकेल दिया है।
एक हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट में पता चला है कि गोमती नदी के पानी में घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen (डी ओ)) का स्तर भी गंभीर रूप से कम हो गया है। यह नदी के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को लेकर एक गंभीर चेतावनी की तरह है। नदी में रहने वाले पौधों और जानवरों के लिए यह एक बड़े ख़तरे का संकेत है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया (times of India) द्वारा किए गए एक रियलिटी चेक (Reality Check) में ला मार्टिनियर कॉलेज (La Martiniere College) के पास, गोमती नदी के 500 मीटर से अधिक हिस्से में ज़हरीला झाग पाया गया। इस सर्वेक्षण से उस क्षेत्र में उच्च प्रदूषण के हानिकारक स्तर का पता चलता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बी के टी (बक्षी का तालाब) से नीचे की ओर, नदी गऊ घाट में ऑक्सीजन का स्तर. 6.5 मिलीग्राम/लीटर है। लेकिन कुड़ियाघाट में ऑक्सीजन का स्तर गिरकर 4.5 मिलीग्राम/लीटर हो जाता है। गोमती बैराज पर ऑक्सीजन का स्तर, गंभीर रूप से कम होकर, मात्र 1.8 मिलीग्राम/लीटर रह जाता है। वहीँ पिपराघाट एवं शहीद स्मारक में तो स्थति और भी बदतर हो गई जहाँ पर ऑक्सीजन का स्तर गिरकर मात्र (1.5 मिलीग्राम/लीटर) रह गया है।
2015 से 2017 के बीच, लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई रिवरफ़्रंट विकास परियोजना (Riverfront Development Project) ने भी गोमती नदी के लिए कई बड़ी समस्याएँ पैदा कर दी हैं। इस विकास ने नदी और भूमि के बीच पानी के प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया है। इसकी वज़ह से भी नदी की पारिस्थितिकी प्रभावित हुई है। विकास के कारण, शहर के कचरे को बहाकर ले जाने की गोमती की क्षमता भी कम हो गई है। इस परियोजना के कारण, गोमती नदी के काम करने का तरीका ही बदल गया है। इसकी वज़ह से नदी की प्राकृतिक प्रक्रिया और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुँच रहा है।
मानसून के दौरान, गोमती नदी में कभी-कभी भारी बाढ़ आ जाती थी। इससे इसके किनारों पर रेत के ढेर लग जाते थे। स्थानीय लोग फिर इस रेत को खच्चरों पर लादकर ले जाते थे। 1970 के दशक में, बाढ़ के पानी को शहर में प्रवेश करने से रोकने के लिए किनारों के पास दीवारें (चैनलिंग) बनाई गई थीं। हालाँकि, इस दौरान शहरीकरण भी बढ़ता गया और यह नदी की सीमा को समेटता चला गया।
चैनलिंग ने 17 किलोमीटर के हिस्से में नदी के घुमावदार रास्ते को ही बदल दिया। इससे रेत के टीले और तट का ढांचा ही बदल गया। ये क्षेत्र कभी जंगली जानवरों और पौधों का घर हुआ करता था । 2013-14 में, नदी के किनारे की साइट के नीचे की ओर मछली की आठ प्रजातियाँ पाई गईं। लेकिन रिवरफ़्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के बाद, उसी साइट पर केवल एक प्रजाति रह गई।
हालांकि यदि आप इतिहास को खंगाले, तो नदियों के संरक्षण के संदर्भ में लखनऊ का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण नज़र आएगा।
इस इतिहास को एक दिलचस्प क़िस्से से समझिये:
इराक़ में हिंडिया नहर (Hindia Canal), फ़रात नदी से सूखे नजफ़ शहर तक पानी लाती है। इस नहर का हमारे लखनऊ से गहरा संबंध रहा है। इस नहर का निर्माण, 1793 में पूरा हुआ था। दरसअल बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं कि इस नदी के निर्माण में अवध नवाब द्वारा साल 1780 में, 5 लाख रुपए दिए थे। यह पैसा हाजी कर्बला मुहम्मद तेहरानी के स्वामित्व वाली एक फ़ारसी व्यापारिक फ़र्म के ज़रिए भेजा गया था। नवाबों ने इस नहर के रखरखाव और सफ़ाई के लिए पैसे दिए। 1816 में, गाज़ी-उद-दीन हैदर ने गोमती के किनारे शाहनजफ़ इमामबाड़ा बनवाया। यह इमारत भी, इराक़ के नजफ़ शहर में हज़रत अली की कब्र और मस्जिद से प्रेरित थी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cp76vmd
https://tinyurl.com/2a2jazk5
https://tinyurl.com/23dlu3we
https://tinyurl.com/27v7emgj
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ में ला मार्टिनियर कॉलेज के निकट बहती नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. लखनऊ से होकर बहती गोमती नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. लखनऊ में घंटाघर के पास बहने वाली गोमती नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. लखनऊ में गोमती नदी की दुर्गति को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. लखनऊ में गोमती नदी के किनारे घूम रहे लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)