जहां लखनऊ के कुछ निवासी, मानसून के मौसम का आनंद ले रहे हैं, वहीं, कुछ अन्य लोग, इसके खत्म होने का इंतेज़ार कर रहे हैं। दरअसल, मानसून एक ऋतु है। भारत, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में, उपयोग किए जाने वाले, विभिन्न प्राचीन भारतीय कैलेंडरों में, ‘ऋतु’ शब्द का अर्थ, “मौसम” है। वास्तव में, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा(मानसून), शरद, हेमंत(पूर्व-शीतकाल), और शिशिर(शीतकाल), छह ऋतुएं होते हैं। ऋतु के बारे में बात करते हुए, हमें, प्रसिद्ध संस्कृत कवि – कालिदास द्वारा लिखित, संस्कृत कविता – ‘तुसंहार’ की याद आती है। यह कविता, ऋतुओं का वर्णन करती है, और उन्हें मानव नामों से संदर्भित करती है। तो आइए, आज इन ऋतुओं और उनके महत्त्वों के बारे में, विस्तार से जानते हैं। इसके अलावा, हम इन ऋतुओं से जुड़े, मानव नामों का पता लगाएंगे। उसके बाद, हम जानेंगे कि, कालिदास ने अपने महाकाव्य – ‘मेघदूत’, में मौसम और ऋतुओं का वर्णन कैसे किया है।
भारत के छह ऋतुओं का, अनन्य साधारण महत्व हैं। प्रत्येक ऋतु, दो–दो महीनों की अवधि तक, चलते हैं।
1.) वसंत ऋतु: भारत में, वसंत ऋतु, मार्च और अप्रैल महीनों में होता है। हिंदू कैलेंडर में, यह ऋतु, क्रमशः चैत्र और बैसाख के महीनों में, आता है। यह 32 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ, एक सुखद और सुंदर ऋतु होता है। वसंत का मौसम, सर्दीयों के बाद शुरू होता है, और गर्मियां शुरू होने तक रहता है। इस ऋतु में, दिन बड़ा और रातें छोटी हो जाती हैं। लोग कंबल और ऊनी कपड़ों को छोड़कर, हल्के कपड़े पहनने लगते हैं। सब उत्साह और खुशी से भरे होते हैं। पेड़ों पर नए पत्ते आने लगते हैं। पशु-पक्षियों को भी, यह मौसम बहुत पसंद होता है। पक्षी चहचहाने लगते हैं, गाने लगते हैं और तितलियां फूलों पर मंडराने लगती हैं। इसके अलावा, इस मौसम में, होली, वसंत पंचमी, गुड़ी पड़वा, बैसाखी, हनुमान जयंती जैसे, कई प्रसिद्ध त्योहार मनाए जाते हैं।
2.) ग्रीष्म ऋतु: ग्रीष्म ऋतु में, मई और जून महीने शामिल हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह ऋतु, मुख्य रूप से, ज्येष्ठ और आषाढ़ महीनों में आता है। इस ऋतु के दौरान, भारत के अधिकांश हिस्सों में, मौसम बहुत गर्म होता है। यह मौसम, अप्रैल के अंत से शुरू होकर, जून के अंत तक चलता है। ग्रीष्म ऋतु में, औसत तापमान, 38 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। इस ऋतु में, दिन सबसे लंबे होते हैं, जबकि, रातें सबसे कम अवधि की होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में मनाए जाने वाले, प्रमुख भारतीय त्योहार – गुरु पूर्णिमा और रथ यात्रा हैं।
3.) वर्षा ऋतु: वर्षा ऋतु अर्थात मानसून में जुलाई और अगस्त महीने शामिल हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह ऋतु, सावन और भादो के महीनों में आता है। जैसा कि, इसके नाम से पता चलता है, इस ऋतु में, भारत के अधिकांश हिस्सों में वर्षा होती है। गर्मी के मौसम की तुलना में, इस मौसम में, दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं, और औसत तापमान 34 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। पर्यटन क्षेत्र के अधिकारियों द्वारा, इसे कभी-कभी ‘हरित मौसम' भी कहा जाता है। इस मौसम में, मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण त्योहार – ओणम, कृष्ण जन्माष्टमी और रक्षा बंधन हैं।
4.) शरद ऋतु: शरद ऋतु, जिसे ‘पतझड़’ के नाम से भी जाना जाता है, वर्षा के बाद आता है, और मध्य सितंबर से मध्य नवंबर, या अश्विन और कार्तिक के महीनों तक रहता है। इस ऋतु की विशेषता, मध्यम तापमान और साफ़ आसमान है। इस समय, हवा सुस्वादु हो जाती है, जिससे, यह पिकनिक और प्रकृति की सैर जैसी, बाहरी गतिविधियों के लिए, आदर्श समय बन जाता है। हिंदू लोग, शरद ऋतु के दौरान, नवरात्रि मनाते हैं।
5.) हेमंत ऋतु: हेमंत, नवंबर के मध्य से, जनवरी के मध्य तक या मार्गशीर्ष और पौष के महीनों तक चलता है। यह मौसम, शरद ऋतु से सर्दियों में परिवर्तन का प्रतीक है, और अपने ठंडे तापमान के लिए, जाना जाता है। यह वह समय है, जब लोग गाजर का हलवा और मसाला चाय जैसे विभिन्न शीतकालीन व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
6.) शिशिर ऋतु: शिशिर, जिसका अर्थ – ‘सर्दी’ है, जनवरी के मध्य से, मार्च के मध्य तक, या माघ और फाल्गुन के महीनों तक, रहता है। यह ऋतु , भारत के कुछ क्षेत्रों में, ठंडी, ठंडी हवाएं और कभी-कभी बर्फ़बारी भी लाता है। इस समय, लोग गर्म कपड़े पहनते हैं, और अलाव जलाकर, एवं पारंपरिक मिठाइयां खाकर, मकर संक्रांति और लोहड़ी जैसे त्योहार मनाते हैं।
भारत में, इन्हीं ऋतुओं से, जुड़े मानवीय नाम भी हमें मिलते हैं। हमारे करीबी लोगों में, कोई व्यक्ति होता/होती ही है, जिनका नाम, ऋतुओं पर आधारित होता है । ऋतुओं का वर्णन, संस्कृत कवि कालिदास द्वारा लिखित, संस्कृत कविता – ‘तुसंहार’, जैसे साहित्य में भी, किया गया है।
ऋतुओं के नाम, जो आमतौर पर, “पुरुष” व्यक्तियों के लिए उपयोग किए जाते हैं, वे, वसंत, शरद, हेमंत, शिशिर और वर्ष हैं। जबकि, “महिला” नामों में, वसंती, शारदा, हेमंती, ग्रीष्मा और वर्षा, शामिल हैं। इसी तरह की, नामकरण परंपराएं, तमिल में भी प्रयुक्त की जाती हैं।
कालिदास जी ने, ‘तुसंहार’ के अलावा, ‘मेघदूत’ नामक, एक अन्य कविता की भी, रचना की थी । आइए जानते हैं, यह कविता मौसम और ऋतुओं के बारे में, कैसे बात करती है? ‘मेघदूत’ एक कामुक प्रेम कविता है। इस कविता में, कालिदास द्वारा, प्राकृतिक सौंदर्य का अतुलनीय वर्णन, एक प्रेमी से मिलता है, जो वर्षा के मौसम की शुरुआत में, अपनी प्रेमिका से अलग हो जाता है। बादलों को रास्ता दिखाने, और रास्ते में आने वाले क्षेत्रों को चिह्नित करने में, वह कामुक तरीकों से, नदियों और पहाड़ों के बारे में, बात करने से खुद को रोक नहीं पाता है।
इस कविता की कुछ पंक्तियां निम्न प्रकार से है:कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः
शापेनास्तङ्गमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः ।
यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु॥१॥
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्तः स कामी
नीत्वा मासान् कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठः ।
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥२॥
संदर्भ
https://tinyurl.com/4uxe249z
https://tinyurl.com/2jy2j3w8
https://tinyurl.com/74dh4b6b
https://tinyurl.com/3bj64uyv
चित्र संदर्भ
1. कालिदास एवं बादलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, Pexels)
2. गेहूँ की बाली पर बैठी चिड़िया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आसमान में सूरज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बारिश का आनंद लेते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. सर्दियों में, पहाड़ों पर लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कालिदास की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)