प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत में पुलिस का एक लंबा इतिहास रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पुलिस व्यवस्था या आपराधिक न्याय के अस्तित्व के संदर्भ, महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलते हैं। आज के इस दिलचस्प लेख में हम 1947 से पहले के भारत में पुलिस के इतिहास पर चर्चा करेंगे। साथ ही स्वतंत्रता के पहले से लेकर वर्तमान परिदृश्य तक पुलिस बल के परिवर्तन की भी जांच की जाएगी। अंत में भारत में पुलिस सुधारों पर चर्चा की जाएगी।
सनातन धर्म के अनुसार मनु, संसार के प्रथम पुरुष थे। महर्षि मनु ने अपने लेखन में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। ऋग्वेद और अथर्ववेद में वैदिक युग के कुछ प्रकार के अपराधों का उल्लेख मिलता है। कुछ साक्ष्य हड़प्पा काल के दौरान भी सुरक्षा बलों के अस्तित्व को इंगित करते हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र (310 ईसा पूर्व) आपराधिक न्याय प्रणाली पर एक प्रमुख ग्रंथ के रूप में कार्य करता है। यह आधुनिक पुलिस के लिए एक नियमावली जैसा प्रतीत होता है।
चलिए अब भारत में पुलिस व्यवस्था के संक्षिप्त इतिहास पर एक नज़र डालते हैं:
गुप्त वंश: ऐतिहासिक ग्रंथों से संकेत मिलता है कि प्राचीन भारतीय गुप्त वंश को अपनी उत्कृष्ट कानून और व्यवस्था नीतियों के लिए जाना जाता था। इस वंश के तहत एक सुव्यवस्थित पुलिस व्यवस्था स्थापित की गई थी। पुलिस बल के प्रमुख को "महादंडाधिकारी" के रूप में जाना जाता था। इस प्रमुख को "दंडाधिकारी" नामक विभिन्न अधीनस्थों द्वारा समर्थन दिया जाता था।
मुग़ल काल: मुग़लों ने अपने तीन शताब्दी के शासनकाल के दौरान एक अधिक विस्तृत और औपचारिक पुलिस व्यवस्था स्थापित की थी। विभिन्न ग्रंथों में भारत में तुर्क और मुग़ल शासन के आगमन के साथ पुलिस परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव का उल्लेख मिलता है।
ब्रिटिश युग: भारत में कानूनी संहिताओं का अधिनियमन 1609 में शुरू हुआ था ।जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक व्यापारी कैप्टन हॉकिन्स (Captain Hawkins) सूरत में उतरे। इस घटना को भारत में ब्रिटिश आगमन का प्रतीक भी माना जाता था । एक सदी से भी ज़्यादा समय बाद, कंपनी ने सरकार की प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी। आधुनिक आधार पर भारतीय पुलिस का इतिहास 19वीं शताब्दी की शुरुआत से ही शुरू हुआ था । ब्रिटिश काल से पहले, आज की तरह एक अलग नियमित पुलिस बल की अवधारणा पर विचार नहीं किया गया था। ब्रिटिश शासन के शुरू होने के बाद भी, इस विचार पर काफ़ी समय तक ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि 1774 में, वॉरेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने कंपनी के शासन के तहत पुलिस सुधारों के लिए कई उपाय पेश किए। ये उपाय बाद में 1861 के पुलिस अधिनियम में परिणत हुए।
भारत में पुलिस बल की नेपियर प्रणाली: 1843 में अपने आक्रमण के बाद सिंध प्रांत का सशस्त्र मॉडल, जीसीबी ब्रिटिश सेना (GCB British Army) के प्रायद्वीपीय और 1812 के अभियानों के एक अधिकारी चार्ल्स नेपियर (Charles Napier) से जुड़ा हुआ है। यह मॉडल, रॉयल आयरिश कांस्टेबुलरी (Royal Irish Constabulary) पर आधारित था, जिसने 1876 में आयरलैंड में फ़ेनियन विद्रोह (Fenian rebellion) को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सर चार्ल्स नेपियर को सिंध (अब पाकिस्तान में) के नए संलग्न क्षेत्र के प्रशासन का प्रभारी नियुक्त किया गया था। इस अपराध-ग्रस्त क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, स्थानीय पुलिस प्रणाली को पुनर्गठित किया गया था। इस पुनर्गठन का उद्देश्य उचित कामकाज और वांछित परिणाम सुनिश्चित करना था।
नई प्रणाली दो सिद्धांतों पर आधारित थी:1. पुलिस को सेना से पूरी तरह अलग किया जाना चाहिए।2. पुलिस को एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करना चाहिए, जो कानून और व्यवस्था की ज़िम्मेदारियों में कलेक्टरों की सहायता करे।
1917 में, इस्लिंगटन आयोग (Islington Commission) की रिपोर्ट में पहली बार पुलिस को भारतीय पुलिस सेवा के रूप में संदर्भित किया गया था। स्वतंत्रता के बाद, पहले केंद्रीय गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने अखिल भारतीय आधार पर सिविल सेवाओं के आयोजन के महत्व को पहचाना। 1949 में, संविधान सभा के दौरान, उन्होंने संघीय संविधान के तहत देश की अखंडता को बनाए रखने में मदद करने के लिए सेवाओं की एक श्रृंखला की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था ।
पुलिस, एक संगठित संस्था के रूप में 1861 के पुलिस अधिनियम के साथ भारत में अस्तित्व में आई। यह अधिनियम 1857 के भारतीय सिपाही विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों द्वारा पारित किया गया था। इस विद्रोह के दौरान, औपनिवेशिक सेना में भारतीय सैनिक अपने ब्रिटिश शासकों के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए। 'नागरिक' पुलिस बलों के गठन का उद्देश्य आंतरिक पुलिसिंग के लिए सेना पर बहुत अधिक निर्भरता को कम करना था।
इस विकास के अनुरूप, इस अवधि के दौरान बुनियादी आपराधिक कानून भी स्थापित किए गए थे। उदाहरण के तौर पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1861 में लागू की गई थी, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आई.ई. अधिनियम) 1872 में लागू किया गया था, और मूल दंड प्रक्रिया संहिता (सीआर.पीसी) 1898 में लागू की गई थी। 1902 के पुलिस आयोग के गठन को छोड़ कर, भारत में पुलिस सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम तब तक नहीं उठाए गए थे, जब तक देश ब्रिटिश शासन के अधीन था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/22k4r9nf
https://tinyurl.com/23mb6r6p
https://tinyurl.com/2y597g3r
चित्र संदर्भ
1. क्रिकेट मैच के दौरान गश्त करते हुए चेन्नई सिटी माउंटेड पुलिस अधिकारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
2. प्राचीन युद्ध के एक भित्तिचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्रथम विश्व युद्ध में फ़्रांस में मार्च करती भारतीय सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (getarchive)
4. बचाव और राहत कार्य करती भारतीय पुलिस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)