लखनऊ का वास्तविक स्थापत्य इतिहास 1775 में तब पनपना शुरू हुआ जब अवध की राजधानी, फ़ैज़ाबाद से लखनऊ स्थानांतरित हुई। अपनी ऐतिहासिक स्थापत्य संपन्नता के कारण, लखनऊ के लोग, प्राचीन सभ्यताओं के स्थापत्य इतिहास में भी गहरी रुचि रखते हैं। आज के इस लेख में हम, एक ऐसी ही समृद्ध प्राचीन सभ्यता, कासाइट के बारे में जानेंगे। उन्होंने 1595 ईसा पूर्व में पुराने बेबीलोनियन साम्राज्य के पतन के बाद बेबीलोनिया (Babylonia) पर नियंत्रण प्राप्त किया। आज, कासाइट सभ्यता और उसके इतिहास पर चर्चा की जाएगी। वास्तुकला के क्षेत्र में कासाइटों के महत्वपूर्ण योगदान और उपलब्धियों के बारे में भी जानेंगे। साथ ही, उन प्रमुख स्थलों की भी खोज की जाएगी जहाँ कासाइट वास्तुकला पाई जा सकती है। अंत में, हम, इस युग की कला और संस्कृति को समझने की कोशिश भी करेंगे।
ऐसा माना जाता है कि "कासाइटों की उत्पत्ति बेबीलोनिया के उत्तर-पूर्व में ज़ाग्रोस पर्वतों में जनजातीय समूहों के रूप में हुई थी।" 1595 ईसा पूर्व में पुराने बेबीलोनियन राजवंश के पतन के बाद, उनके नेताओं ने बेबीलोन (Babylon) में नियंत्रण हासिल कर लिया। कासाइटों ने 1155 ईसा पूर्व तक (लगभग चार शताब्दियों तक) अपनी सत्ता बनाए रखी।
कासाइट राजवंश के पुनर्निर्माण के लिए, प्रमुख स्रोतों में कुदुरुस (Kudurrus) शामिल हैं। इसके अलावा अमरना पत्र (Amarna Letters), जिसमें 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में कासाइट बेबीलोनियन राजाओं और मिस्र (Egypt) के फ़िरौन (Pharaohs) के बीच पत्राचार शामिल हैं, जो बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। कूटनीति में क्यूनिफ़ॉर्म लिपि (Cuneiform script) और बेबीलोनियन भाषा (Babylonian language) का व्यापक उपयोग, इस अवधि के दौरान बेबीलोनिया की समृद्धि और प्रभाव को दर्शाता है। कासाइट राजवंश ने कई प्राचीन बेबीलोन शहरों का जीर्णोद्धार किया। उन्होंने आधुनिक बग़दाद (Baghdad) के पास दुर-कुरिगालज़ू (Dur-Kurigalzu) नामक एक नया शहर भी बनाया, जिसका नाम कासाइट राजाओं में से एक के नाम पर रखा गया।
कासाइट युग में कई बड़ी एवं महत्वपूर्ण वास्तुकला परियोजनाएँ देखी गईं। इनमें महलों और मंदिरों का निर्माण, साथ ही पहले के युद्धों में क्षतिग्रस्त शहरों का जीर्णोद्धार शामिल था।
कासाइट युग की कई बड़ी एवं महत्वपूर्ण वास्तुकला उपलब्धियाँ निम्नवत दी गई हैं:
दुर-कुरिगालज़ू (Dur-Kurigalzu): दुर-कुरिगालज़ू, मेसोपोटामिया (Mesopotamia) का एक प्राचीन शहर है। यह कासाइट राजवंश की वास्तुकला कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व में राजा कुरिगालज़ू I (Kurigalzu I) द्वारा की गई थी। उस समय, यह शहर, एक राजनीतिक और धार्मिक केंद्र के रूप में कार्य करता था। इस शहर का नाम अपने संस्थापक के नाम पर रखा गया था। यह शहर, रणनीतिक रूप से टाइग्रिस (Tigris) और यूफ्रेट्स (Euphrates) नदियों के बीच स्थित था। इसके खंडहर, जिसमें एक ज़िगगुराट (Ziggurat) और महलनुमा परिसर शामिल हैं, जो कासाइट संस्कृति और प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। उत्खनन से ऐसी कलाकृतियाँ भी मिली हैं जो शहर के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालती हैं।
कुदुरू पत्थर (Kudurru stones): प्राचीन सभ्यताओं के चौराहे पर स्थित कुदुरू पत्थर, मेसोपोटामिया समाज की एक महत्वपूर्ण विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे न केवल भूमि चिह्नक के रूप में काम करते हैं, साथ ही उस समय की परिष्कृत नौकरशाही और कानूनों के प्रमाण के रूप में भी काम करते हैं। ये पत्थर प्रतीकों और क्यूनीफ़ॉर्म शिलालेखों (Cuneiform inscriptions) के साथ, जटिल रूप से उकेरे गए हैं। ये सीमा पत्थर, राजाओं और देवताओं की शक्ति का बखान करते हैं। अपने समय में ये पत्थर कानूनी दस्तावेज़ों के रूप में काम करते थे, जिसमें संप्रभु द्वारा भूमि अनुदान का विवरण होता था। इन कलाकृतियों को समझकर, हम प्राचीन भूमि अधिकारों और दैवीय मध्यस्थता के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं।
लंबे समय तक अस्तित्व में रहने के बावजूद कासाइट राजवंश से जुड़े स्रोत दुर्लभ और बहुत ही सीमित हैं। इनमें से कुछ ही प्रकाशित हुए हैं। इस अवधि के स्थापत्य और कलात्मक निशान भी सीमित हैं। ये निशान, मुख्य रूप से दुर-कुरिगालज़ू की साइट में मिलते हैं, जहाँ कासाइट काल का एकमात्र स्मारक परिसर खोजा गया था। इस परिसर में एक महल और कई पंथ भवन हैं। इसके अलावा, कासाइट राजवंश से जुड़ी अन्य इमारतें, बड़े बेबीलोनियन स्थलों पर पाई गईं। इन शहरों में निप्पुर (Nippur), उर (Ur) और उरुक (Uruk) शामिल हैं। कासाइट साम्राज्य से संबंधित छोटे स्थलों की पहचान तेल मोहम्मद (Tell Muhammad), तेल इनली (Tell Inli) और तेल ज़ुबैदी (Tell Zubeidi) जैसी हनरीम पहाड़ियों में भी की गई है। इसके अतिरिक्त, कासाइट शासन के निशान, मध्य फ़रात (Middle Euphrates) में टेरका (Terqa) के स्थल और फ़ारस की खाड़ी (Persian Gulf) में फ़ैलाका (Failaka) (अब कुवैत (Kuwait) में) तथा बहरेन (Bahrain) के द्वीपों पर भी पाए गए हैं।
कासाइट कलाकारों ने ईंटों की ढलाई और चमक के साथ कई प्रयोग किए। उनके द्वारा विकसित, इस नई तकनीक को बाद के नियो-बेबीलोनियन (Neo-Babylonian) और अचमेनिद (Achaemenid) वास्तुकला में और अधिक विकसित किया गया।
कासाइट काल की सिलेंडर मुहरों (Cylinder seals) पर लंबी आकृतियाँ और लंबे शिलालेख उकेरे गए थे। ये शिलालेख (आमतौर पर प्रार्थनाएँ), रंगीन कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों पर उकेरे गए थे, जिन्हें संभवतः दूर देशों से आयात किया गया था।
देवताओं को समर्पित मंदिरों के जीर्णोद्धार और निर्माण के लिए, कासाइट शासकों द्वारा बहुत प्रयास किए गए। इन निर्माण परियोजनाओं के अवशेष, आज भी इराक (Iraq) में देखे जा सकते हैं। शिलालेख और नींव की ईंटों जैसी उत्कीर्ण समर्पित वस्तुएँ, स्मारक के रूप में मंदिरों में जमा की गईं।ये शिलालेख, बहुत पहले से विलुप्त हो चुकी सुमेरियन भाषा (Sumerian language) में लिखे गए हैं। इनमें लिपि के पुराने रूपों को सावधानीपूर्वक उकेरा गया है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yaa2ypel
https://tinyurl.com/2a2jg8yc
https://tinyurl.com/22rqkc3a
https://tinyurl.com/2cnrdccy
चित्र संदर्भ
1. मेलि-शिपाक के शासनकाल (1186-1172 ईसा पूर्व) को दर्शाते कुदुरू पत्थर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक कुदुरू पत्थर पर कासाइट राजा मेलि-शिपाक द्वितीय द्वारा अपनी पुत्री हुनुबाते-नानाया को दान की गई भूमि के विवरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. दुर-कुरिगालज़ू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 15वीं-11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में कासाइट काल के एक कुदुरू पत्थर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 12वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, युद्ध के अवशेष के रूप में, सूसा ले जाए गए कुदुरू पत्थर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)