क्या आप जानते हैं कि हमारे लखनऊ के अंतिम शासक “नवाब वाजिद अली शाह”, श्री कृष्ण को संसार का सर्वोच्च प्रेमी मानते थे। 1843 में, उन्होंने, भगवान श्री कृष्ण और राधा पर आधारित एक नाटक का निर्देशन भी किया था। श्री कृष्ण से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि 12वीं सदी के कवि जयदेव ने, गीत गोविंद नामक एक महान कृति की रचना की थी। इस सुंदर काव्य में राधा और भगवान कृष्ण के बीच प्रेम का वर्णन किया गया है। गीत गोविंद में, 12 सर्गों के शीर्षकों में श्री कृष्ण के दस अलग-अलग नामों का वर्णन मिलता है। आइए, आज जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर इनमें से कुछ नामों और उनकी उत्पत्ति के बारे में जानें। साथ ही, आज हम यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि भगवान् श्री कृष्ण को “जगद्गुरु” या “विश्व गुरु” क्यों कहा जाता है? अंत में, भगवान श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी के प्रति, नवाब वाजिद अली शाह की रूचि को भी समझेंगे।
12वीं सदी के प्रसिद्ध कवि जयदेव द्वारा रचित ‘गीत गोविंद’ एक सुंदर गीतात्मक कविता है, जिसमें राधा और भगवान श्री कृष्ण के बीच प्रेम का वर्णन किया गया है। गीत गोविंद का, आधुनिक भारतीय की अधिकांश और कई यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इसे संस्कृत काव्य के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है। गीत गोविंद में 12 सर्गों के शीर्षकों में श्री कृष्ण के दस अलग-अलग नाम वर्णित हैं।
गीत गोविंद में वर्णित भगवान श्री कृष्ण के कुछ लोकप्रिय नाम निम्नवत दिए गए हैं:
1. दामोदर: जयदेव द्वारा रचित गीत गोविंद के पहले और ग्यारहवें सर्ग के शीर्षक "दामोदर" नाम से जुड़े हुए हैं। दामोदर का अर्थ, "जिसका पेट रस्सी से बंधा हुआ है " होता है। इसके पीछे की कहानी के अनुसार, बचपन में भगवान् श्री कृष्ण खूब नटखट थे और अपनी शरारतों से अपनी माँ यशोदा को खूब तंग किया करते थे। इसलिए नन्हें कृष्ण की शरारतों को नियंत्रित करने के लिए, माँ यशोदा ने, एक रस्सी का उपयोग करके उनके शरीर को एक खरल से बांध दिया था। हालाँकि, इस रस्सी में कई टुकड़े जोड़ने के बावजूद वह रस्सी हमेशा छोटी पड़ जाती थी। लेकिन आखिरकार श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य लीला समाप्त की और खुद को बंधवा ही लिया। इस प्रकार श्री कृष्ण को अपना "दामोदर" नाम मिला।
2. केशव : जयदेव के गीत गोविंद के दूसरे सर्ग का शीर्षक "केशव" नाम से जुड़ा है। इसका अर्थ "शानदार बालों वाला" या "जिसने केशी नामक राक्षस को मारा" होता है। दरअसल, किवदंती के अनुसार, एक बार दानव राज कंस ने केशी नामक एक राक्षस को भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा था। केशी ने एक विशाल घोड़े का रूप धारण किया और वृंदावन में प्रवेश किया। उस भयानक जानवर को देखकर वहां के निवासी भयभीत हो गए। लेकिन श्री कृष्ण से सामना होने पर उन्होंने उस घोड़े के मुंह में अपनी मुट्ठी घुसा दी, जिससे उसके दांत गिर गए। इसके बाद घोड़े के मुहं के भीतर श्री कृष्ण का हाथ सूजने लगा। अब केशी सांस लेने में असमर्थ हो गया और कुछ ही देर बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार, श्री कृष्ण का एक नाम "केशव" भी पड़ गया।
3. मधुसूदन: जयदेव के गीत गोविंद के तीसरे और चौथे सर्ग के शीर्षक "मधुसूदन" नाम से हैं। इसका अर्थ "मधु का वध करने वाला" होता है। दरअसल मधु और कैटभ दो राक्षस थे, जिन्होंने भगवान ब्रह्मा से वेदों की चोरी कर ली और उन्हें समुद्र में छिपा दिया। यहीं पर भगवान विष्णु ने मधु को मारने और वेदों को पुनः प्राप्त करने के लिए हयग्रीव का रूप धारण किया। एक किवदंती के अनुसार, देवी महादेवी से वरदान प्राप्त करने के बाद, अजेय मधु ने भगवान ब्रह्मा को ललकार दिया। इसके बाद भगवान् ब्रह्मा ने भगवान विष्णु से मदद मांगी, क्योंकि अजेय हो चुके मधु को हराना असंभव प्रतीत हो रहा था। इसके परिणामस्वरूप, भगवान् विष्णु ने हयग्रीव का रूप धारण किया और मधु को नष्ट कर दिया। इसीलिए भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का नाम "मधुसूदन" भी है।
4. पुंडरीकाक्ष: जयदेव द्वारा रचित गीत गोविंद के पांचवें सर्ग का शीर्षक "पुंडरीकाक्ष" है। इस नाम का उपयोग, भगवान विष्णु का वर्णन करने के लिए किया जाता है। इस शब्द का मूल अर्थ "पुंडरीकम" और "अक्षम" के मिश्रण में निहित है। पुंडरीकम का अर्थ "कमल का फूल, विशेष रूप से एक सफ़ेद कमल," और अक्षम का अर्थ "आँख" होता है। इस प्रकार, "पुंडरीकाक्ष" का अर्थ "कमल-नयनों वाला" होता है।
5. मुकुंद: जयदेव के गीत गोविंद के नौवें सर्ग का शीर्षक "मुकुंद" है। एक किवदंती के अनुसार, मुकुंद वह है जो जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्ति प्रदान करता है। एक अन्य व्याख्या मुकुंद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करती है जिसकी मुस्कान चमेली के फूल की तरह उज्ज्वल और नाज़ुक है, जो मुक्ति प्रदान करती है। हालांकि, श्री कृष्ण के व्यक्तित्व के इस आध्यात्मिक आयाम को गीत गोविंद में विस्तार से नहीं दर्शाया गया है। ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि गीत गोविंद , राधा और श्री कृष्ण के बीच शारीरिक प्रेम को समर्पित है।
6. पीतांबर: जयदेव के गीत गोविंद के बारहवें सर्ग का शीर्षक "पीतांबर" है। यह नाम, भगवान श्री कृष्ण की सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित छवि को दर्शाता है। इसमें उन्हें पीले रेशम में सुंदर, गहरे रंग के भगवान के रूप में दर्शाया गया है। "पीतांबरा" शब्द का अर्थ "पीले वस्त्र पहनने वाला" होता है। श्री कृष्ण को अक्सर उनके घुंघराले बालों में मोर के पंख और उनके घुटनों तक पहुँचने वाली बहु-फूलों की माला के साथ चित्रित किया जाता है। कौस्तुभ रत्न उनकी गर्दन को सुशोभित करता है, और वे बांसुरी बजाते हैं। उन्हें परम प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया है, जो वृंदावन में यमुना के किनारे चांदनी रातों में सुंदर गोपियों के साथ नृत्य करते हैं।
भगवद गीता में श्री कृष्ण को 'जीवन के मूल सिद्धांतों का वर्णन करने वाले शिक्षक" के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्हें जगद्गुरु यानी पूरे विश्व के शिक्षक के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, क्योंकि उनकी शिक्षाएँ सभी पर समान रूप से लागू होती हैं।
गीता में, श्री कृष्ण को ईश्वर, सर्वोच्च भगवान के साथ जोड़ा गया है। उन्हें एक व्यक्तिगत भगवान के रूप में माना जाता है। वास्तव में अवैयक्तिक वास्तविकता के विपरीत, एक व्यक्तिगत भगवान को एक व्यक्ति के रूप में जोड़ा जा सकता है। श्री कृष्ण एक प्रकट भगवान हैं। यद्यपि वे अजन्मे और अविनाशी हैं, फिर भी वे सभी रचनाओं के स्वामी हैं। वे अपने आप को अपने स्वभाव में स्थापित करते हैं। अन्य प्राणियों के विपरीत, भगवान श्री कृष्ण अपनी शक्ति और स्वतंत्र इच्छा के माध्यम से जन्म लेते हैं। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि मानव जाति के आध्यात्मिक उत्थान के लिए ईश्वर बार-बार जन्म लेते हैं।
क्या आप जानते हैं कि लखनऊ में आज भी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव 'जन्माष्टमी' के अवसर पर नवाब वाजिद अली शाह को याद किया जाता है। लखनऊ के अंतिम शासक, वाजिद अली शाह, श्री कृष्ण को सर्वोच्च प्रेमी के रूप में मानते थे। राधा के प्रति उनका रिश्ता, प्रेमी और प्रेमिका तथा प्राणी और निर्माता के बीच परम मिलन का प्रतीक है।
कृष्ण की गहन आत्मीयता और प्रशंसा की भावनाओं से सराबोर गीत, वाजिद अली शाह को खूब पसंद थे। ये गीत, कथक के साथ एक संगत का काम करते हैं। वाजिद अली शाह, पेशेवर कथकों द्वारा बताई गई कहानियों से मंत्रमुग्ध हुए। इन कहानियों में मथुरा में कृष्ण के रमणीय कारनामों को दर्शाया गया था । मथुरा में श्री कृष्ण ने अपना बचपन पशुपालकों के परिवार के साथ बिताया था। वाजिद अली शाह ने अपना लंबा जीवन, श्री कृष्ण से जुड़ी कविता लिखने और नाटकों का निर्देशन करने में बिताया। 1843 में, उनका पहला नाटक एक निजी समारोह में मंचित किया गया। यह नाटक राधा और कृष्ण के बीच प्रेम पर केंद्रित था। उन्होंने मथुरा से ब्राह्मण अभिनेताओं के एक समूह को काम पर रखा था, और उनकी पसंदीदा पत्नियों ने उस नाटक में प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं।
इस क्षण को भारतीय रंगमंच के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब एक मुस्लिम सम्राट ने भगवान श्री कृष्ण और उनके प्रेम संबंधों के बारे में एक नाटक का निर्देशन किया। वाजिद अली शाह 1847 में शासक बने। वे पहले से ही द रिवर ऑफ़ लव (The River of Love) और द ओशन ऑफ़ अफ़ेक्शन (The Ocean of Affection) नामक दो लंबी और रोमांटिक कृतियां लिख चुके थे। द रिवर ऑफ़ लव को क्षेत्र की जीवंत लोक नाट्य परंपरा में एक संगीतमय मंच प्रदर्शन के रूप में रूपांतरित किया गया था। इसमें श्री कृष्ण की कहानी भी बताई गई थी।
नाटक मंचन के दौरान वाजिद अली शाह ने अपनी प्रशंसात्मक फुसफुसाहट के साथ प्रवेश किया । वे सफ़ेद मलमल में लिपटे हुए थे और उनके बाल उनके कंधों पर लहरा रहे थे। उनका शरीर, बारीक पिसे हुए फ़िरोज़ा और मोतियों से बने नीले रंग के पाउडर से ढका हुआ था। उनके चारों ओर, गोपियों के वेश में उनकी दासियां, शानदार गहनों से सजी हुई थीं। इस प्रदर्शन के लिए, श्री कृष्ण के राधा के प्रति प्रेम से जुड़ी उर्दू में कविताएँ रची गईं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/249j52p4
https://tinyurl.com/22yjxwxe
https://tinyurl.com/22yq3dym
चित्र संदर्भ
1. नवाब वाजिद अली शाह और श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. बाल कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. राधा और कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. राधा और कृष्ण की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)