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अद्वितीय डिज़ाइन और आकार के पारंपरिक भारतीय फ़र्नीचर, हमारे घरों को देंगे नवीन आयाम

लखनऊ

 13-08-2024 09:32 AM
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ
हमारे शहर लखनऊ में, आज फ़र्नीचर का बड़ा बाज़ार मौजूद है। हमारे शहर में आप अद्वितीय डिज़ाइन और आकार के बिस्तर, मेज़, कुर्सियां आदि, आसानी से पा सकते हैं। हमारे भारतीय फ़र्नीचर में, कई युगों से परिवर्तन आएं हैं और ये दुनिया भर की संस्कृतियों और क्षेत्रों के मिश्रण के साथ विकसित हुआ है। भारत की वर्तमान फ़र्नीचर शैलियां, इस बात का एक बड़ा उदाहरण हैं कि, कैसे विविध कलात्मक शैलियां विदेशी प्रभावों के साथ मिश्रित हुईं, और अद्वितीय कार्य में परिवर्तित हुईं हैं । तो चलिए, आज हम भारतीय फ़र्नीचर के इतिहास के बारे में विस्तार से जानेंगे। उसके बाद, हम भारतीय फ़र्नीचर और उनके डिज़ाइनों पर हुए, विदेशी संस्कृतियों के प्रभाव पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम कुछ पुराने भारतीय फ़र्नीचर वस्तुओं के बारे में जानेंगे, जो आज फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं।
हालांकि, फ़र्नीचर कभी भी भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं रहा है, परंतु आज भारतीय फ़र्नीचर अपने स्थायित्व और विवरण के लिए प्रसिद्ध है। फिर भी, वेदिक ग्रंथों में पीढ़ा, खाता, मुंडा आदि फ़र्नीचर वस्तुओं के संदर्भ मौजूद है। लेकिन, चूंकि वे आम उपयोग में नहीं थे, उन दिनों फ़र्नीचर लोकप्रिय नहीं हो सका।
प्रारंभिक भारत में, बहुत कम संस्कृतियों में, फ़र्नीचर निर्माण देखा गया है। जबकि, यह कौशल दक्षिण भारत में, चौदहवीं शताब्दी के विजयनगर साम्राज्य के दौरान अपने चरम पर था। उस समय, लकड़ी के कारीगरों को राजपरिवार द्वारा सम्मान दिया जाता था। तत्कालीन फ़र्नीचर, शाही सिंहासन, महलों के दरवाज़े और खंभे आदि रूपों से औपचारिक था। और अधिकांश लोगों के घरों में फ़र्नीचर नहीं था।
इसके बाद, 16वीं शताब्दी के मध्य में मुगल उत्तरी भारत में आए, और फ़र्नीचर पर अपना प्रभाव छोड़ने लगे। इस प्रकार, उत्तर भारत में, हड्डी या हाथी दांत से जड़ित सजावट वस्तुएं एवं गहरे रंग की लकड़ी और दर्पणों के उपयोग के साथ, लेखन मेज़ और टेबल आदि प्रमुख हैं।
1500 के दशक में भारत में यूरोपीय लोगों का आगमन शुरू हुआ। देश के कुछ हिस्सों पर पुर्तगाली, फ़्रांसीसी और डच आक्रमण हुए थे। फिर, 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने भी हमारे देश पर आक्रमण किया। इस अवधि में बसने वाले लोगों ने व्यवसाय और घर स्थापित किए, और इनके लिए फ़र्नीचर की आवश्यकता महसूस की गई। तब उन्होंने भारत के बढ़ई और कारीगरों से, यहां उपलब्ध सामग्री के साथ उसी शैली का फ़र्नीचर बनाने के लिए कहा, जिसका उपयोग वे यूरोप में करते थे।
इस प्रकार, कारीगरों द्वारा उपयोग की जाने वाली लकड़ी की नक्काशी तकनीक और जड़ाई के कारण, इस फ़र्नीचर में बहुत सजावटी गुण थे। जड़ाई के लिए बढ़ई, आबनूस और हाथीदांत जैसी विभिन्न प्रकार की कीमती सामग्री का उपयोग करते थे। इन प्रभावों से विकसित हुई फ़र्नीचर शैलियां मुगल, गोवानीज़(Goanese), र इंडो-डच शैली(Indo-Dutch style) और एंग्लो-इंडियन शैली(Anglo-Indian style) हैं।
उत्तरी भारत में पाई जाने वाली, मुगल शैली पर ज़्यादातर पुर्तगाली प्रभाव था, और यह फ़र्नीचर, आमतौर पर हड्डी या हाथी दांत की जड़ाई के साथ, गहरे दृढ़ लकड़ी से बनाया जाता था। हालांकि, दक्षिण भारत में प्रचलित गोवानीज़ शैली भी पुर्तगालियों से प्रभावित थी। ऐसे फ़र्नीचर काफ़ी अलंकृत थे। ये फ़र्नीचर सामान्यतः ज्यामितीय आकृतियों में निर्मित होते थे।
इस अवधि के दौरान उत्पादित फ़र्नीचर, मुख्य रूप से हल्के रंग की दृढ़ लकड़ी से बनाए गए थे। फिर उन पर, सजावट, नक्काशी या जड़ाई की गई। उस समय, जावा द्वीप(Java island) से भी फ़र्नीचर आयात किया जाता था, जिस पर डच प्रभाव था। दरअसल, उस समय, जावा भी एक डच उपनिवेश था। वहां के फ़र्नीचर वस्तुओं की विशेषता, गहरे रंग की लकड़ियों का उपयोग और उनकी विस्तृत पुष्प नक्काशी है।
इसके अलावा, अंग्रेज़ों ने, उस समय भारत में, फ़र्नीचर शैली पर एक अमिट छाप छोड़ी। एंग्लो-इंडियन फ़र्नीचर भारतीय शासकों के बीच भी लोकप्रिय हो गया। 18वीं शताब्दी ने, ऐसी शैलियों को विकसित किया, जो चिप्पेंडेल(Chippendale) और शेरेटन(Sheraton) शैलियों से मिलती जुलती थीं। फिर भी, ये वस्तुएं भारतीय सजावटी सामग्रियों से प्रभावित थीं ।
आइए, अब कुछ पुराने भारतीय फ़र्नीचर वस्तुओं के बारे में जानते हैं, जो वर्तमान में फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं।
1.) बाजोट: बाजोट या चौकी, एक लकड़ी का स्टूल होता है, जिसका आवासीय उपयोगिता और फ़र्नीचर दोनों में उपयोग किया जाता है। पूजा के लिए बैठने से लेकर, देवताओं को उस पर रखने तक, बाजोट हमेशा से ही भारतीय घरों का हिस्सा रहे हैं। जटिल नक्काशी से लेकर चमकीले जीवंत रंगों में चित्रित, यह भारतीय फ़र्नीचर वस्तु, पुराने ग्रामीण घरों के साथ-साथ शहरी घरों में भी पाए जा सकते हैं। कुछ लोग इनका छोटे मेज़ के रूप में भी उपयोग करते हैं।
2.) प्राचीन सागौन अलमारियां: सागौन अलमारियां हालांकि पुरानी हो गई हैं, परंतु, वे आज एक फ़र्नीचर के चरित्र के साथ पुनर्जीवित हो गई हैं, जो आकर्षक होने के साथ-साथ उत्तम दर्जे का है। प्राचीन अलमारियां विभिन्न आकार में आती हैं। उन्हें कपड़े की अलमारी से लेकर, दीवारगिरी तक, हर चीज़ के लिए उपयुक्त माना जाता है। किसी के व्यक्तिगत पसंद और आवश्यकताओं के आधार पर, आवास के कक्ष, रसोईघर, भोजन कक्ष या बेडरूम में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इन अलमारियों को उनके किवाड़ के आधार पर अलग किया जाता है। बहुत कम अलमारियों में लकड़ी के चौखट के साथ, कांच के किवाड़ होते हैं। लेकिन, ज़्यादातर अलमारियों में लकड़ी की नक्काशी या उत्कृष्ट चित्रों के साथ, अलंकृत किवाड़ होते हैं। कई मायनों में, ये किवाड़ पारंपरिक भारतीय घरों के, लकड़ी के दरवाज़ों से मिलते जुलते हैं।
3.) भारतीय ओटोमन(Ottoman): भारतीय ओटोमन, सुंदर पारंपरिक कपड़ों के साथ, छोटा स्टूल होता है। ओटोमन की एकमात्र सामान्य चीज़ उनके जीवंत रंग, बनावट और प्रिंट हैं। आज ये भारतीय फ़र्नीचर, छोटे कक्षों के लिए, बैठने की अतिरिक्त जगह बनाते हैं। धातु की कुर्सियों के विपरीत, जो बैठने के लिए बहुत ठंडी होती हैं, ओटोमन एकदम सही फ़र्नीचर के रूप में कार्य करते हैं।
4.) दीवान: दीवान, मूल रूप से, किसी दीवार के सहारे रखी गई, फ़र्नीचर की वस्तु है। यह फ़र्श या लकड़ी के चौखट पर बनी, एक संरचना है, जिस पर गद्दा रखा जा सकता है। हालांकि, आधुनिक समय में वे कई अलग-अलग नामों के साथ विकसित हुए हैं | पारंपरिक भारतीय दीवान, आज भी लगभग हर भारतीय घर में, अपना महत्व रखता है।
5.) लकड़ी की जाली: लकड़ी का विभाजक, भारत और विदेशों के कई पुराने घरों में रहा है। चूंकि, समकालीन और आधुनिक शैलियों ने, इसके रूप को धातु में ढाल लिया है। लेकिन, मूल पुरानी लकड़ी की जालियां खड़े किए जाने वाले, फ़र्नीचर थे, जिन्हें घर में कहीं भी रखा जा सकता था। कई घरों में अभी भी, यह भारतीय फ़र्नीचर दो स्थानों के बीच एक दृश्य अवरोध पैदा करने हेतु या एक सजावटी वस्तु के रूप में जोड़ने के लिए है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5xbrztaf
https://tinyurl.com/49xcuae8
https://tinyurl.com/yhyj6byk

चित्र संदर्भ
1. सामोद पैलेस होटल,जयपुर, के लाउंज को संदर्भित करता एक चित्रण  (wikimedia)
2. फ़र्नीचर निर्माता को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. औपनिवेशिक फ़र्नीचर को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. बाजोट या पूजा चौकी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्राचीन सागौन अलमारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारतीय ओटोमन को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
7. दीवान सोफ़े को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. लकड़ी की जाली को दर्शाता चित्रण (Flickr)


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