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अपने पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आर्थिक निहितार्थों के लिए, अतुल्य है, हिमालय

लखनऊ

 08-08-2024 09:27 AM
पर्वत, चोटी व पठार

हमारे लखनऊ शहर से सबसे नज़दीक हिल स्टेशन चित्रकूट है, जो शहर से 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि, हिमालय पर्वतों के ऊपरी क्षेत्र में नंदा देवी संरक्षित जैवमंडल, अर्थात नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, जंगल का एक शानदार विस्तार है। गंगा के मैदानों और उच्च तिब्बती पठार के बीच स्थित, हिमालय दुनिया की सबसे शानदार पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। हिमालय, अपने पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आर्थिक निहितार्थों के लिए महत्वपूर्ण है। ये दुनिया में सबसे ऊंचे पहाड़ हैं। तो आज हम हिमालय के निर्माण; समय के साथ उनके विकास और हमारे देश की कला एवं संस्कृति पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम भारत में हिमालय के महत्व और लाभों, एवं उनसे जुड़ी चुनौतियों का भी पता लगाएंगे।
हिमालय पर्वत श्रृंखला और तिब्बती पठार का निर्माण, भारतीय एवं यूरेशियन प्लेट(Eurasian Plate) के बीच हुए टकराव के परिणामस्वरूप हुआ है, जो 50 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ था। और तो और, यह टकराव आज भी जारी है। हालांकि, तब से भारतीय महाद्वीपीय प्लेट के उत्तर की ओर बहाव का दर, धीमा धीमा होकर लगभग 4-6 सेंटीमीटर प्रति वर्ष हो गया है। इस धीमी गति की व्याख्या, यूरेशियन और भारतीय महाद्वीपीय प्लेटों के बीच टकराव की शुरुआत; पूर्व टेथिस महासागर(Tethys Ocean) के विलीन होने तथा हिमालय के उत्थान की शुरुआत के रूप में की जाती है।
दरअसल, यूरेशियन प्लेट आंशिक रूप से सिकुड़ गई थी, और भारतीय प्लेट के ऊपर आने लगी थी। लेकिन, उनके कम घनत्व व उच्च उछाल के कारण, इनमें से कोई भी महाद्वीपीय प्लेट नीचे झुक नहीं सकी। इससे हिमालय और तिब्बती पठार को ऊपर उठाने वाली संपीड़न शक्तियों द्वारा, वलन और भ्रंश के कारण, हिमालय क्षेत्र की महाद्वीपीय परत मोटी हो गई। यहां की महाद्वीपीय परत, अपनी औसत मोटाई से दुगनी, अर्थात लगभग 75 किलोमीटर है। इस महाद्वीपीय परत की मोटाई के कारण, क्षेत्र में ज्वालामुखीय गतिविधि नहीं है।
वास्तव में, हिमालय का विकास टेक्टॉनिक प्लेटों(Tectonic plates) के उथल-पुथल के चार प्रमुख चरणों में पूरा हुआ है। वे चरण निम्नलिखित हैं:
१.अंतिम क्रेटेशियस(Cretaceous) से पैलियोसीन(Palaeocene) – काराकोरम चरण,
.अंतिम इओसीन(Eocene) से ओलिगोसीन(Oligocene) – मल्ला जौहर चरण,
३.मध्य मियोसीन(Miocene) से पोंटियन(Pontian) – सिरमुरियन चरण(Sirmurian phase) और
.अंतिम प्लियोसीन(Pliocene) से मध्य प्लेइस्टोसीन (Pleistocene) – शिवालिक चरण।
जबकि, काराकोरम चरण, महाद्वीपों के अभिसरण का प्रतीक है, मल्ला जौहर चरण प्लेटों के टकराव एवं नीचे धंसने का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन, सिरमुरियन उथल-पुथल के दौरान, मुख्य टेक्टोनिक विशेषताएं विकसित हुईं, और हिमालय ने अपना विशिष्ट संरचनात्मक रूप हासिल कर लिया।
इस तरह निर्मित हिमालय का, भारत की कला और संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।
1.आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व: हिमालय को लंबे समय से पवित्र माना जाता रहा है। विभिन्न धर्मों की आध्यात्मिक प्रथाओं में, हिमालय की केंद्रीय भूमिका है। हिमालय को हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में कई देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है। यह क्षेत्र तीर्थयात्राओं के लिए भी एक गंतव्य रहा है, और हिमालय की तलहटी में मठों, आश्रमों और मंदिरों की उपस्थिति उनके आध्यात्मिक महत्व का प्रमाण है।
2.कला और साहित्य पर प्रभाव: अपनी भव्य चोटियों और शांत घाटियों के साथ, हिमालय कलात्मक प्रेरणा का एक निरंतर स्रोत रहा है। कांगड़ा और पहाड़ी शैली के जटिल लघुचित्र, हिमालयी परिदृश्य की अलौकिक सुंदरता को दर्शाते हैं। अजंता गुफ़ा के भित्ति चित्र, भगवान बुद्ध के उनके हिमालयी महल से “महान प्रस्थान” को दर्शाते हैं। हिमालय ने एस. एच. रज़ा, अर्पणा कौर और अंजलि इला मेनन जैसे समकालीन कलाकारों को भी प्रभावित किया है।
3.सांस्कृतिक आदान-प्रदान और परंपराएं: हिमालय ने, भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच, एक सांस्कृतिक पुल के रूप में कार्य किया है। इस क्षेत्र में विभिन्न संस्कृतियों के बीच विचारों, दर्शन और कलात्मक परंपराओं का आदान-प्रदान देखा गया है। भारत से तिब्बत, नेपाल, भूटान और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रसार से अद्वितीय बौद्ध कला, वास्तुकला और प्रथाओं का विकास हुआ है। इसी तरह, हिमालय अपनी विशिष्ट भाषाओं, रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ विविध स्वदेशी समुदायों का घर रहा है।
इसके अलावा, भारत में हिमालय का प्राकृतिक महत्व भी है।
1.) नदियों का स्रोत: प्रचुर वर्षा, विशाल हिम-क्षेत्रों एवं बड़ी हिमनदों के साथ, हिमालय भारत की कई नदियों के पोषक क्षेत्र हैं। ये नदियां हिमालय से बहते हुए, भारी मात्रा में जलोढ़ ले आती हैं। यह जलोढ़, उत्तर भारत के विशाल मैदानों में उपजाऊ मिट्टी के रूप में जमा होता है, जिससे, यह मैदान दुनिया की सबसे उपजाऊ भूमि में से एक बन गया है।
2.) ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्व: देश की लगभग 33% तापीय बिजली और 52% जलविद्युत हिमालय से निकलने वाली नदियों के पानी पर निर्भर है। इससे वे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और जल सुरक्षा आवश्यकताओं का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाते हैं।
3.) मानसून विनियमन: अपनी ऊंचाई, लंबाई और दिशा के कारण, हिमालय, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली ग्रीष्मकालीन मानसून हवाओं को प्रभावी ढंग से रोकते हैं, जिससे बारिश या बर्फ़ के रूप में वर्षा होती हैं। इसके अलावा, वे मध्य एशिया की ठंडी महाद्वीपीय वायुराशियों को भारत में प्रवेश करने से रोकते हैं।
4.) वन संपदा: हिमालय पर्वतमाला वन संसाधनों में भी बहुत समृद्ध हैं । ये पर्वतमाला, उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पतियों का घर है। हिमालय के जंगल वन आधारित उद्योगों के लिए ईंधन की लकड़ी और बड़ी संख्या में कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, हिमालय क्षेत्र में कई औषधीय पौधे भी उगते हैं।
5.) पर्यटन: अपनी प्राकृतिक सुंदरता और स्वस्थ वातावरण के कारण, हिमालय पर्वतमाला में असंख्य पर्यटन स्थल विकसित हुए हैं।
परंतु, भारत में हिमालय से जुड़ी कुछ चुनौतियां भी हैं।
1.) जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ़ पिघलने से, नई हिमनद झीलें बनती हैं, और मौजूदा झीलों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। इससे ‘हिमनद-झील विस्फ़ोट बाढ़’ का खतरा बढ़ सकता है। हिमालय की 200 से अधिक हिमनद झीलों को संकटमय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
2.) अपशिष्ट प्रबंधन का अभाव: आज, हिमालय में शहर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप, कचरे तथा प्लास्टिक के ढेर, अनुपचारित मल, अनियोजित शहरी विकास एवं वाहनों के कारण हो रहे स्थानीय वायु प्रदूषण की वजह से, वहां समस्याएं पैदा हो रही हैं। अधिकांश पर्वतीय गांवों में कबाड़ के सुरक्षित निपटान के लिए कोई स्थानीय व विकेंद्रीकृत सुविधा नहीं है। इसलिए, वे या तो कबाड़ को जला देते हैं, या ढलान पर फेंक देते हैं।
3.) अस्थिर पर्यटन: दुर्भाग्य से, हमारे पहाड़ों के संसाधनों का अत्यधिक दोहन विनाशकारी हो सकता है। इसके अद्वितीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजनन समय सीमा कम होती है, और ये बाहरी अव्यवस्था के प्रति संवेदनशील होते हैं। इस तरह, अस्थिर पर्यटन प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
4.) दोषपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाएं: जलविद्युत परियोजनाओं की संख्या और उनके खराब निर्माण के कारण, बाढ़ व भूस्खलन का प्रभाव बढ़ गया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3ssz3xe7
https://tinyurl.com/3chjtusc
https://tinyurl.com/4d5dzvm9
https://tinyurl.com/33jym9ds

चित्र संदर्भ
1. हिमालय के सौंद्रर्य को दर्शाता चित्रण (needpix)
2. हिमालय के हवाई दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. हिमालय में याकों के कारवां को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिमालय में एक बौद्ध भिक्षु को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
5. हिमालय में एक बौद्ध मठ को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
6. हिमालय से निकलती हुई नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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