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क्या आप जानते हैं कि, हमारा रामपुर शहर समुद्र तल से 288 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो इसे शंकुधारी पौधों (Conifer Plants) के उगने के लिए अनुपयुक्त बनाता है। शंकुधारी, सदाबहार पेड़ होते हैं, और उनकी पत्तियां सुई के आकार की होती हैं। भारत में शंकुधारी वन, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन जंगलों में देवदार, चीड़ और स्प्रूस जैसी प्रजातियां देखने को मिलती हैं। 2,084 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, नैनीताल भारत के सबसे खूबसूरत देवदार पेड़ों का घर है। इस लेख में आज हम शंकुधारी पेड़ों के बारे में जानेंगे। वे भारत और हिमालयी क्षेत्र में कितनी ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं, और पूरे भारत में उनके वितरण के बारे में भी जानेंगे। इसके अतिरिक्त, हम यह देखेंगे कि, शंकुधारी वृक्ष जलवायु व पर्यावरण के लिए किस प्रकार लाभदायक हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि, तराई क्षेत्र क्या है, और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है।
भारत में शंकुधारी वन, विशिष्ट और मनोरम रूप से वितरित है। भौगोलिक तौर पर, ये मुख्य रूप से उत्तरी और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में केंद्रित हैं। ये जंगल हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्यों में पाए जाते हैं। विशाल हिमालय में बसे शंकुधारी पेड़ों के ये क्षेत्र, अद्वितीय पारिस्थितिक क्षेत्र को प्रदर्शित करते हैं। भारत में , अधिक ऊंचाई – समुद्र तल से 1,500 से 3,000 मीटर – पर स्थित ये क्षेत्र, शंकुधारी वनस्पतियों के लिए आश्रय स्थल बनाते हैं।
ऊंचाई व ठंडी जलवायु इन वनों के विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कुरकुरी पहाड़ी हवा और तापमान में मौसमी बदलाव, इन क्षेत्रों में पाई जाने वाली विशिष्ट शंकुधारी प्रजातियों की वृद्धि और स्थिरता में योगदान करते हैं।
शंकुधारी वनों का पारिस्थितिक क्षेत्र, 3,000 से 4,000 मीटर की ऊंचाई तक, 27,500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला है। यह नेपाल में गंडकी नदी से लेकर, पूर्व में भूटान और अरुणाचल प्रदेश एवं तिब्बत तक फैला हुआ है।
पूर्वी हिमालय को बंगाल की खाड़ी के मानसून से वर्षा मिलती है, इसलिए, यह पश्चिम की तुलना में अधिक गीला है, और इसकी वृक्षरेखा अधिक(पश्चिमी हिमालय में 3,000 मीटर की तुलना में 4,500 मीटर) है।
नीचे शंकुधारी वनों के मुख्य जलवायु व पर्यावरण संबंधी लाभों को सूचीबद्ध किया गया है:
१.कार्बन डाइऑक्साइड निस्पंदन: शंकुधारी पेड़ों की एक उल्लेखनीय विशेषता, पूरे वर्ष अपनी सुइनुमा पत्तियों को बनाए रखने की क्षमता है। यह पर्णपाती पेड़ों से भिन्न है, जो पतझड़ और सर्दियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं। इनकी निरंतर पत्तियां, उन्हें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक अनूठा लाभ देती हैं। ठंड के महीनों के दौरान, जब कई अन्य पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं, शंकुधारी पेड़ सक्रिय रूप से वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। जबकि, पर्णपाती पेड़ शीतकालीन अवकाश लेते हैं, शंकुधारी वृक्ष अथक रूप से हमारी हवा को शुद्ध करना जारी रखते हैं।
२.जलवायु-अनुकूलता: विकास के दौरान, शंकुधारी पेड़ों ने ठंडी और शुष्क जलवायु में पनपने की क्षमता विकसित की है। आम तौर पर, शंकुधारी पेड़ अन्य पेड़ों की तुलना में अधिक अनुकूली होते हैं। उनकी पत्तियां और गहरी जड़ प्रणाली, उन्हें पानी को कुशलतापूर्वक बनाए रखने और उपयोग करने में सक्षम बनाती है, जिससे वे सूखे की अवधि के लिए प्रतिरोधी बन जाते हैं। इसके अलावा, उनकी मोटी छाल और राल युक्त तना, ठंड और कठोर मौसम की स्थिति के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। जबकि, पर्णपाती पेड़ अक्सर प्रतिकूल बाहरी प्रभावों से खुद को बचाने के लिए अपने पत्ते गिरा देते हैं, शंकुधारी पेड़ तत्वों का सामना करते हैं और बढ़ते रहते हैं।
३.राल का उत्पादन: राल उत्पादन कई शंकुधारी प्रजातियों की एक आकर्षक विशेषता है। पेड़ की छाल से टपकने वाला यह चिपचिपा पदार्थ, शंकुवृक्ष के जीवित रहने की रणनीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सबसे पहले, राल पानी को बनाए रखने में सहायता करता है। यह एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है, जिससे, पेड़ की बहुमूल्य नमी की हानि कम हो जाती है। दूसरीतरफ़, राल कीटों और कीड़ों के खिलाफ एक प्राकृतिक निवारक के रूप में भी कार्य करता है। राल की चिपचिपी प्रकृति, पेड़ की तरफ़ आने वाले कीड़ों को फंसा सकती है, जबकि, कुछ राल की रासायनिक संरचना कीड़ों को दूर भगा या मार भी सकती है।
दूसरी ओर, तराई क्षेत्र, समतल व जलोढ़ भूमि का एक क्षेत्र है, जो नेपाल-भारत सीमा के साथ-साथ हिमालय की निचली श्रेणियों के समानांतर फैला हुआ है। प्राचीन दलदली भूमि का यह क्षेत्र, पश्चिम में यमुना नदी से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। भारत में, यह गंगा के मैदान का उत्तरी विस्तार है, जो समुद्र तल से लगभग 300 मीटर ऊपर शुरू होता है। यह पूर्व से पश्चिम तक, लगभग 800 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक लगभग 30-40 किलोमीटर तक फैला हुआ है। जबकि, इस क्षेत्र की औसत ऊंचाई 750 मीटर से कम है। तराई की समतल भूमि का निर्माण गाद, मिट्टी, रेत, कंकड़ और बजरी के तलों से बनी गंगा के जलोढ़ से हुआ है।
भारत में तराई क्षेत्र का विस्तार हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों में है। इसके उत्तरी किनारे पर, कई झरने हैं, जो कई धाराएं बनाते हैं, जिनमें महत्वपूर्ण घाघरा नदी भी शामिल है, जो तराई क्षेत्र को काटती है। यही धाराएं तराई के दलदली रूप के लिए ज़िम्मेदार है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2z7pjrw3
https://tinyurl.com/bdh38ahm
https://tinyurl.com/2bed5n96
https://tinyurl.com/4s87hth5
चित्र संदर्भ
1. शंकुधारी वन को दर्शाता चित्रण (pxhere)
2. देवदार के पेड़ों को दर्शाता चित्रण (Rawpixel)
3. शंकुधारी वनों की प्रदर्शनी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शीतोष्ण शंकुधारी वन के विस्तार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. नैनीताल के जंगल को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
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