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कैसे ब्रिटिश शासन ने प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों की भर्ती का विस्तार किया

लखनऊ

 19-07-2024 09:32 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
लखनऊ, क्या आप जानते हैं कि, प्रथम विश्व युद्ध में विश्व स्तर पर 20 मिलियन (२ करोड़) से अधिक लोगों की जान गई थी। उनमें से, 90 लाख से अधिक सैनिक अपने राष्ट्र और परिवारों की रक्षा करते हुए, युद्ध के मैदान में शहीद हो गए। प्रथम विश्व युद्ध अगस्त, 1914 में शुरू हुआ था और चार साल से अधिक समय तक चला। इस लेख में, हम जानेंगे कि, प्रथम विश्व युद्ध कैसे शुरू हुआ, तथा इसके पीछे के  कारण और घटनाएं क्या थीं। साथ ही, हम ब्रिटिश शासन के तहत प्रथम विश्व युद्ध में, भारत के योगदान के बारे में चर्चा करेंगे। हम यह भी देखेंगे कि, अंग्रेजों द्वारा युद्ध में भारतीय सैनिकों की भर्ती और विस्तार कैसे किया गया, और सेना में शामिल होने के बदले में वे भारतीयों को क्या लाभ दे रहे थे। 
दरअसल, यूरोप की प्रमुख शक्तियां(देश) वर्षों से युद्ध की तैयारी कर रही थीं। युद्ध से पहले वहां स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण थी।
इस युद्ध की तैयारी में, निम्नलिखित प्रमुख कारक शामिल हैं:
१.बड़ी और अधिक शक्तिशाली सेनाएं व नौसेनाएं बनाने के लिए, हथियारों की होड़;
२.व्यापार और भूमि पर बढ़ते विवाद;
३.यूरोप में शक्ति संतुलन से असंतोष; और,
४.भूतकाल की शिकायतों से  नाराज़गी ।
यूरोपीय शक्तियों के बीच, जटिल सैन्य गठबंधनों और संधियों ने, यूरोप के अधिकांश हिस्से को विभाजित कर दिया था। इन गठबंधनों और संधियों के परिणाम का मतलब यह था कि, यदि एक देश या शक्ति गुट युद्ध में जाता है, तो संभवतः अन्य देश भी युद्ध में जायेंगे। इस प्रकार, यूरोप में दो विरोधी पक्ष  बन गए:
केंद्रीय शक्तियां:
१.जर्मनी(Germany)
२.ऑस्ट्रिया-हंगरी(Austria-Hungary)
३.ऑटोमन साम्राज्य(तुर्की) (The Ottoman Empire (Turkey))
सहयोगी शक्तियां:
१.फ्रांस(France)
२.रूस(Russia)
३.ग्रेट ब्रिटेन(Great Britain)

इसके अलावा, इटली(Italy),  जिसका शुरू में केंद्रीय शक्तियों से संबद्ध था, ने उनके आक्रमण में शामिल होने से इनकार कर दिया था। हालांकि, मई 1915 में, इटली ऑस्ट्रिया-हंगरी से कुछ क्षेत्र, और मुख्य रूप से  अफ़्रीका में नई औपनिवेशिक संपत्ति हासिल करने की उम्मीद में, सहयोगी शक्तियों में शामिल हो गया। युद्ध के दौरान छोटी यूरोपीय शक्तियों ने अपना पक्ष ले लिया। जबकि, प्रभुत्व संपन्न शक्तियों और उपनिवेशों ने, अपने मातृ देशों में सैनिकों का योगदान दिया। साथ ही, जापान(Japan) और संयुक्त राज्य अमेरिका(United States of America) जैसी शक्तिशाली गैर-यूरोपीय शक्तियां, बाद में मित्र देशों की ओर से युद्ध में शामिल हुईं।
28 जून 1914 को, ऑस्ट्रियाई(Austrian) आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड(Archduke Franz Ferdinand) की हत्या ने, कुछ घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू कर दी, जिसके कारण अगस्त 1914 की शुरुआत में युद्ध शुरु हुआ।
इस तरह शुरु हुए, प्रथम विश्व युद्ध में, हमारे देश भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी – 1.5 मिलियन (15 लाख) की स्वयंसेवी सेना खड़ी की थी। इस युद्ध के दौरान, पहली बार भारतीय सैनिक यूरोपीय धरती पर लड़ रहे थे। उनकी बहादुरी के लिए मिले कई पुरस्कार; युद्ध के मैदानों पर उनकी   कब्रें और स्मारक, ब्रिटेन(Britain) की सेवा में उनके बलिदान के प्रमाण हैं। उनके दशकों  पूर्व अपरिचित योगदान को हालांकि, अब पूरी तरह से स्वीकार किया जा रहा है।
हमारे अपने ऐतिहासिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि, प्रथम विश्व युद्ध में दस लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने विदेशों में सेवा दी थी। सेना का विस्तार, 1914 में 2,39,511 से बढ़कर 1919 तक 14,40,428 कर्मियों तक हो गया था। जबकि, सेना में कोई नियुक्त भारतीय अधिकारी नहीं थे, भारतीय सेना ने फ्रांस, गैलीपोली(Gallipoli), मेसोपोटामिया(Mesopotamia), मिस्र(Egypt) और फिलिस्तीन(Palestine) सहित सभी प्रमुख क्षेत्रों में लड़ाई लड़ी थी।
लेकिन, यह प्रश्न भी यहां महत्त्वपूर्ण है कि, अंग्रेजों ने भारतीयों को सेना में शामिल होने और सेवा करने के लिए कैसे प्रेरित किया। वास्तव में इसके निम्न  कारण हैं:
1.) सामाजिक गतिशीलता: जब युद्ध की तीव्रता और अवधि लंबी हो गई, तो निम्न वर्ग के लोगों को भर्ती किया गया। भारतीय उच्च वर्गों के प्रभुत्व वाले, सैन्य बल में शामिल होने से, निम्न वर्ग के लोगों को पहली बार समानता महसूस हुई।
2.) स्थिति और सम्मान:  विश्व युद्ध में भर्ती, वंचितों के लिए एक अवसर था, जो अपने गांव और मुख्यधारा के व्यवसाय के बाहर रोजगार की तलाश कर रहे थे। सेना में भर्ती से वंचितों को सामाजिक-आर्थिक स्तरीकरण से बाहर निकलने में मदद मिली और समाज में उनका स्थान ऊंचा हुआ। यह उनके लिए काफी महत्वपूर्ण था।
3.) गरीबी से मुक्ति: अंग्रेजों द्वारा प्रति माह 11 रुपये का शुल्क, एक वर्दी और प्रति दिन तीन भोजन की पेशकश की गई थी। अनपढ़ किसानों को आसानी से इसमें शामिल होने के लिए,  राज़ी किया  गया, क्योंकि, तब भोजन की कमी भी थी।
4.) सम्मान और सभ्य जीवन स्तर: युद्ध से उत्पन्न कई चुनौतियों के बावजूद, भारतीय सैनिकों के साथ सम्मान  का व्यवहार करने का प्रयास किया गया। अपने धर्म का पालन करने और अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनके भोजन अधिकारों का भी सम्मान किया गया। साथ ही, इन सैनिकों को अन्य दैनिक सुविधाएं भी प्रदान की गई  थीं।
भारतीय सेना के लिए, सामान्य वार्षिक भर्ती 15,000 पुरुषों की थी। परंतु, युद्ध के दौरान 800,000 से अधिक पुरुषों ने सेना के लिए स्वेच्छा से भाग लिया और 400,000 से अधिक पुरुषों ने गैर-लड़ाकू भूमिकाओं  में योगदान दिया। युद्ध में लड़ने के लिए, बाल सैनिकों को, जिनमें से कुछ की उम्र 10 वर्ष से भी कम थी, भी भर्ती किया गया था। 1918 तक, कुल मिलाकर लगभग 13 लाख पुरुषों ने सेवा के लिए स्वेच्छा से योगदान दिया था। हालांकि, प्रथम विश्व युद्ध में कम से कम 74,187 भारतीय सैनिक मारे भी गए। 
 
संदर्भ 
https://tinyurl.com/2va5xdkc
https://tinyurl.com/52bev7ex
https://tinyurl.com/2p9983nf
https://tinyurl.com/2pzykd6w

चित्र संदर्भ
1. मेसोपोटामिया में दुश्मन के विमानों पर हमला करने की तैयारी करते हुए भारतीय सेना के जवानों को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
2. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आक्रमण की तैयारी करते भारतीय लैंसर्स की एक रेजिमेंट को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
3. युद्ध की तैयारियां करते सैनिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
4. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ़्रांस में भारतीय सेना के मार्च को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
5. 1914-1918 में पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)



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