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भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अहम हिस्सा हैं आयुर्वेद और होम्योपैथी कित्सा

लखनऊ

 18-07-2024 09:31 AM
कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल

हमारा लखनऊ उत्तर भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य सेवा केंद्र बन गया है जोकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से रोगियों को आकर्षित करता है। लखनऊ ने पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति की है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज जैसे संस्थान इस शहर की शान हैं।
आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है, जो प्राचीन लेखों पर आधारित है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए "प्राकृतिक" और समग्र दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। इसी प्रकार होम्योपैथी (Homeopathy) भी चिकित्सा का 200 साल पुराना एक रूप है जो उपचार प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने और शरीर की खुद को ठीक करने की क्षमता के सिद्धांत पर आधारित है। तो आइए, इस लेख में आयुर्वेद और होम्योपैथी की प्रसिद्ध और पारंपरिक औषधीय प्रणालियों एवं उनकी प्रभावशीलता के विषय में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही यह भी देखते हैं कि भारत में कौन से शहर आयुर्वेद की सर्वोत्तम चिकित्सा उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को विकसित करने में आयुष मंत्रालय की भूमिका के बारे में भी जानते हैं और देखते हैं और कि इससे कैसे बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
हमारा देश भारत, विविध संस्कृतियों और समृद्ध परंपराओं की भूमि है, जहां प्राचीन काल से ही कई चिकित्सा पद्धतियां मौजूद हैं। इनमें आयुर्वेद चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली के रूप में सामने आता है, जिसमें मनुष्य के शरीर के साथ-साथ मन  के समग्र कल्याण का उपचार भी किया जाता है। हजारों साल पुरानी जड़ों के साथ, आयुर्वेद स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक प्राकृतिक और व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर आधारित है।
आयुर्वेद, एक संस्कृत शब्द जिसका अर्थ है "जीवन का विज्ञान"। यह चिकित्सा की एक व्यापक प्रणाली है जिसकी उत्पत्ति 5,000 वर्ष पूर्व भारत में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि यह दुनिया की सबसे पुरानी निरंतर प्रचलित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली है। आयुर्वेद में मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन पर  ज़ोर  दिया जाता है, जिसका लक्ष्य बीमारी को रोकना और समग्र कल्याण को बढ़ावा देना है। आयुर्वेद के सिद्धांत पाँच तत्वों के इर्द-गिर्द घूमते हैं: आकाश (अंतरिक्ष), वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। ये तत्व मिलकर तीन प्राथमिक ऊर्जा या दोष बनाते हैं: वात (ईथर और वायु), पित्त (अग्नि और जल), और कफ (जल और पृथ्वी)। प्रत्येक व्यक्ति की एक अनोखी प्रकृति होती है, जो उसके शरीर में मौजूद प्रमुख दोषों से निर्धारित होती है। आयुर्वेदिक में असंतुलन को संबोधित करके और स्व-उपचार को बढ़ावा देकर जीवन शक्ति, दीर्घायु और जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने का कार्य किया जाता है।
आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है, जो प्राचीन लेखों पर आधारित है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए "प्राकृतिक" और समग्र दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक है और भारत की पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेदिक उपचार में मुख्य रूप से पौधों से प्राप्त उत्पाद (लेकिन इसमें पशु, धातु और खनिज भी शामिल हो सकते हैं), आहार, व्यायाम और जीवनशैली शामिल होती है। कुछ अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए नैदानिक परीक्षणों और व्यवस्थित शोध समीक्षाओं में आयुर्वेदिक चिकित्सा को बेहद प्रभावशाली माना गया है।
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि आयुर्वेदिक उपचार से गठिया से पीड़ित लोगों को दर्द से  राहत  और टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित लोगों में लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद मिलती है। हालांकि, अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के लिए आयुर्वेद के महत्व पर बहुत कम वैज्ञानिक प्रमाण हैं। 2013 में किए गए एक नैदानिक परीक्षण के नतीजों में घुटने के गठिया से पीड़ित 440 लोगों में प्राकृतिक उत्पाद 'ग्लूकोसामाइन सल्फेट' (glucosamine sulfate) और दवा 'सेलेकॉक्सिब' (celecoxib) के साथ पौधों के अर्क के दो आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन की तुलना की गई, जिसके परिणाम में सभी चार उत्पादों से दर्द में समान कमी और कार्य क्षमता में सुधार प्राप्त हुआ। इसके अलावा 43 लोगों के साथ एक प्रारंभिक और छोटे NCCIH-वित्त पोषित 2011 पायलट अध्ययन में रूमेटोइड (rheumatoid) गठिया के लिए पारंपरिक और आयुर्वेदिक उपचार समान रूप से प्रभावी पाया गया। परीक्षण के लिए पारंपरिक दवा मेथोट्रेक्सेट (methotrexate) और आयुर्वेदिक उपचार में 40 हर्बल यौगिकों को शामिल किया गया। इसके अलावा 89 पुरुषों और महिलाओं के साथ एक छोटे से अल्पकालिक नैदानिक परीक्षण के परिणामों में पांच आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के उपचार से टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों के लक्षणों में कमी देखी गई। 
इसी प्रकार 2005 और 2006 में किए गए अध्ययनों में अधिकांश आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग की जाने वाली हल्दी को, जो एक जड़ी बूटी है, अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) उपचार में बेहद प्रभावी पाया गया।
भारत में ऐसे कई शहर हैं जो अपने आयुर्वेदिक उपचार के लिए जाने जाते हैं। इनमें से प्रत्येक शहर की अपनी अनूठी विशेषताएं हैं। भारत के कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक शहर, जो समग्र स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करते हैं, निम्न प्रकार हैं:
1. केरल: भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित, केरल को "आयुर्वेद की भूमि" के नाम से भी जाना जाता है। यह मनमोहक राज्य अपने हरे-भरे परिदृश्य, शांत बैकवाटर और प्राचीन आयुर्वेदिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। आयुर्वेदिक उपचार के लिए केरल को एक शीर्ष विकल्प माना जाता है क्योंकि  इसका इतिहास आयुर्वेद से जुड़ा हुआ है। केरल में आयुर्वेद की एक समृद्ध विरासत मौजूद है जो यहां के अनुभवी चिकित्सकों और पारंपरिक आयुर्वेदिक परिवारों की एक लंबी वंशावली के साथ परिलक्षित होती है। केरल पंचकर्म में अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध है, जो विशेष केंद्रों और कुशल चिकित्सकों की पेशकश करता है  जिससे  एक संपूर्ण और परिवर्तनकारी अनुभव सुनिश्चित  होते  हैं। पंचकर्म, एक विषहरण और कायाकल्प चिकित्सा है जो आयुर्वेद के विशिष्ट उपचारों में से ए.क है। इसके अलावा केरल की उपजाऊ मिट्टी में औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों की प्रचुरता आयुर्वेदिक दवाओं और तेलों को तैयार करने के लिए सामग्री का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करती है। यहां के शांत बैकवाटर, सुरम्य हिल स्टेशन और कायाकल्प करने वाले आयुर्वेदिक रिसॉर्ट उपचार और विश्राम के लिए एक सुखद वातावरण उपलब्ध कराते हैं। शांत वातावरण चिकित्सीय अनुभव का पूरक है, जो शांति और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।
2. ऋषिकेश: हिमालय की तलहटी में स्थित, ऋषिकेश "विश्व की योग राजधानी" के रूप में प्रसिद्ध है। ऋषिकेश एक आध्यात्मिक स्थान होने के साथ-साथ   अपने योग और आयुर्वेदिक उपचार के लिए भी जाना जाता है। ऋषिकेश में आयुर्वेद और योग की उपचार शक्तियों को संयोजित  करने का एक अनूठा अनुभव प्रदान किया जाता है। कई आयुर्वेदिक केंद्र एकीकृत कार्यक्रम पेश करते हैं जिनमें योग सत्र, ध्यान और आयुर्वेदिक उपचार शामिल होते हैं, जो कल्याण के लिए समग्र दृष्टिकोण की अनुमति देते हैं। साथ ही ऋषिकेश में कई प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक विद्यालय और संस्थान भी हैं, जो दुनिया भर से छात्रों और चिकित्सकों को आकर्षित करते हैं। इन संस्थानों की उपस्थिति आयुर्वेदिक शिक्षा और अभ्यास का उच्च मानक सुनिश्चित करती है। इसके अलावा पवित्र गंगा नदी, जो ऋषिकेश से होकर बहती है, आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है जो आयुर्वेदिक अनुभव में गहराई जोड़ती है। नदी के किनारे का माहौल, शांत हिमालयी पृष्ठभूमि के साथ मिलकर, उपचार और आत्म-खोज के लिए अनुकूल माहौल बनाता है।
3. चेन्नई: तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई आयुर्वेद के लिए एक आधुनिक केंद्र के रूप में उभरा है, जहां पारंपरिक प्रथाओं का समकालीन प्रगति के साथ मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। यह एकीकरण विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों की  ज़रूरतों को पूरा करते हुए स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की अनुमति देता है। चेन्नई ने चिकित्सा पर्यटन को समर्थन देने के लिए एक  मज़बूत बुनियादी ढांचा विकसित किया है, जिसमें अत्याधुनिक अस्पताल, कल्याण केंद्र और विशेष आयुर्वेदिक सुविधाएं शामिल हैं। इन सुविधाओं के कारण यहां उच्च गुणवत्ता युक्त उपचार और व्यक्तिगत देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित होती है। इसके अलावा यहां कई प्रसिद्ध अनुसंधान संस्थान और विश्वविद्यालय हैं जो आयुर्वेद पर वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। अनुसंधान पर यह जोर नवाचार को बढ़ावा देता है और साक्ष्य-आधारित प्रथाओं को सुनिश्चित करता है, जिससे चेन्नई में आयुर्वेदिक उपचारों की विश्वसनीयता बढ़ती है।
इसी प्रकार होम्योपैथी (Homeopathy) भी चिकित्सा का 200 साल पुराना एक रूप है जो उपचार प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने और शरीर की खुद को ठीक करने की क्षमता के सिद्धांत पर आधारित है। यह 'जैसे के साथ जैसे' द्वारा उपचार के सिद्धांत पर आधारित एक समग्र चिकित्सा प्रणाली है। इस चिकित्सा में विशेष रूप से तैयार, अत्यधिक तनुकृत किए गए तरल पथार्थों का उपयोग करके, बीमारी के प्रति शरीर की स्वयं की उपचार प्रतिक्रिया को उत्तेजित करके उपचार किया जाता है।
होम्योपैथिक के तहत जीवनशैली और वंशानुगत कारकों के साथ-साथ बीमारी के इतिहास को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है। 
यद्यपि होम्योपैथी की प्रभावशीलता अभी तक चिकित्सा विज्ञान द्वारा प्रमाणित नहीं है, होम्योपैथी में वैक्सीन जैसी कोई वस्तु अथवा उपचार नहीं है, और होम्योपैथिक दवाएं गंभीर बीमारियों या संक्रमणों के पारंपरिक चिकित्सा उपचार का विकल्प नहीं हैं।
जबकि होम्योपैथिक दवाओं के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति चिकित्सा उपचार के रूप में इस पर निर्भर करता है और गंभीर बीमारियों या संक्रमण से निपटने के दौरान पारंपरिक चिकित्सा उपचार के प्रतिस्थापन के रूप में होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करता है, तो इस संदर्भ में होम्योपैथी को खतरनाक माना जा सकता है। 
होम्योपैथी दवाओं की प्रभावशीलता को लेकर वैज्ञानिकों में काफी मतभेद है। ऑस्ट्रेलिया (Australia) में, 2015 में, 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान परिषद' (National Health and Medical Research Council (NHMRC) द्वारा उपलब्ध नैदानिक साक्ष्यों की अपनी समीक्षा के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि होम्योपैथी किसी भी स्वास्थ्य स्थिति के लिए प्रभावी है। होम्योपैथी पर NHMRC के निष्कर्ष के अनुसार होम्योपै थी का उपयोग उन स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के लिए नहीं किया जाना चाहिए, जो पुरानी अथवा गंभीर हैं।
भारत की 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति' (National Health Policy, 2017) का लक्ष्य है:
(i) अपने सभी नागरिकों के लिए अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर की उपलब्धि, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो, और
(ii) वित्तीय क्षमता की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच। वर्तमान स्वास्थ्य नीति बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने तथा पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियों, मधुमेह आदि जैसी गैर-संचारी/जीवनशैली संबंधी बीमारियों के कारण समय से पहले मृत्यु दर में कमी पर जोर देते हुए समग्र स्वास्थ्य देखभाल के प्रति भारत सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव का प्रतीक है। 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत सरकार द्वारा कई गुणवत्तापूर्ण लेकिन किफायती स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। पिछले कुछ दशकों से, भारत सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के तहत पोलियो एवं गिनी कृमि रोग का समूल उन्मूलन, कुल प्रजनन   और मातृ मृत्यु दर में कमी और देश के समग्र स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों की ओर अग्रसर है।
हालांकि, भारत   के विशाल आकार और   आबादी के कारण स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करना एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है। लेकिन भारत द्वारा आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ बहुलवादी भारतीय चिकित्सा प्रणालियों (आयुर्वेद, योग, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा) के माध्यम से भारतीय स्वास्थ्य सेवा के समक्ष उत्पन्न इस चुनौती का प्रभावी समाधान खोजा गया है। आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी और सोवा रिग्पा, को सामूहिक रूप से आयुष के अधीन औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अहम भाग बनाया गया हविविधता, कम लागत, कम तकनीकी साधनों, औषधीय दुष्प्रभावों की अनुपस्थिति और प्राकृतिक और जैविक उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता जैसे फायदों के साथ, आयुष भारतीय नागरिकों, विशेषकर वंचितों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।  इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य सेवा में आयुष को मुख्य धारा में लाने से समाज के लिए दो मोर्चों पर फायदा हो सकता है, पहला, इससे पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणालियों का पुनरुद्धार होगा और दूसरा, भारत के नागरिकों को कम लागत वाली, कम तकनीकी साधनों वाली स्वास्थ्य सेवाओं से लाभ होगा।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3k9kbujz
https://tinyurl.com/5n7shduw
https://tinyurl.com/m5b9mfjn
https://tinyurl.com/ms9ratwm

चित्र संदर्भ
1. होम्योपैथी और महर्षि चरक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. हरिद्वार में प्राचीन भारतीय चिकित्सक चरक की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
4. तुलसी के औषधीय पौंधे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. केरल में मरीजों को तेल लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले आयुर्वेदिक उपचार सेट अप, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. ऋषिकेश के आयुर्वेदिक सदन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. होम्योपैथी के जनक सैमुअल हैनिमैन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. होम्योपैथी दवाइयों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. भारत में एक होम्योपैथिक फार्मेसी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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