लखनऊ के इतिहास को 1857 की क्रांति ने एक नया मोड़ प्रदान किया और इसी दौरान यहाँ पर हुए कई अविस्मरणीय कथाओं ने लखनऊ के इतिहास में कई नए अध्याय जोड़ दिए। इन्हीं अध्यायों में रेजीडेंसी में हुयी घटनाएँ अपना एक अलग ही महत्व रखती हैं। रेजीडेंसी में ही उपस्थित बेली गेट 1857 की क्रांति को प्रदर्शित करता हुआ एक मात्र बचा गेट (द्वार) है। यह सवाल बार-बार ज़हन में उठता है कि आखिर ये बेली कौन था और इस गेट का नाम बेली गेट क्यूँ पड़ा।
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में, नवाब सआदत अली खान ने रेसिडेंसी के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में अंग्रेजी कप्तान जॉन बेली के लिए एक विशेष गार्ड ऑफ ऑनर (Guard of Honor) की व्यवस्था की थी। इस प्रकार रेजीडेंसी का यह भाग बेली गार्ड गेट के रूप में जाना जाने लगा। सादे दोहरे खंबों द्वारा समर्थित यह इमारत आकार व प्रकार में लगभग चौकोर है। रेजीडेंसी में शुरुआत में कई द्वार हुआ करते थे परन्तु 1857 की क्रांति और समय के साथ-साथ यहाँ के अन्य द्वार वाटरगेट और नौबत खाना अब मौजूद नहीं हैं।
केवल बेली गार्ड गेट अभी भी बना हुआ है, लेकिन एक बर्बाद स्थिति में, इस आयताकार इमारत में एक विशाल धनुषाकार मेहराब है जो कि मिश्रित शैली का प्रदर्शन करती है। द्वार के प्रत्येक तरफ दो सुरक्षा कर्मी कक्ष हैं। मूल रूप से इस द्वार में बड़े लकड़ी के दरवाजे लगाये गए थे जो कि द्वार से अन्दर आने वाली ताकतों को रोकने की समर्थता प्रदान करते थे। 1857 की क्रांति के दौरान इस द्वार पर भारी नुकसान हुआ था और इसकी दीवार पर आज भी तोप के गोले के निशान देखे जा सकते हैं। आज भी यह द्वार अतीत के पन्नों को समेटे लखनऊ में खड़ा हुआ है।
1. https://www.tornosindia.com/lucknow-residency/
2. http://reflectionsonthelucknowresidency.blogspot.in/2011/08/bailey-guard-gate.html
3. अ पिक्टोरिअल प्रेजेंटेशन, पब्लिकेशन डिवीज़न
4. हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन म्युटिनी ऑफ़ 1857-8 वॉल्यूम-1, सर जॉन विलियम कये
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