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रामायण की किवदंतियां, भारतीय संस्कृति की धमनियों में रक्त की भांति तैरती हैं। रामायण के बिना भारत का इतिहास उतना ही फीका नज़र आता है, जितनी फीकी रंगों के बिना “राजा रवि वर्मा” की पेंटिंग(Painting)। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं, क्यों कि आप भले ही देश के किसी भी राज्य में चले जाएँ, वहां पर आपको रामायण और वहां के किसी स्थल से जुड़ी कोई न कोई किवदंती अवश्य सुनाई दे जाएगी। आज हम बनारस के पावन घाटों से लेकर नेपाल की सुरम्य वादियों तक प्रभु श्री राम और माता सीता से जुड़े ऐसे ही पवित्र स्थलों की यात्रा पर चलेंगे।
प्राचीन काल में, इक्ष्वाकु वंश में दशरथ नामक एक राजा अयोध्या नामक एक सुंदर नगरी पर शासन करते थे। वे एक दयालु और बुद्धिमान राजा थे, जिन्हें उनकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। किंतु उनकी कोई भी संतान नहीं थी, जिस कारण वह हमेशा चिंतित रहते थे। इस संदर्भ में उन्होंने अपने पुरोहित महर्षि वशिष्ठ से सलाह ली, जिन्होंने उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ नामक एक पवित्र अनुष्ठान करने की सलाह दी। यह अनुष्ठान ऋष्यश्रृंग के मार्गदर्शन में किया गया था। इस अनुष्ठान को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था।
अश्वमेध यज्ञ के उपरांत यज्ञ की अग्नि से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जिसके द्वारा राजा दशरथ को दिव्य मिठाई का एक पात्र दिया गया। उन्होंने इस मिठाई को अपनी पत्नियों के बीच वितरित कर दिया, जिसके बाद वे सभी गर्भवती हो गईं। इस यज्ञ के बारह माह के पश्चात्, रानी कौशल्या ने राम नामक एक दिव्य बालक को जन्म दिया, उसके बाद रानी कैकेयी से भरत और रानी सुमित्रा से जुड़वाँ लक्ष्मण और शत्रुघ्न पैदा हुए।
अयोध्या में जन्में नन्हें बालक राम को भगवान् विष्णु का ही मानव अवतार माना जाता है। आज के समय में भी प्रभु श्री राम के जन्म दिवस को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है, जो चैत्र महीने के नौवें दिन पड़ता है। अयोध्या की भांति नेपाल के एक शहर जनकपुर, को भी अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है। इस शहर को भगवान राम की पत्नी सीता का जन्मस्थान माना जाता है। जनकपुर में माता सीता को समर्पित एक भव्य मंदिर भी है। जनकपुर के निवासी भगवान राम को अपना दामाद मानते हैं। जनकपुर के बारे में यह मान्यता है कि यहीं पर माता सीता का जन्म और पालन-पोषण हुआ था। किंवदंती के अनुसार, माता सीता का स्वयंवर भी यहीं पर हुआ था और यहीं पर उनकी भेंट भगवान राम से हुई थी। यह स्थान बिहार सीमा से बमुश्किल 20 किलोमीटर और सीतामढ़ी से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। जनकपुर को देवी सीता का जन्मस्थान और भगवान राम और माता सीता की विवाह स्थली भी माना जाता है। "तालाबों के शहर" के नाम से मशहूर जनकपुर में सत्तर से ज़्यादा तालाब हैं। यहाँ के सुहाने मौसम, रंग-बिरंगे त्योहारों, शानदार मंदिर वास्तुकला और मिलनसार स्थानीय लोगों की वजह से हर साल हज़ारों पर्यटक इस स्थान की ओर आकर्षित होते हैं। अपने धार्मिक महत्व के अलावा जनकपुर अपने समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास, कला, भाषा और साहित्य के लिए भी जाना जाता है, जिस कारण इसे मिथिला सभ्यता का गढ़ और विविध संस्कृतियों और अवसरों का संगम भी माना जाता है।
चलिए अब संक्षिप्त रूप से उन पवित्र स्थलों के बारे में जानते हैं, जो किसी न किसी तरीके से भगवान् राम एवं माता सीता के जीवनकाल से जुड़े हुए हैं।
श्री राम एवं काशी विश्वनाथ: महाकाव्य रामायण में, भगवान राम अपने वनवास के दौरान काशी गए थे। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा की और राक्षस राजा रावण से अपनी पत्नी सीता को बचाने हेतु अपनी यात्रा शुरू करने से पहले उनका आशीर्वाद लिया।
चित्रकूट: चित्रकूट, को अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। आधुनिक भारत में इस स्थान को रामायण के संदर्भ के कारण बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। अपने वनवास के दौरान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण ने चित्रकूट में कई वर्ष बिताए, जिस कारण यह स्थान उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है।
चित्रकूट में ही प्रभु श्री राम के भाई भरत ने भगवान राम को अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु के बारे में बताया और उनसे अयोध्या लौटने का अनुरोध किया। इस दृश्य को भरत मिलाप के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम ने अपने पिता के सम्मान में शुद्धि अनुष्ठान किया, तो उस समय यहाँ पर सभी देवी-देवता भी एकत्रित हुए थे। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों के बीच स्थित, चित्रकूट में ही गुप्त गोदावरी नामक एक पवित्र गुफा है, जिसके बारे में माना जाता है कि यही पर भगवान् श्री राम और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान दरबार लगाया था। यहाँ जाने पर आपको वाल्मीकि आश्रम, स्फटिक शिलम, रामघाट और हनुमान धारा भी ज़रूर देखनी चाहिए।
गोरखनाथ मंदिर: उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में, नेपाल की सीमा के पास गोरखपुर नामक एक स्थान है, जहाँ पर मध्यकालीन संत गुरु गोरखनाथ को समर्पित, गोरखनाथ मंदिर (या गोरखनाथ मठ) एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है। इस शहर का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही रखा गया है। ऐतिहासिक रूप से, यह मंदिर कोसल साम्राज्य का हिस्सा था और छठी शताब्दी ईसा पूर्व में सोलह महाजनपदों में से एक था। इस क्षेत्र पर क्षत्रिय सौर वंश ने शासन किया था, जिसमें भगवान राम शामिल थे।
सीतामढ़ी मंदिर: प्रयागराज और वाराणसी के बीच गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल सीतामढ़ी मंदिर को माता सीता के जन्मस्थान के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि और राम नवमी के त्यौहारों के दौरान, हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं। किंवदंती के अनुसार राजा जनक ने माता सीता को यहीं पर एक खेत में हल जोतते हुए नवजात शिशु के रूप में पाया था। आधुनिक संरचना वाले इस मंदिर में भगवान श्री राम, सीता और हनुमान जी की भी प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के बगल में जानकी कुंड नामक एक तालाब है, जिसके बारे में माना जाता है कि राजा जनक ने यहीं पर शिशु रुपी माता सीता को स्नान कराया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mrxkn84d
https://tinyurl.com/3brwa8t6
https://tinyurl.com/mry5rspk
https://tinyurl.com/mvsfprv7
https://tinyurl.com/bde6wvhs
https://tinyurl.com/4p8pf77a
https://tinyurl.com/2v3k3bjp
https://tinyurl.com/2kbftrzk
चित्र संदर्भ
1. कैकेयी और उसकी कुबड़ी दासी मंथरा द्वारा दशरथ से राम को निर्वासित करने के लिए कहे जाने के दृश्य को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
2. प्रभु श्री राम के जन्म के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जानकी मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
4. काशी विश्वनाथ मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
5. मंदाकिनी नदी पर चित्रकूट स्नान घाट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गोरखनाथ मंदिर को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
7. सीतामढ़ी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
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