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आज हमारे बीच मोबाइल और इंटरनेट जैसी क्रांतिकारी सुविधाएँ आ चुकी हैं, जिन्होनें हमारे संचार करने के तरीके को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। अपने किसी करीबी से दूर होने का दुःख और डर आज कहीं खो सा गया है, क्योंकि आज कोई भी व्यक्ति अपने लोगों से कोसों दूर होने पर भी कुछ मिली सेकंडों के भीतर ही उनसे जुड़ सकता है। लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था। हमारे दादा-दादी और यहाँ तक कि हमारे माता पिता या प्रारंग के कई पाठकों ने स्वयं भी ऐसे दिन देखे होंगे जब पढ़ाई और व्यापार के सिलसिले में घर से दूर रहने वाले लोगों को चिट्ठियां भेजी जाती थी। घर से दूर रहने वाले लोगों को इन चिट्ठियों को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों उनके अपने साक्षात् उनके समक्ष खड़े हो गए हों। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस प्रकार आधुनिक समय में भी किसी से बात या विडियो कॉल (Video Call) करनी हो तो आपको अपने मोबाइल में रिचार्ज कराना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चिट्ठियों (पत्रों) की भी अपनी रिचार्ज प्रणाली हुआ करती थी, और उनके रिचार्ज कूपन (recharge coupons) को "डाक टिकट (postage stamps)" के नाम से जाना जाता है। डाक टिकट का प्राथमिक कार्य यह इंगित करना होता है, कि प्रेषक ने आपकी मेल, डिलीवर करने के लिए आवश्यक डाक शुल्क का भुगतान कर दिया है। आज के इस लेख में हम सभी लखनऊवासी भारत में डाक टिकटों के इसी रोमांचक सफर पर चलेंगे।
डाक सेवाओं के इतिहास में, 1840 में जारी की गई ‘पेनी ब्लैक’ और ‘पेनी टू पैनी ब्लू टिकटों’ (Penny Black and two Penny Blue stamps) को एक महत्वपूर्ण खोज माना जाता है। इन टिकटों का अविष्कार एक अंग्रेजी शिक्षक, आविष्कारक और समाज सुधारक रहे रोलैंड हिल (Rowland Hill) द्वारा किया गया था। वह डाक प्रेषण के क्षेत्र में सुधार करना चाहते थे, जिसके तहत एक प्रयोग के तौर पर उन्होंने पेनी ब्लैक और पेनी ब्लू टिकटों को जारी किया था। उन्होंने सभी मानक-वजन वाले पत्रों के लिए एक एकल कीमत वाली, सस्ती डाक दर का प्रस्ताव रखा था। रोलैंड हिल (3 दिसंबर 1795 - 27 अगस्त 1879) के द्वारा किये गए इन सुधारों से पहले, डाक प्रणली बहुत महँगी हुआ करती थी। जिस कारण मेल प्रणाली तक पहुंच भी बहुत सीमित लोगों की ही थी। लेकिन 10 जनवरी, 1840 के दिन सभी आधे-औंस पत्रों के लिए एक पेनी की डाक टिकट जारी कि गई।
थोड़ा पीछे चलने पर 1800 के दशक की शुरुआत तक यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) की डाक प्रणाली अव्यवस्थित और बेहद जटिल मानी जाती थी। यहाँ तक कि 1837 तक भी ब्रिटिश डाक दरें उच्च, जटिल और विषम ही मानी जाती थीं। इसी प्रणाली में सुधार करने के लिए सर रोलैंड हिल द्वारा डाक के पूर्व भुगतान को इंगित करने हेतु चिपकने वाला टिकट प्रस्तावित किया गया था। डाक टिकट की खोज से पहले चिट्ठी या किसी अन्य सामान को मंगाने वाले प्राप्तकर्ता, आमतौर डिलीवरी होने के बाद डाक शुल्क का भुगतान करते थे। यह शुल्क शीट के हिसाब से और चिट्टी द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर लिया जाता था। लेकिन रोलैंड हिल द्वारा जारी की गई पेनी ब्लैक ने 1/2 औंस (14 ग्राम) तक के वजन वाले पत्रों को दूरी की परवाह किए बिना, एक पेनी की एक समान दर पर वितरित करने की अनुमति दे दी।
हालांकि पेनी ब्लैक, को पहली बार यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में 1 मई 1840 के दिन जारी कर दिया गया था, लेकिन यह 6 मई तक इस्तेमाल के लिए वैध नहीं था। इस टिकट पर महारानी विक्टोरिया (Queen Victoria) की प्रोफ़ाइल दी गई। इसी के साथ ट्वोपेनी ब्लू (twopenny blue ) नामक एक दूसरा स्टैम्प भी जारी किया गया, जिसमें आधे औंस से अधिक के पत्रों को भेजने के लिए दो पेनी का मूल्य अदा करना पड़ता था।
इस क्रांतिकारी विचार के लिए रोलैंड हिल को 1860 में नाइट (knighted) की उपाधि दी गई थी। वह एक प्रशासक और शिक्षक थे, जिन्हें मुख्य रूप से आधुनिक डाक सेवा के विकास के लिए जाना जाता है।
सभी मानक-वजन वाले पत्रों के लिए एक अग्रिम भुगतान की एकल डाक दर की मांग सबसे पहले रोलैंड हिल ने ही की थी। उनके भाई एडविन हिल (Edwin Hill) ने लिफाफा बनाने वाली मशीन के एक प्रोटोटाइप का आविष्कार किया था, जो डाक टिकटों की बढ़ती मांग की गति देखते हुए कागज को लिफाफे में बदल देता था। इस खोज के बाद सभी लोगों के लिए मेल भेजना बहुत सुलभ हो गया।
टिकटों की खोज से पहले, मेल प्राप्त करने वाले प्राप्तकर्ता को पहले भुगतान करना पड़ता था। इससे बड़ी समस्याएँ पैदा हो जाती थी। उदाहरण के तौर पर यदि डिलीवरी लेने वाले लोग भुगतान करने से इनकार कर देते थे, तो डाक सेवा पैसे एकत्र नहीं कर सकती थी। इसके अलावा प्रेषक जो चाहें भेज सकते थे था भेजी गई वस्तु का वजन और आकार मायने नहीं रखता था। लेकिन डाक टिकट ने इस समस्या को बड़े ही सफाई के साथ हल किया। इसके बाद पत्रों के डिज़ाइन भी सुंदर बनाए जाने लगे।
पहले टिकटों के साथ, यूके ने मेल रैपर (mail wrappers) की भी पेशकश की। जल्द ही, प्रीपेड लिफाफे और पोस्टकार्ड (prepaid envelopes and postcards) के साथ-साथ कई अन्य एक्सेसरीज़ भी प्रचलित होने लगी।
डाक टिकट की खोज ने पत्र भेजने वाले प्रेषक, पत्र पाने वाले प्राप्तकर्ता और पत्र ले जाने वाले डाक कर्मचारियों सहित सभी के लिए पूरी प्रणाली को आसान बना दिया। इसने डाक सेवा विभाग के ख़जाने को भी भरा जिसके बाद यह एक तेज़ और बेहतर प्रणाली बन गई। डाक टिकट इतने सुविधाजनक साबित हुए कि 1800 और 1900 के दशक में मेल का चलन आसमान छू गया।
भारत का पहला डाक टिकट 1852 में जारी किया गया था। प्रत्येक टिकट को कागज़ पर अलग से उकेरा गया था। इसका आकार गोलाकार था। रिम के चारों ओर 'सिंडे डिस्ट्रिक्ट डॉक (Scinde District Dock)' लिखा हुआ था। और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) का मर्चेंट मार्क इसका केंद्रीय प्रतीक था। स्वतंत्र भारत का पहला डाक टिकट 21 नवंबर 1947 को जारी किया गया था। इसमें भारतीय ध्वज के साथ देशभक्तों का नारा, “जय हिंद” को शीर्ष दाएं कोने में दर्शाया गया था। उस समय इसका मूल्य साढ़े तीन आना था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/48kpp3j3
https://tinyurl.com/ye6pz5zz
https://tinyurl.com/yc5jukh9
https://tinyurl.com/2m7ebr2a
चित्र संदर्भ
1. यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन 1949 भारत के स्टाम्प को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1947 में भारतीय झंडे के डाक टिकट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय डाक सेवा टिकट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. रूस की 150 वीं वर्षगांठ पर पेनी ब्लैक स्टैम्प को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ट्वोपेनी ब्लू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक डाकिये को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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