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300 वर्षों की धरोहर: बस्तियन किलों की वास्तुकला और उनका ऐतिहासिक महत्व

लखनऊ

 27-06-2024 09:56 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

300 वर्षों तक (सोलहवीं शताब्दी के मध्य से उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक) विश्‍वपटल पर गढ़ों का प्रभुत्व रहा, समय के साथ किलों के रूपों में भी परिवर्तन देखा गया। बस्तियन (bastion) किलेबंदी ने पहले इस्तेमाल किए गए मध्ययुगीन किलेबंदी का स्थान ले लिया। किलेबंदी के इन दोनों रूपों के बीच अंतर यह है कि मध्ययुगीन घुमावदार बुर्जों के विपरीत, बैस्टियन सपाट किनारों वाले होते थे। आज हम बस्तियन किलों (bastion forts) की रोमांचक दुनिया में प्रवेश करते हैं। 15वीं सदी के इटली से शुरू हुए इन किलों ने अपनी बहुभुज आकृतियों और कोनेदार बस्तियन के साथ रक्षा प्रणाली में क्रांति ला दी।
इन किलों से सेना संरक्षित स्थानों से हमलावरों पर गोलियां चला सकते थे। बस्तियन की मोटी दीवारें तोप के गोलों के हमले से भी क्षतिग्रस्‍त नहीं होती थीं, और कुछ दिवारें तीव्र ढलान वाली बनाईं गयीं थीं ताकि हमलों को रोका जा सके। महाराष्ट्र में पन्हाला किला जैसे उल्लेखनीय उदाहरण इन संरचनाओं की वास्तुशिल्पीय भव्यता और रणनीतिक महत्व को प्रदर्शित करते हैं और दर्शाते हैं कि कैसे इन अद्भुत डिजाइनों ने इतिहास को आकार दिया और आक्रमणकारियों के खिलाफ क्षेत्रों को मजबूत किया। बस्तियन किला क्या है?
बस्तियन किला एक प्रकार की किलेबंदी थी जिसकी शुरूआत बंदूकधारी युग के दौरान हुई थी, जब तोपों ने युद्ध के मैदान पर अपना प्रभुत्व जमा लिया था। बस्तियन किले को सबसे पहले 15वीं सदी के मध्य में इटली (Italy) में बनाया गया था। खाईनुमा दीवारों से बने यह किले सितारे की आकृति के समान दिखते हैं। किले का डिज़ाइन सामान्यतः बहुभुज होता है, जिसमें दीवारों के कोनों पर बस्तियन होते हैं। यह निकासी के गुप्‍त क्षेत्रों को कवर करते हैं, जिन्हें "डेड ज़ोन" (Dead Zone) कहा जाता है, और बस्तियन किलों का डिज़ाइन ऐसा था कि यह मुख्य दीवारों पर बनाए गए संरक्षित स्‍थानों से गोलीबार की सुविधा देते थे. कई बस्तियन किलों में कैवेलियर्स (Cavaliers) भी होते हैं, जो पूरी तरह से मुख्य संरचना के अंदर स्थित द्वितीयक संरचनाएं हैं।
बस्तियन के विशेषताओं का महत्व: बस्तियनों की सपाट प्रकृति मृत क्षेत्रों (डेड ग्राउंड) को तक पहुंचने में मदद करती है, जिससे रक्षकों को किसी भी दिशा से आसानी से गोली चलाने में सुविधा मिलती है। बस्तियन अन्‍य टावरों की तुलना में अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं, इनमें मुख्यतः सुनिश्चित किया जाता है कि तोपखाने और क्रू द्वारा परिचालन गतिविधियों के लिए पर्याप्त स्थान हो।
बस्तियन की दीवारें मोटी हों जो तोप के गोलों के हमले को आसानी से सह लें। कभी-कभी बस्तियन पर सफलतापूर्वक हमला किया जा सकता था, और हमलावर इसे अधिक नुकसान पहुंचा देते थे। इसे रोकने के लिए, अन्य बस्तियन डिज़ाइन सामने आए, और खाईनुमा बस्तियन किले तैयार किए जाने लगे, जिससे मुख्य दीवार पर हमले की संभावना कम हो जाती थी। चैनलों और बस्तियन के शीर्ष के बीच की दूरी इतनी चौड़ी होती थी कि हमलावरों को ऊपर चढ़ने से रोका जा सके। बस्तियन की प्रभावशीलता: बस्तियन कई मायनों में मध्यकालीन टावरों से भिन्न होते हैं:
निम्न ऊंचाई: बस्तियन टावरों से कम ऊंचाई के होते हैं और आमतौर पर सामने की दीवार के समान ऊंचाई के होते हैं। टावरों की ऊंचाई, हालांकि उन्हें चढ़ाई में कठिन बनाती है, लेकिन तोप से इन्‍हें आसानी से ध्‍वस्‍त किया जा सकता है।
खंदक: बस्तियन के सामने आमतौर पर एक खंदक होता है, जिसके विपरीत दिशा में प्राकृतिक स्तर से ऊपर की ओर बनाई गई ढालान होती है। यह हमलावरों की तोपों से बस्तियन के अधिकांश हिस्से को बचा देता है।
सपाट पक्ष: मध्यकालीन टावरों के विपरीत, बस्तियन (प्रारंभिक उदाहरणों को छोड़कर) सपाट पक्षों वाले होते हैं, जिससे मृत भूमि समाप्त हो जाती है और रक्षकों को बस्तियन के सामने के किसी भी बिंदु पर गोली चलाने की सुविधा मिलती है।
बड़ा क्षेत्रफल: बस्तियन सामान्यतः टावरों की तुलना में अधिक क्षेत्रफल कवर करते हैं, जिससे अधिक तोपें चढ़ाई जा सकती हैं और क्रू के लिए पर्याप्त स्थान होता है।
मोटी दीवारें: बस्तियन की दीवारें सामान्‍यत: ईंटों से बनीं होती हैं जिन्‍हें तोपों से आसानी से क्षतिग्रस्‍त किया जा सकता है, इसकी सुरक्षा इन दीवारों में भरे गए मिट्टी के मलबे से की जाती है। बस्तियन के प्रकार
ठोस बस्तियन: यह पूरी तरह से भरे होते हैं, और इनकी दिवारों की ऊंचाई समान स्तर की होती हैं, ये बिना किसी खाली स्थान के केंद्र की ओर बने होते हैं ।
खाली या खोखले बस्तियन: इन बस्तिनों में किनारों एवं केन्‍द्र के सामने की ओर दीवारें होती हैं, जिसमें केंद्र की ओर एक खाली स्थान रहता है।
सपाट बस्तियन: इन्‍हें बंद आंगन के बीच में बनाया गया है, जब आंगन बहुत बड़ा होता है तो उसके किनारों पर बस्तियन द्वारा रक्षा नहीं की जा सकती है। इस शब्द का उपयोग सीधी रेखा पर बने बस्तियन के लिए भी किया जाता है।
बस्तियन किलों ने 16वीं से 19वीं शताब्दी के बीच किलेबंदी में क्रांति ला दी। इटली में 15वीं सदी में शुरू हुए ये किले बहुभुज आकार और मोटी दीवारों के साथ तोपखाने के हमलों का सामना करने में सक्षम थे। बैस्टियन किलेबंदी ने रक्षा संरचनाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे किले के निवासियों को अधिक सुरक्षा मिलती थी। इनका डिज़ाइन(Design) और निर्माण रक्षात्मक युद्ध के बदलते स्वरूप और तकनीकों को दर्शाता है, और वे मध्ययुगीन से आधुनिक युग में किलेबंदी के विकास का प्रतीक हैं। विभिन्न प्रकार के बैस्टियन अपने-अपने समय में प्रभावी रहे और किलों को मजबूत और दुर्जेय बनाते रहे। महाराष्ट्र का पन्हाला किला इनकी वास्तुशिल्पीय भव्यता और रणनीतिक महत्व का एक प्रमुख उदाहरण है, इसे भारत का बस्तियन भी कहा जा सकता है।
पन्हाला किला: पन्हाला किला, महाराष्ट्र, भारत के सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है, जो अपनी रणनीतिक स्थिति, वास्तुशिल्पीय भव्यता और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति 12वीं शताब्दी की है जब इसे शिलाहारा वंश द्वारा बनाया गया था। सदियों से, पन्हाला किला क्षेत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जिसने कई युद्ध, घेराबंदी और शक्ति परिवर्तन देखे हैं। 16वीं सदी में, पन्हाळा किला मराठा साम्राज्य के नेता छत्रपति शिवाजी महाराज के नियंत्रण में आया। शिवाजी महाराज ने पन्हाळा की रणनीतिक महत्वता को मानते हुए किले की रक्षा मजबूत की और कई संरचनाओं, जैसे की चौकी, बस्तियाँ, और दरवाजे, जोड़ दिए। मराठा शासन के दौरान, पन्हाळा किला मराठा सेना के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य करता रहा। इसने मराठा सेना को शत्रु क्षेत्रों पर हमले करने और परिसर के ऊपर नियंत्रण बनाए रखने की सुविधा प्रदान की।
पन्हाळा के किले का एक बड़ा इतिहास है, जिसमें 1660 में बिजापुर के आदिलशाही सुल्तानात के सिद्धी जौहर के नेतृत्व में शिवाजी महाराज द्वारा प्रतिरोध किया गया। यह जंग कई महीनों तक चली, जिसके दौरान मराठा प्रतिरोधक, शिवाजी महाराज के नेतृत्व में, शौर्यपूर्वक हमले का सामना किया। इस प्रकार, बस्तियन किलों ने न केवल आक्रमणकारियों के खिलाफ रक्षा को मजबूत किया बल्कि सैन्य रणनीतियों और वास्तुशिल्पीय डिजाइनों में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाए, जिससे इतिहास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित हुई।

संदर्भ :
https://t.ly/iYWQj
https://tinyurl.com/5n8jvawj
https://tinyurl.com/2xccw4f6
https://tinyurl.com/4t6s5utb
https://tinyurl.com/4bwtf5tp

चित्र संदर्भ
1. पन्हाला किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बस्तियन किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नीदरलैंड के नार्डेन के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. किले पर तैनात तोप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पन्हाला किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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