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2011 की जनगणना के अनुसार, हमारे लखनऊ ज़िले की कुल जनसंख्या 4,589,838 है। देश के सभी व्यक्तियों से संबंधित जनसांख्यिकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आंकड़े एकत्र , संकलित , विश्लेषण और प्रसारित करने के लिए, दस वर्षों के अंतराल में एक विशेष समय पर जनसंख्या जनगणना की प्रक्रिया की जाती है। जनगणना में समस्त जानकारी एक माप इकाई के रूप में ज़िला स्तर पर एकत्र की जाती है। आधिकारिक तौर पर, भारतीय जनगणना गृह मंत्रालय द्वारा 15 बार आयोजित की गई है, जिसमें नवीनतम जनगणना 2011 में हुई थी। भारत की पहली पूर्ण जनगणना 1881 में वायसराय लॉर्ड मेयो (Viceroy Lord Mayo) के तहत की गई थी।
हालाँकि 19वीं सदी की पहली तिमाही में ही विभिन्न शहरों में जानकारी एकत्र करने के प्रयास शुरू हो चुके थे। आइए आज के इस लेख में भारत के जनगणना के इतिहास के बारे में समझते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई और इसमें कौन लोग शामिल थे। इसके साथ ही हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि जनगणना हमें भारत के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने में कैसे मदद करती है और राष्ट्र के विकास में इसका क्या योगदान है।
आधुनिक जनगणना का प्रारंभ:
हालाँकि 1871 की जनगणना को ब्रिटिश शासन के तहत भारत की पहली आधुनिक जनगणना माना जाता है; इसकी शुरुआत कई दशक पहले हो गई थी। भारत में पहली जनगणना जेम्स प्रिंसेप (James Prinsep) द्वारा 1824 में इलाहाबाद शहर में और 1827-28 में बनारस शहर में आयोजित की गई थी। हालांकि, किसी भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना 1830 में हेनरी वाल्टर (Henry Walter) द्वारा ढाका में आयोजित की गई थी। इस जनगणना में लिंग और व्यापक आयु वर्ग के आधार पर जनसंख्या के आंकड़े एकत्र किए गए थे। दूसरी जनगणना 1836-37 में फोर्ट सेंट जॉर्ज (Fort St.George) द्वारा आयोजित की गई थी। 1849 में भारत सरकार ने स्थानीय सरकारों को जनसंख्या का पंचवार्षिक पुनरावृति आयोजित करने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप मद्रास में समय-समय पर लोगों की संख्या का जाएज़ा लेने की एक प्रणाली की शुरुआत की गई, जो शाही जनगणना का आदेश दिए जाने तक जारी रही। यह जनसंख्या पुनरावृति क्रमशः आधिकारिक वर्षों 1851-52, 1856-57, 1861-62 और 1866-67 के दौरान की गई। उत्तर पश्चिमी प्रांतों में जनगणना 1852 में की गई।
उत्तर पश्चिमी प्रांतों में घर-घर जाकर वास्तविक जनगणना 10 जनवरी, 1865 को की गई। 1866-67 की पंचवार्षिक जनगणना को 1871 की शाही जनगणना में मिला दिया गया था। इसी तरह की जनगणना नवंबर 1866 में मध्य प्रांतों में और 1867 में बरार में की गई थी। पंजाब क्षेत्र में जनगणना क्रमशः जनवरी 1855 और 1868 में की गई थी। अवध की जनगणना 1869 में की गई थी। मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता शहरों में क्रमशः 1863, 1864 और 1866 में जनगणना की गई थी। 1869 में रजिस्ट्रार जनरल एच. बेवर्ली (H. Beverley) के तहत बंगाल के निचले प्रांतों की एक प्रायोगिक जनगणना आयोजित की गई।
1871 की जनगणना: 1865 में भारत सरकार और स्थानीय सरकारें इस सिद्धांत पर सहमत हुईं कि 1871 में सामान्य जनसंख्या जनगणना की जाए। वर्ष 1866-67 में देश के अधिकांश हिस्सों में वास्तविक गणना की गई, जिसे 1871 की जनगणना के नाम से जाना जाता है। हालाँकि, इस जनगणना में ब्रिटिश नियंत्रित सभी क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया। इस जनगणना में 17 प्रश्नों के साथ एक गृह रजिस्टर तैयार किया गया था। एकत्र की गई जानकारी नाम, उम्र, धर्म, जाति या वर्ग, नस्ल या राष्ट्रीयता, स्कूल/कॉलेज में पढ़ने और लिखने में सक्षम से संबंधित थी। ये सामान्य प्रश्न पुरुषों और महिलाओं से अलग-अलग पूछे गए। व्यवसाय पर एक प्रश्न केवल पुरुषों से पूछा गया था।
जनगणना 1881 - भारत में पहली समकालिक जनगणना:
1881 की जनगणना पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में समकालिक तरीके से आयोजित की गई पहली जनगणना थी। तब से, 2011 तक हर दस साल में एक बार निर्बाध रूप से जनगणना की जाती रही है। इस जनगणना में फ्रांसीसी और पुर्तगाली क्षेत्रों को छोड़कर ब्रिटिशों के अधीन 11 प्रांतों और 7 रियासतों सहित पूरा देश शामिल था।
जनगणना 1891 – दूसरी जनगणना लगभग 1881 की जनगणना की तर्ज पर 26 फरवरी, 1891 को आयोजित की गई। इस जनगणना में शत-प्रतिशत कवरेज के प्रयास किये गये और वर्तमान बर्मा, कश्मीर और सिक्किम के ऊपरी हिस्से को भी शामिल किया गया। इस जनगणना के दौरान, 1871 की 14 प्रश्नों वाली सूची का प्रचार किया गया और धर्म, जाति, साक्षरता, व्यवसाय आदि के प्रश्नों को संशोधित किया गया।
जनगणना 1901-
तीसरी निरंतर जनगणना 1 मार्च, 1901 को शुरू की गई थी। इस जनगणना में बलूचिस्तान, राजपूताना, अंडमान निकोबार, बर्मा, पंजाब और कश्मीर के दूरदराज़ के क्षेत्रों को शामिल किया गया था और अन्य क्षेत्रों के संबंध में, जहां विस्तृत सर्वेक्षण संभव नहीं था, मकानों की संख्या के आधार पर जनसंख्या का अनुमान लगाया गया था। 1901 की जनगणना अनुसूची में 16 प्रश्न थे।
जनगणना 1911 - 10 मार्च 1911 को कुछ परिधीय क्षेत्रों को छोड़कर ब्रिटिश प्रांतों, रियासतों और मध्यस्थ भारतीय राज्यों में 1911 में जनगणना आयोजित की गई थी। इस जनगणना में कई नई पहलों की शुरुआत की गई। मकानों की संख्या के लिए दीवारों पर लकड़ी के तख्ते चिपकाए गए। प्रांतीय अधीक्षक द्वारा सामान्य ग्राम रजिस्टर पहले से तैयार किया गया था। जनगणना से संबंधित दस्तावेजों और अनुसूचियों का कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। चाय बागानों, खदानों, कारखानों, बंदरगाहों, तीर्थयात्रियों, रेलवे बस्तियों, छावनियों आदि के लिए विशेष प्रावधान किए गए। जनगणना 1911 के प्रकाशन ग्रामीण शहरी वर्गीकरण पर डेटा प्रदान करते हैं। एक शहर होने का मुख्य मानदंड 1 लाख से अधिक जनसंख्या थी। कलकत्ता, बंबई आदि जैसे बड़े शहरी केंद्रों के शहरों के रूप में विकास का दस्तावेज़ी करण किया गया है। इसके साथ ही देश के औद्योगिक विकास के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से औद्योगिक जनगणना आयोजित की गई थी।
जनगणना 1921 - जनगणना के इतिहास में 1921 की जनगणना कई मायनों में उल्लेखनीय रही है। 18 मार्च, 1921 को पूरे भारत में रातों-रात जनगणना की गई। 'जनगणना मौज़ा रजिस्टर' (Census Mauza Register) पेश किया गया। जनगणना के लिए गैर-नगरपालिका शहरों की सूची व्यापार, वाणिज्य और औद्योगिक परिदृश्य के आधार पर पहले ही तैयार कर ली गई थी।
जनगणना 1931 -
भारत की छठी जनसंख्या जनगणना 26 फरवरी, 1931 को आयोजित की गई थी। 1931 की जनगणना 'अस्थायी जनगणना अधिनियम, 1929' (Temporary Census Act 1929 (Act X of 1929) द्वारा शासित थी। इस जनगणना में जनसंख्या, आयु, लिंग, महत्वपूर्ण आंकड़े, बहुभाषावाद, साक्षरता, आजीविका के साधन (मुख्य और सहायक) और कई अन्य पहलुओं पर आंकड़े एकत्र और संकलित किए गए।
जनगणना 1941 - 1941 की जनगणना की संदर्भ तिथि 1 मार्च 1941 थी और यह जनगणना '1939 के जनगणना अधिनियम' (Census Act of 1939 (Act XXIV of 1939) पर आधारित थी। यह स्वतंत्रता से पहले भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई आखिरी जनगणना थी।
आज़ादी के बाद जनगणना:
जनगणना 1951 - स्वतंत्र भारत में पहली दशकीय जनगणना 9 से 28 फरवरी 1951 तक विस्तारित 'डी-फैक्टो' (De-Facto) पद्धति में आयोजित की गई थी। यह जनगणना औपनिवेशिक शासन से आज़ादी के बाद देश में सांख्यिकीय आंकड़े संग्रह के एक नए युग के निर्माण में एक महत्वपूर्ण संगमील साबित हुई। 1951 की जनगणना में शामिल प्रश्नों में जनसांख्यिकी, आर्थिक स्थिति, प्रजनन क्षमता, बेरोजगारी, दुर्बलता (विकलांगता), परिवार का आकार और कई अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलू शामिल थे।
जनगणना 1961 -
1961 की जनगणना 10 फरवरी को शुरू हुई और 1 मार्च को 5 दिनों के पुनरीक्षण दौर के साथ समाप्त हुई। 1961 की जनगणना में सबसे महत्वपूर्ण सुधार एक व्यापक अभ्यास के रूप में अब तक की सहायक मकान नामांकन सूची और आवास जनगणना का संचालन है जिसके परिणामस्वरूप समग्र आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
जनगणना 1971 -निरंतर जनगणना की श्रृंखला में ग्यारहवीं जनगणना 10 और 31 मार्च के बीच 1971 में आयोजित की गई थी, जिसमें 1 और 3 अप्रैल के बीच पुनरीक्षण दौर शामिल था। जनगणना दो चरणों में आयोजित की गई थी: मकान सूचीकरण संचालन और वास्तविक गणना (17 प्रश्नों वाली व्यक्तिगत पर्ची के साथ)। 1971 में वर्तमान में विवाहित महिलाओं की प्रजनन क्षमता, प्रवासन पहलू, अधिक विस्तृत आर्थिक प्रश्नों की जानकारी शामिल की गई थी। देश में शहरीकरण की दिशा को समझने के लिए 'मानक शहरी क्षेत्र (Standard Urban Area (SUA)) का एक नया अवधारणा पेश किया गया ।
जनगणना 1981 -स्वतंत्र भारत की चौथी जनगणना 9-28 फरवरी, 1981 को 1-5 मार्च के पुनरीक्षण दौर के साथ आयोजित की गई थी। जनगणना दो चरणों में आयोजित की गई थी। आंकड़ों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए 1981 में पहली बार डेटा-एंट्री केंद्र स्थापित किए गए थे। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनगणना के आंकड़ों का प्रसार शुरू किया गया।
जनगणना 1991 - 1991 की जनगणना 9 से 28 फरवरी और 1 से 5 मार्च के बीच 1 मार्च, 1991 की संदर्भ तिथि के साथ पुनरीक्षण दौर के बीच आयोजित की गई थी। इस दो चरण की जनगणना के दौरान, तीन अनुसूचियां प्रचारित की गईं। (i) मकान सूची (ii) घरेलू अनुसूची और (iii) व्यक्तिगत पर्ची।
जनगणना 2001 - इक्कीसवीं सदी की पहली जनगणना कई पहलुओं में एक मील का पत्थर साबित हुई। जनगणना संदर्भ तिथि 1 मार्च 2001 थी। जनगणना 2001 के लिए, इतिहास में पहली बार, लगभग 1028 मिलियन रिकॉर्ड वाली संपूर्ण 202 मिलियन अनुसूचियों को बहुत कम समय में ही स्कैन और संसाधित किया गया था। संपूर्ण कोडिंग प्रणाली में व्यापक बदलाव किया गया। भविष्य के क्षेत्राधिकार परिवर्तनों के आधार पर, अद्यतन करने का प्रावधान रखते हुए, देश के प्रत्येक गांव और कस्बों के लिए वृद्धिशील और अद्वितीय 'स्थायी स्थान कोड संख्या' (Permanent Location Code Number (PLCN) निर्धारित की गई।
जनगणना 2011 -
जनगणना 2011 में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने, विस्तृत श्रृंखला आंकड़े संग्रह, अभिनव उपायों और कई अन्य पहलुओं के माध्यम से आधुनिक जनगणना की शुरुआत की गई।
जनसंख्या गणना के लिए जनगणना की अवधि 9 से 28 फरवरी, 2011 और संदर्भ तिथि 1 मार्च थी।
जनगणना का महत्व:
- भारतीय जनगणना भारत के लोगों की विभिन्न विशेषताओं पर विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है।
- शोधकर्ता और जनसांख्यिकीविद जनसंख्या की वृद्धि और रुझानों का विश्लेषण करने और अनुमान लगाने के लिए जनगणना आंकड़ों का उपयोग करते हैं।
- जनगणना के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों का उपयोग सरकार द्वारा प्रशासन, योजना और नीति निर्माण के साथ-साथ विभिन्न कार्यक्रमों के प्रबंधन और मूल्यांकन के लिए किया जाता है।
- जनगणना आंकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के संसद, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व के आवंटन और सीमांकन के लिए भी किया जाता है।
- जनगणना के आंकड़ों का उपयोग व्यावसायिक इकाइयों और उद्योगों द्वारा अपने व्यवसाय को निश्चित क्षेत्रों में मजबूत करने और योजना बनाने के लिए भी किया जाता है।
- वित्त आयोग द्वारा जनगणना के आंकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान किया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/53t9jsnm
https://tinyurl.com/mr3xa7cu
चित्र संदर्भ
1. भारतीयों की पुरानी छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (romanovempire)
2. 1840 में कलकत्ता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय जनसँख्या को संदर्भित करता एक चित्रण (Ideas for India)
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