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हिंदी उपन्यास, भारत के समृद्ध साहित्यिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाते हैं। इनके माध्यम से हमें अपने हिंदी भाषी लोगों की संस्कृति, समाज और भावनाओं के संदर्भ में बहुत कुछ जानने को मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में, शुरुआती लेखकों से लेकर आधुनिक लेखकों तक, हिंदी उपन्यासों में बड़ा बदलाव और विकास देखा गया है, जो दर्शाता है कि समय के साथ समाज के मूल्य और सपने कैसे विकसित हुए हैं। ये उपन्यास सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने, अन्याय को उजागर करने और एक निष्पक्ष समाज का निर्माण करने में एक शक्तिशाली साधन भी रहे हैं। आज, हम ऐसे तीन उपन्यासों पर नज़र डालेंगे , जिन्होंने भारतीय संस्कृति पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला है।
चलिए शुरुआत करते हैं, हिंदी के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक क्लासिक उपन्यास "निर्मला" से।
“निर्मला” मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक लोकप्रिय हिंदी उपन्यास है। इस उपन्यास में निर्मला नामक एक युवा लड़की की कहानी बताई गई है, जिसे अपने पिता की उम्र के बराबर के एक विधुर से शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। इस बीच इसके कथानक में हमें बताया जाता है कि निर्मला के उस वृद्ध विधुर के सबसे बड़े बेटे के साथ प्रेम संबंध हो जाते हैं।
पहली बार 1925 और 1926 के बीच प्रकाशित, यह उपन्यास दहेज प्रथा और बेमेल विवाह जैसे सामाजिक मुद्दों को संबोधित करता है। उपन्यास में काल्पनिक कहानी के माध्यम से प्रेमचंद, 1920 के दशक के भारतीय समाज में सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं। उपन्यास मूल रूप से चाँद नामक एक महिला पत्रिका में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ था, जिसने सदैव ही अपने नारीवादी विषयों पर ज़ोर दिया था। प्रेमचंद के बाद के उपन्यास जैसे कि गोदान (1936 में प्रकाशित) भी निर्मला की भांति ही गरीब ग्रामीणों के शोषण से संबंधित है। उपन्यास निर्मला का अनुवाद कई विद्वानों ने किया है, जिनमें डेविड रुबिन (David Rubin) ने 1988 में (द सेकेंड वाइफ (The Second Wife) और प्रेमचंद के पोते आलोक राय ने 1999 में (निर्मला के रूप में) अनुवाद किया।
निर्मला की कहानी स्वतंत्रता-पूर्व के भारत में स्थापित की गई है, और 1920 के दशक की यथार्थवादी और विस्तृत तस्वीर पेश करती है। यह दहेज प्रथा के हानिकारक प्रभावों को उजागर करती है और लेखक की सामाजिक सुधार और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार की इच्छा को दर्शाती है। इसके माध्यम से प्रेमचंद ने ग्रामीण भारत में गरीबों के संघर्षों को दर्शाया है, जिसमें जाति संघर्ष, गरीबी और शोषण जैसे सामान्य विषयों को छुआ गया है। यह उपन्यास लगभग छह वर्षों के कालखंड में घूमता है, जिसके दौरान निर्मला एक छात्रा से एक पत्नी और फिर एक माँ बन जाती है। उस समय, सामाजिक मानदंडों में आत्म-सम्मान और सार्वजनिक छवि को बहुत महत्व दिया जाता था। भोजन अनुष्ठानिक था, यानी महिलाएँ पुरुषों के खाने के बाद ही खाती थीं।
वास्तव में इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद से, सामाजिक दृष्टिकोण में काफी बदलाव देखा गया। यह उपन्यास उस समय प्रेमचंद की सबसे लोकप्रिय कृतियों में से एक बन गया जब भारतीय समाज में महिलाओं के उत्पीड़न पर लेखकों और कवियों का ध्यान आकर्षित हो रहा था। इसका पहली बार 1988 में अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया था।
आज का हमारा अगला उपन्यास है, श्रीलाल शुक्ल द्वारा लिखित "राग दरबारी", जो कि हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति है।
राग दरबारी, श्रीलाल शुक्ल द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध हिंदी पुस्तक है! श्रीलाल शुक्ल ने अपने काम के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी जीता था। यह पुस्तक स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण भारत में जीवन का हास्यपूर्ण और विस्तृत वर्णन करती है। इस पुस्तक की कहानी छह महीने के कालखंड में शिवपालगंज नामक गाँव में घटती है। इस दौरान, शहर का एक स्नातकोत्तर छात्र उस गाँव का दौरा करता है, जहाँ उसके चाचा एक प्रभावशाली और लोकप्रिय नेता हैं।
पुस्तक में, इस गाँव के पात्रों को उनकी कहानियों और मुख्य पात्रों से संबंधों के माध्यम से पेश किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि सत्ता में बैठे लोग दूसरों के जीवन को कैसे नियंत्रित करते हैं और कैसे सत्ता, केंद्र बन जाते हैं। गाँव का कॉलेज राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र होता है। पुस्तक को पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि कॉलेज का मुख्य उद्देश्य शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय राजनीतिक कौशल विकसित करना है। गाँव में एक वैद्य जी भी हैं, जो एक आयुर्वेदिक चिकित्सक होने के साथ-साथ कॉलेज के प्रबंध निदेशक भी हैं। उनके दो बेटे हैं: एक पहलवान है, और दूसरा छात्र नेता होता है। हर शाम लोग भांग पीते हुए गांव की राजनीति पर चर्चा करने के लिए उस छात्र नेता के घर पर इकट्ठा होते हैं। इस कहानी को एक आम आदमी की दृष्टि से भी दिखाया गया है, जिसका कोई भी काम अधिकारीयों को रिश्वत दिए बिना पूरा नहीं होता है। गांव के व्यापारी पूरी तरह से अपने व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हालाँकि कहानी में जाति एक प्रमुख विषय नहीं है, लेकिनं फिर भी यह एक प्राथमिक पहचान चिह्न है।
यह पुस्तक 20वीं सदी के मध्य में भारत में स्वतंत्रता के तुरंत बाद के ग्रामीण जीवन को दर्शाती है, और उस समय के प्रतिबिंब के रूप में काम करती है। कुश्ती जैसी गतिविधियाँ, जो उस समय आम हुआ करती थीं, आज लगभग गायब हो गई हैं। आश्चर्यजनक रूप से इस उपन्यास में एक लड़की से जुड़ी एक छोटी सी घटना के अलावा लगभग कोई भी महिला पात्र नहीं हैं। कहानी में महिलाएँ केवल पुरुषों की कल्पनाओं में मौजूद हैं और दैनिक गाँव के जीवन में उनकी कोई भूमिका नहीं है। यहाँ तक कि घरेलू दृश्यों में भी महिलाओं का उल्लेख नहीं मिलता है, जिससे ऐसा लगता है कि गाँव में कोई महिला है हीं नहीं । यह नजरिया पुरुष-प्रधान समाज को दर्शाता है, जहाँ महिलाएँ केवल अपने परिवार के पुरुषों के माध्यम से घटनाओं को प्रभावित करती हैं।
पुस्तक लिखे जाने के बाद से 40+ वर्षों में हुए बदलावों के बावजूद, इसके कई पहलू आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। हमारे समाज का मूल आज भी बहुत ज़्यादा नहीं बदला है।
किताब में सनीचर के चरित्र के माध्यम से बहुत बढ़िया तरीके से बताया गया है कि सत्ता कैसे एक व्यक्ति को बदल देती है, जो एक आम आदमी है, जो आखिरकार सत्ता के दलालों का मोहरा बन जाता है। यह इस बात की भी आलोचनात्मक जाँच करता है कि कैसे ग्रामीण जन, सरकारी योजनाओं का फ़ायदा उठाते हैं और उपलब्ध धन के आधार पर अपने पेशे को अपनाते हैं। हालाँकि वैद्य जी का भतीजा गाँव का बौद्धिक विश्लेषण करने की कोशिश करता है, लेकिन अंत में उसे पता चलता है कि कुछ नहीं किया जा सकता। वह खुद को ग्रामीणों के मामलों में उलझा हुआ पाता है, चीज़ों पर सवाल उठाता है लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिलता। यह संभवतः उन बुद्धिजीवियों पर व्यंग्य है जो मानते हैं कि उनके पास सभी उत्तर हैं लेकिन वे वास्तविकता से असल में कटे हुए हैं।
आज का हमारा तीसरा और अंतिम उपन्यास भीष्म साहनी द्वारा लिखित "तमस" है, जो भारत के विभाजन के दौरान सांप्रदायिक संघर्ष, धार्मिक असहिष्णुता और मानवीय त्रासदी की गहराई से जांच करता है।
"तमस" भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक (भारत और पाकिस्तान के विभाजन) को दर्शाता एक उपन्यास है। यह उपन्यास 1947 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान लेखक भीष्म साहनी द्वारा देखी गई वास्तविक घटनाओं पर आधारित है, और शहरों में बढ़ते तनाव के दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों के जीवन को दर्शाता है। इसकी कहानी एक निम्न जाति के चर्मकार नाथू से शुरू होती है, जिसे मुराद अली नामक एक समृद्ध मुस्लिम व्यक्ति पांच रुपये देकर एक सुअर को मारने के लिए कहता है। नाथू उसके लिए काम करता है और सुअर के शरीर को एक ठेले में छोड़ देता है। अगली सुबह, उस सुअर का शव विभिन्न धर्मों के सदस्यों की एक समिति को एक स्थानीय मस्जिद की सीढ़ियों पर मिलता है। इस कृत्य को मुस्लिम समुदाय द्वारा हिंदू समुदाय के उकसावे के रूप में देखा जाता है। इसके जवाब में, एक गाय को मार दिया जाता है, जिससे आगामी विभाजन के कारण पहले से ही तनावपूर्ण शहर में और भी दंगे और हिंसा होती है।
"तमस" भारतीय इतिहास के एक हिंसक और विभाजित समय की एक झलक प्रदान करता है, जो पाठकों को संघर्ष में शामिल लोगों के दिमाग को समझने में मदद करता है। तमस का लेखन हिंदी के जाने-माने लेखक भीष्म साहनी ने किआ था। वे एक लेखक, नाटककार और अभिनेता थे, जो विभाजन के अपने भावुक वर्णन के लिए प्रसिद्ध थे। साहनी को 1998 में साहित्य के लिए पद्म भूषण पुरस्कार और 2002 में साहित्य अकादमी फेलोशिप दी गई। साहनी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे और उन्होंने रावलपिंडी में 1947 के दंगों के दौरान शरणार्थियों के लिए राहत कार्य आयोजित करने में मदद की। उन्होंने 1948 से इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (Indian People's Theatre Association) के साथ भी काम किया। "तमस" अपने आप में एक अद्वितीय रचना है क्योंकि इसका दो बार अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया है। 1981 में जय रतन द्वारा इसका पहला अनुवाद किया गया था। बाद में साहनी को एहसास हुआ कि इस अनुवाद में कुछ समस्याएँ थीं और उन्होंने अपना खुद का अनुवाद किया, जो 2001 में प्रकाशित हुआ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/6f6kek7m
https://tinyurl.com/dhrn27v5
https://tinyurl.com/mry7wzmr
चित्र संदर्भ
1. ‘निर्मला’, ‘राग दरबारी’ और ‘तमस’ पुस्तकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Jain Book Agency, wikimedia, flipkart)
2. निर्मला पुस्तक के मुख्य पृष्ठ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक भारतीय परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
4. राग दरबारी पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अखाड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. तमस किताब को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
7. दंगों के बाद के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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