गॉथिक कला रोमनेस्क (Romanesque) कला से 12वीं शताब्दी में विकसित हुई और 16वीं शताब्दी के अंत तक चली। गॉथिक (Gothic) शब्द पुनर्जागरण काल के इतालवी लेखकों द्वारा गढ़ा गया था जिन्होंने रोमन साम्राज्य और इसकी शास्त्रीय संस्कृति को नष्ट करने वाले जंगली गोथिक जनजातियों को मध्ययुगीन वास्तुकला के आविष्कार का श्रेय दिया था और यह कहा था कि यह कला गैर शास्त्रीय और कुरूप है। इस शब्द ने 19वीं शताब्दी तक अपने अपमानजनक पलटाव को बरकरार रखा और पुनः इस गॉथिक वास्तुकला का एक सकारात्मक आलोचनात्मक पुनर्मूल्यांकन हुआ जिसमें इस धारणा को गलत ठहराया गया।
भारत में गोथिक कला को यूरोपीयों द्वारा लाया गया था। उन्होंने यहाँ पर इस कला का प्रचार व प्रसार किया। भारत में यह कला यहाँ की मूल कला से मिश्रित हुयी और इंडो सारसैनिक (Indo Saracenic) कला के रूप में विकसित हुयी। एक अन्य कला का भी प्रादुर्भाव यहाँ पर हुआ जिसे इंडो-ब्रिटिश कला के नाम से जाना जाता है, इस कला का प्रयोग कई गुम्बदों व छतरियों में किया गया है।
लखनऊ में अंग्रेजों का राज लम्बे समय तक रहा तथा यहाँ पर कई इमारतें विक्टोरियन गोथिक, सारसैनिक व पैलेडियन (Palladian) कला में बनायी गयी हैं। विक्टोरियन गोथिक में लखनऊ का क्राइस्ट गिरजाघर प्रमुखता से आता है। यहाँ का ला मार्टिनिएर कॉलेज (La Martiniere College) पैलेडियन कला का अद्भुत नमूना है। पैलेडियन कला का नाम इटली के एंड्रिया पैलाडियो के कार्यों के आधार पर रखा गया है।
इसकी कुछ विशेषताओं में सजावटी और अलंकृत छत, दीवारों पर चित्रकला, आग जलाने का स्थान आदि होता है। मध्य में एक ऊँची मीनार इस शैली की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इस शैली में खिड़कियाँ अर्ध गोलाई वाली होती हैं। इस प्रकार से भारत की बहुत कम इमारतें इस शैली की हैं या यूँ कहें न के बराबर इमारतें पैलेडियन शैली की हैं। यह तथ्य लखनऊ के वास्तु को भारत की वास्तुकला से भिन्न बनाता है।
1. मार्ग
2. http://history-world.org/gothic_art_and_architecture.htm
3. गोथिक आर्किटेक्चर पॉल फ्रैंकल, पॉल क्रोस्स्ली
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.