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आइए आज के इस लेख के माध्यम से, चौदहवीं शताब्दी में रचित फ़ारसी साहित्य की उत्कृष्ट कृति – “तूतीनामा” की कहानी के बारे में पढ़ते हैं। मुगल शासक अकबर इस प्राचीन कृति से काफ़ी प्रेरित हुए थे, और इसीलिए उन्होंने अपने दरबार के कलाकारों को ‘तोते की कहानियां’ अर्थात, तूतीनामा चित्रित करने के लिए प्रेरित किया। जबकि, तूतीनामा की एक पुरानी सचित्र पांडुलिपि हमारे निकटवर्ती शहर रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में भी संग्रहित की गई है। अतः यह भी देखें कि, अन्य कौन से स्थान हैं, जहां तूतीनामा की पांडुलिपि मौजूद है।
चौदहवीं शताब्दी की एक साहित्यिक कृति – तूतीनामा, जिसका शाब्दिक अर्थ “तोते की कहानियां” है, सूफ़ी लेखक – ज़िया अल-दीन नख़शाबी की बावन कहानियों की एक श्रृंखला है। ये कहानियां ‘मायमुन’ नामक एक आदमी के पालतू तोते द्वारा, बावन रातों के दौरान मायमुन की पत्नी – ‘खुजस्ता’ को सुनाई जाती हैं। बताया जाता है कि, खुजस्ता का ध्यान कहानियों के माध्यम से भटकाया जाता था, ताकि उसे अपने प्रेमी से मिलने के लिए जाने से रोका जा सके।
इस कहानी का सबसे प्रसिद्ध संस्करण सोलहवीं शताब्दी की एक भव्य सचित्र पांडुलिपि है, जो सम्राट अकबर के संरक्षण में बनाई गई थी। और संभवतः मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समद द्वारा इसकी देखरेख की गई थी। यह पांडुलिपि वर्तमान में क्लीवलैंड म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (The Cleveland Museum of Art) में संग्रहित की गई है। आज इसे मुगल लघु चित्रकला के कुछ शुरुआती उदाहरणों के रूप में देखा जाता है। इस पांडुलिपि को उस समय बनाया गया था, जब यह शैली आकार ही ले रही थी। इस पांडुलिपि में एक स्थापित शैली की स्थिरता की विशेषता नहीं है। साथ ही, बाद में विद्वानों ने पाया कि, इसके लगभग दो-तिहाई चित्रण, दिल्ली सल्तनत युग के ‘चंदायण’ के समान शैली में बनाई गई, अधूरी छवियों पर चित्रित किए गए थे, जो कई कलाकारों का सुझाव देते हैं। ऐसी पांडुलिपियों पर काम करने वाले पहले से ही पुरानी पांडुलिपि चित्रकला परंपराओं में प्रशिक्षित हो सकते हैं। जिस रणनीतिक तरीके से(मुख्य रूप से चेहरे के हावभाव और वेशभूषा में) पहले संस्करण को चित्रित किया गया था, वह बाद में मुगल शैली की विशेषता बन गई। यह दर्शाता है कि, विद्वानों ने जिसे पहले एक लगभग समाप्त हो चुकी क्षणभंगुर चित्रण शैली के रूप में देखा था, वह वास्तव में परिष्कृत शैली है।
तूतीनामा चित्रों की विशिष्ट रंग योजना में पृष्ठभूमि को गहरे ठोस लाल, कैनरी पीले(canary yellow) या गुलाबी रंग और (मोटे) अल्ट्रामरीन(ultramarine) के हल्के रंगत में प्रस्तुत किया गया है। यह बाद में आए ‘हमज़ानामा’ चित्रों से स्पष्ट रूप से अलग था। तूतीनामा में विस्तृत छवियों के साथ ‘नास्तालिक लिपि’ में लिखा गया पाठ भी है। पतले एवं हल्के कागज पर चित्रित इस पांडुलिपि के पन्नों को संभवतः उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान, संग्रह का हिस्सा बनने से पहले, फिर से बांधा गया था।
चित्रकला की तोते के चित्रण वाली यह शैली बारहवीं शताब्दी के बाद की शताब्दियों के फ़ारसी कलाकारों के बीच भी लोकप्रिय थी। इस प्राचीन कला से प्रेरित होकर, मुगल शासक अकबर (1542-1605) ने अपने दरबार के कलाकारों को तोते की कहानियों को चित्रित करने के लिए प्रेरित किया। और तूतीनामा कृति की पहली चित्रित शैली इसका परिणाम थी।
चित्रों की इस श्रृंखला में, एक तोता अपनी मालिक महिला को कहानियां सुनाता है। वह अकेली होती है, क्योंकि, उसका पति लंबी व्यावसायिक यात्रा पर जाता है। मालकिन दिन-ब-दिन और रात-दर-रात तोते से कहानियां सुनती है। माना जाता है कि, इसमें 52 कहानियां हैं। हर कहानी के चित्रण के लिए यहां पेंटिंग्स बनाई गई हैं। इस प्रकार, चित्रों में तोते को कहानियां सुनाते हुए और महिला को कहानियां सुनते हुए दर्शाया गया है।
चित्रों को अधिक यथार्थवादी बनाने के लिए, कलाकारों ने चित्रों के फ्रेम में कई अन्य वस्तुओं को भी जोड़ा है। ये पेंटिंग्स आकार में छोटी थीं। हालांकि, तोते द्वारा बताई गई श्रृंखला के विषय व पात्र मुख्य रूप से फ़ारसी लघुचित्रों में बताई गई कहानियों के समान ही थे। लेकिन, तूतीनामा पेंटिंग्स ने चित्रों में सुलेख जोड़ दिया था। चित्रकला की यह चित्रण शैली, उन कलाकारों के बीच प्रचलित थी, जिन्होंने संस्कृत ग्रंथों को चित्रित किया था। और तो और, अकबर ने संस्कृत पुस्तकों के चित्रण की प्रथा को स्वीकार भी किया था।
अकबर के दरबार में मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद नामक दो फ़ारसी कलाकार तूतीनामा परियोजना के प्रमुख थे। अकबर ने उन्हें उन चित्रों में भारतीय परिवेश को चित्रित करने का भी काम सौंपा था। जबकि, वे दोनों कलाकार मूल रूप से फ़ारसी शैली की चित्रकला से संबंधित थे; उन्हें अकबर के पिता सम्राट हुमायूं द्वारा भारत में कला के प्रचार के लिए लाया गया था। तब, ऐसी ही परियोजनाओं में उन्हें अकबर द्वारा तूतीनामा मिला। और तब, इन कलाकारों ने सम्राटों की पसंद का अनुसरण किया।
अकबर ने कलाकारों से चित्रों का विषय बदलने को भी कहा था। उन्होंने चित्रों की विषय-वस्तु को भारतीय परिवेश के अनुरूप बनाने पर जोर दिया। अतः कलाकारों ने प्राचीन भारतीय चित्रकला की शैली में चित्रकारी की, जिसमें आस-पास के क्षेत्रों की साधारण वस्तुओं को दर्शाया गया। इस शैली में प्रमुख परिवर्तन सुलेख के साथ-साथ, ग्रंथों की घटनाओं के चित्रों के साथ पुस्तकों को चित्रित करने की संस्कृत शैली का पालन करना था। तब संस्कृत श्लोक चित्रित और सचित्र घटनाओं का वर्णन करने के लिए लिखे गए थे।
तूतीनामा की अधिकांश पांडुलिपि जो मूल रूप से अकबर के लिए चित्रित की गई थी, अब क्लीवलैंड म्यूजियम ऑफ आर्ट में मौजूद है। इस शैली ने सम्राट अकबर के कला के साथ प्रेम की शुरुआत को भी चिह्नित किया। उन्होंने कई सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी
अनेक पेंटिंग बनवाई ।
और, क्या आप जानते हैं कि, तूतीनामा की पुरानी सचित्र पांडुलिपियों में से एक पांडुलिपि रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में भी संग्रहित की गई है। इस पांडुलिपि का दूसरा संस्करण अब कई संग्रहालयों में मौजूद है। लेकिन, इसका एक बड़ा हिस्सा डबलिन(Dublin) में चेस्टर बीट्टी लाइब्रेरी(Chester Beatty Library) में पाया जा सकता है।
तूतीनामा ने बाद के मुगल लघु चित्रकला विभागों, जैसे अकबरनामा (अकबर की पुस्तक), हमजानामा (अमीर हमजा के कारनामे), और जहांगीरनामा (तुज़क-ए-जहांगीरी: मुगल सम्राट जहांगीर के संस्मरण) के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3hrp8hhm
https://tinyurl.com/2p9hh7wj
https://tinyurl.com/2h25a5vw
चित्र संदर्भ
1. 'तूतीनामा' के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. तूतीनामा (1556-1565) पेंटिंग के एक दृश्य में खोजस्ता को संबोधित करते हुए तोते को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. तूतीनामा में अकबर के दरबार के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. तूतीनामा के एक अन्य पृष्ठ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तूतीनामा में तोते की माँ अपने बच्चों को खेलने के खतरे के बारे में आगाह करती है! इस दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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