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जैसा कि आप सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के उत्तर पूर्वी हिस्से को 'अवध' कहा जाता है, और हमारा शहर लखनऊ भी अवध क्षेत्र में आता है। इस हिसाब से लखनऊ और अवधी व्यंजनों का बेहद गहरा रिश्ता है। अवधी व्यंजन भोजन, शिष्टाचार, परिष्कार और विलासिता के रूप में संपूर्णता का अनुभव प्रदान करते हैं। अधिकांश अवधी व्यंजन अवध के नवाबों की शाही रसोईयों से बाहर आए हैं जिन्हें विशेषज्ञ रसोइयों द्वारा तैयार किया जाता था और अब वे लखनऊ की पहचान बन गए हैं। ये व्यंजन नवाबी जीवन शैली में शामिल परिष्कृतता, नज़ाकत और सुंदरता को दर्शाते हैं। अवधी व्यंजनों को पकाने के लिए मुख्य रूप से भोजन पकाने की “दम शैली” का उपयोग किया जाता है। लौंग, दालचीनी, इलायची और केसर जैसे समृद्ध मसालों के उपयोग से अवधी व्यंजन अपनी विशिष्ट सुगंध और स्वाद के लिए जाने जाते हैं। आइए, आज अवधी व्यंजनों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
18वीं शताब्दी में अवध के नवाबों के संरक्षण में अवधी व्यंजनों ने अपना विशिष्ट स्वाद प्राप्त किया। क्योंकि नवाब स्वादिष्ट एवं गुणवत्तापूर्ण भोजन के पारखी थे और दावतें आयोजित करने के शौकीन थे। लखनऊ के पहले नवाब बुरहान- उल-मुल्क सआदत खान फ़ारसी मूल के थे। इसलिए प्रारंभ से ही फ़ारसी सांस्कृतिक प्रथाएँ नवाबों के दरबारी संस्कृति का आंतरिक हिस्सा थीं। नवाबों की शाही रसोई में जो व्यंजन तैयार किए जाते थे, वे मुगल, फ़ारसी और स्थानीय प्रभावों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण थे। अवधी व्यंजनों में मसालों का जो सावधानी पूर्वक मिश्रण किया जाता था, वह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। कई बार अवधी भोजन को मुगलई भोजन समझ लिया जाता है। यद्यपि यह सच है कि भोजन पकाने की अवधी शैली काफी हद तक मुगल व्यंजनों से ली गई है, लेकिन दोनों के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं। अवधी भोजन और मुगलई भोजन के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि मुगलई भोजन को मसालों, सूखे मेवों, दूध और क्रीम के भरपूर उपयोग के लिए जाना जाता है, जबकि अवधी व्यंजनों को अपने सूक्ष्म और नाज़ुक स्वाद और मसालों के अद्भुत मिश्रण के लिए जाना जाता है।
भोजन पकाने की 'दम्पुख्त शैली' को अवधी भोजन पकाने की पहचान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि दम्पुख्त शैली की उत्पत्ति फारस और मध्य एशिया में भोजन पकाने की तकनीक के साथ हुई है। इस विधि में आम तौर पर एक भारी तले वाले बर्तन में ढक्कन बंद करके ऊपर से ढक्कन को आटे से सील करके भोजन पकाया जाता है और पकाने के लिए कई घंटों तक, कभी-कभी रात भर के लिए भी धीमी आंच पर छोड़ दिया जाता है। दम शब्द का अर्थ है ‘सांस लेना’ और पुख्त का अर्थ है ‘पकाना’। इस प्रकार, दम्पुख्त तकनीक का मुख्य उद्देश्य भोजन को मसाले की सुगंध में पकने देना और इनके स्वाद से गहराई से जुड़ने देना है। इसके अलावा अवधी व्यंजनों को पकाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक अनूठी तकनीक 'गिलेहिकमत' है। इस तकनीक में, मांस या सब्जी को मेवे और मसालों से भरकर, केले के पत्ते में लपेटकर, मिट्टी या मुल्तानी मिट्टी की परत से ढक दिया जाता है और जमीन में गाड़ दिया जाता है। ऊपर की सतह पर धीमी सुलगती आंच रख दी जाती है। फिर भोजन को कई घंटों तक पकाया जाता है। इसके अलावा, अवधी व्यंजनों को पकाने के लिए ‘धुंगर’ जैसी अन्य तकनीकों का भी उपयोग किया जाता है, जिसमें व्यंजनों में कोयले के धुएं की खुशबू भरी जाती है। अवधी व्यंजनों में मसालों की प्रमुख भूमिका है। अवधी रसोई में दालचीनी, काली मिर्च, लौंग, इलायची, तेज पत्ता, जीरा, जावित्री और जायफल जैसे सुगंधित देसी मसालों का भरपूर उपयोग किया जाता है। अवधी व्यंजनों में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के व्यंजन शामिल होते हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध अवधी व्यंजनों में कबाब, बिरयानी, कोरमा और निहारी शामिल हैं। सबसे लोकप्रिय मांसाहारी कबाबों में काकोरी, शमी, गलावटी, बोटिया और सीख का नाम लिया जा सकता है। जबकि शाकाहारी व्यंजनों में कटहल, अरबी, मटर और राजमा गलावटी कबाब शामिल हैं। कबाब के साथ रोटियाँ भी शामिल होती हैं, जिनमें मुख्य रूप से रुमाली, तंदूरी, नान, कुल्चा, शीरमाल और बाकरखानी शामिल हैं।
नवाबों के समय में, शाही रसोई में भोजन तैयार करने के लिए कार्य बल का एक पूरा विभाग होता था। उदाहरण के लिए, बावर्ची नियमित आधार पर पूरे घर के लिए बड़ी मात्रा में भोजन पकाते थे। रकाबदार वे रसोइये थे, जो चुनिंदा स्वादिष्ट व्यंजन पकाने में माहिर होते थे और शाही मेनू को रोचक और अद्यतन बनाए रखने के लिए नए आविष्कार करने में भी माहिर थे। जबकि विभिन्न प्रकार की रोटियां बनाने का कार्य नानफस द्वारा किया जाता था।
एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व जो अवधी व्यंजनों और नवाबों की पाक कला को एक नई परिभाषा देता है, वह है “दस्तरख़्वान” की अवधारणा। दस्तरख़्वान का अर्थ विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को औपचारिक रूप से परोसना है। दस्तरख़्वान में कोरमा, सालन, क्यूमा, कबाब, पुलाव, विभिन्न प्रकार की रोटियाँ, फ़िरनी एवं खीर जैसी मिठाइयाँ, इत्यादि जैसे व्यंजनों की एक विस्तृत श्रृंखला परोसी जाती है। परंपरा तो यह भी है कि इन सभी व्यंजनों को नज़ाकत और तहज़ीब के साथ एक विशेष क्रम में ही खाया जाना चाहिए। आधुनिक समय में दस्तरख़्वान शब्द का उपयोग उस मेज़पोश के लिए किया जाने लगा है जो भोजन परोसने के लिए बिछाया जाता है। अवधी भोजन में किसी व्यंजन को प्रस्तुत करने का तरीका भी उसके स्वाद जितना ही महत्वपूर्ण है। आसपास के वातावरण में इत्र का उपयोग भोजन की सुगंध बढ़ाने के लिए किया जाता है। पहले के समय में अवध क्षेत्र में तीन पीढ़ियों तक एक साथ बैठकर दस्तरख़्वान करने का रिवाज हुआ करता था। हमारे शहर लखनऊ के हजरतगंज में 'मुगलों का दस्तरख़्वान' नाम का रेस्तरां एक ऐसा स्थान है जहां आप अवध के मुगलई व्यंजनों का वास्तविक स्वाद चख सकते हैं। स्वादिष्ट गलावत कबाब और मटन रोगन जोश से लेकर चिकन बिरयानी और शामी कबाब तक, यह रेस्तरां मांसाहारी लोगों के लिए जन्नत है।
वास्तव में अवधी व्यंजनों को पकाने की पाक कला को अभ्यास, सुधार तथा नवीनता की ओर झुकाव के साथ ही प्राप्त किया जा सकता है। निश्चित रूप से अवधी व्यंजनों को पकाना अत्यंत जटिल है लेकिन आज भी हमारे लखनऊ में अवधी व्यंजनों का वास्तविक स्वाद चखा जा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/22txcs48
https://tinyurl.com/3v2w77pp
https://tinyurl.com/4sjrvf2m
https://tinyurl.com/y775wvus
चित्र संदर्भ
1. भारतीय व्यंजनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अवधि चिकन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. समूह में बैठकर भोजन करते मुस्लिम परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. दमपुख्त को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लज़ीज़ व्यंजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. बिरयानी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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