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भारत एक समृद्ध इतिहास वाला देश है, जहां के विभिन्न शासकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इन शासकों ने अपने शासनकाल के दौरान हमारे लखनऊ में भी कई ऐतिहासिक स्मारकों का निर्माण कराया। आज हम इन्हीं आकर्षक स्मारकों में से एक ‘कॉन्स्टेंटिया हाउस (Constantia House)’ के बारे में जानेंगे।
अपने शाही इतिहास और स्वादिष्ट मुगलई भोजन के लिए प्रसिद्ध लखनऊ शहर में "कॉन्स्टेंटिया हाउस' नामक एक ऐतिहासिक इमारत भी मौजूद है। यह इमारत भारत के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक, 'ला मार्टिनियर कॉलेज ('la Martiniere College)' का हिस्सा है। कॉन्स्टेंटिया हाउस की कहानी, लखनऊ की विरासत और उसके औपनिवेशिक इतिहास से गहराई से जुड़ी हुई है।
कॉन्स्टेंटिया, को मार्टिन साहब की कोठी के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर के मार्टिन पुरवा इलाके में बंदरिया बाग के ठीक सामने स्थापित एक उल्लेखनीय यूरोपीय शैली की इमारत है। कॉन्स्टेंटिया हाउस का निर्माण 18वीं शताब्दी में एक फ्रांसीसी सैनिक मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन (Major General Claude Martin ) द्वारा किया गया था, जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। 1800 में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपना पैसा कोलकाता, फ्रांस के ल्योन शहर और विशेष रूप से लखनऊ में, जहां कॉन्स्टेंटिया हाउस है में शिक्षण केंद्र बनाने के लिए दान कर दिया। उनकी इच्छा के बाद 1845 में कॉन्स्टेंटिया हाउस की इस बड़ी संपत्ति पर ला मार्टिनियर कॉलेज शुरू किया गया था। इसी परिसर में मौजूद कॉन्स्टेंटिया एक भव्य महल की भांति प्रतीत होता है, जिसे उनकी अंतिम वास्तुशिल्प कृति माना जाता है। कॉन्स्टेंटिया की निर्माण शैली अनूठी थी और लोग इस बात पर सहमत नहीं हो पा रहे थे कि इसे क्या कहा जाए?
कुछ ने कहा कि यह इंडो-फ़्रेंच बारोक (Indo-French Baroque) है, अन्य ने इसे फ़ारसी महल या इतालवी अलंकृत कहा। कॉन्स्टेंटिया का अग्रभाग विभिन्न मूर्तियों से सुसज्जित है, जिनमें दो बड़े शेर भी शामिल हैं, जिनके मुंह में कभी लाल लालटेन चमकती थी। इसकी आन्तरिक साज-सज्जा भी उतनी ही भव्य है। मार्टिन ने इसे अरबी, बास -रिलीफ (Bas-Reliefs) और असाधारण प्लास्टर से सजाया था। शुरुआत में ऐसी अफवाहें चली थीं कि वह जोशिया वेजवुड (Josiah Wedgewood) से प्लास्टर-ऑफ-पेरिस (Plaster-Of-Paris) की पट्टिकाएं लाए हैं, लेकिन बाद में पता चला कि वे स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई गई थीं।
कॉन्स्टेंटिया हाउस की वास्तुकला को गॉथिक टावर (Gothic Tower), इतालवी तत्व और मुगल शैली में डिजाइन किया गया है। इसने हमेशा से ही इतिहासकारों और पर्यटकों को आकर्षित किया है। यह इमारत 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को लखनऊ की घेराबंदी से बचाने के लिए भी जानी जाती है, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। मेजर-जनरल क्लाउड मार्टिन, अनेक प्रतिभाओं के धनी और साहसिक कार्यों में अग्रणी रहते थे। वह बुनाई की समृद्ध विरासत वाले दो शहरों, फ्रांस के ल्योन और लखनऊ के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी माने जाते हैं।
भाड़े के सैनिकों (Mercenaries) के परिवार से संबंध रखने के बावजूद लोकप्रिय होने वाली हस्तियों में क्लाउड मार्टिन (Claude Martin) का नाम भी अक्सर उभरकर आता है। दरअसल मेजर-जनरल क्लाउड मार्टिन (5 जनवरी 1735 - 13 सितंबर 1800) फ्रांसीसी सेना में एक अधिकारी थे, जिन्होंने पहले फ्रांसीसी और बाद में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) में अपनी सेवा प्रदान की।
मार्टिन, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल सेना में मेजर-जनरल के पद तक पहुंचे। मार्टिन का जन्म फ्रांस के ल्योन शहर (Lyon, France) में एक विनम्र पृष्ठभूमि में हुआ था, जिन्होंने स्वयं अपने बल भूते पे विश्व पटल पर अपनी पहचान स्थापोत की । उन्होंने अपने लेखन, इमारतों और मरणोपरांत स्थापित शैक्षणिक संस्थानों के रूप में एक पर्याप्त स्थायी विरासत छोड़ी। लखनऊ वासी रहे मार्टिन के नाम पर, दो शिक्षण संस्थान हैं।इसके आलावा दो कलकत्ता में और छह शिक्षण संस्थान ल्योन में लेकर उनके कुल मिलाकर दस शिक्षण संस्थान हैं। भारत में एक छोटे से गांव का नाम भी उन्हीं के नाम पर “मार्टिन पुरवा” रखा गया था। क्लाउड मार्टिन का जन्म 5 जनवरी 1735 को रु डे ला पाल्मे, ल्योंस , फ्रांस (Rue De La Palme, Lyons, France) में हुआ था। वह एक ताबूत बनाने वाले व्यक्ति फ्लेरी मार्टिन (Fleury Martin) (1708-1755) और कसाई की बेटी ऐनी वैजिनेय (Anne Vagine) (1702-1735) के पुत्र थे। 1751 में 16 साल की उम्र में मार्टिन ने फ्रांसीसी कंपनी डेस इंडेस (Des Indes) के साथ काम किया। बाद में उन्हें भारत में तैनात किया गया, जहां उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरोध में, कर्नाटक युद्धों में कमांडर और गवर्नर जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स और जनरल थॉमस आर्थर लैली (Joseph François Duplex And General Thomas Arthur Lally) के अधीन काम किया था।
जनरल क्लाउड मार्टिन ने भारत में एक आलीशान घर बनाने के इरादे से 1785 में कॉन्स्टेंटिया हाउस का निर्माण शुरू किया था। दुर्भाग्य से, घर में रहने से पहले ही 1800 में उनकी मृत्यु हो गई। इसका निर्माण कार्य उनकी मृत्यु के दो साल बाद पूरा हुआ। इमारत का नाम 'कॉन्स्टेंटिया' रखा गया, जो मार्टिन के जीवन सिद्धांत 'लेबोर एट कॉन्स्टेंटिया ('labor Et Constantia)' को दर्शाता है, जिसका अर्थ 'ऊर्जा और दृढ़ता' होता है। अपनी मृत्यु से पहले, मार्टिन ने अपनी वसीयत में व्यक्त किया कि वह चाहते थे कि उनकी संपत्ति का उपयोग शिक्षा के लिए किया जाए। परिणामस्वरूप कॉन्स्टेंटिया, कॉलेज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। इस राजसी इमारत की प्रभावशाली वास्तुकला आज हमें लखनऊ के राजसी अतीत की याद दिलाती है।
कई जानकार मानते हैं कि क्लाउड मार्टिन न केवल एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे, बल्कि वह मरने के बाद भी अपनी निजी संपत्ति को सुरक्षित रखना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि उसके परिवार या दोस्तों को उसकी चीज़ें या संपत्ति विरासत में मिले। अपनी वसीयत में, उन्होंने लिखा कि वह कॉन्स्टेंटिया हाउस के नीचे दफन होना चाहते थे, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि उनके मरने के बाद इमारत को बेकदरी से छोड़ा जा सकता है। इसलिए, क्लाउड मार्टिन को कॉन्स्टेंटिया हाउस के एक विशेष तहखाने में दफनाया गया था।
इस प्रकार कॉन्स्टेंटिया हाउस एक मकबरा और कॉलेज दोनों बन गया। इसे भारत में सबसे बड़ा यूरोपीय अंत्येष्टि स्मारक माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार और कवि विलियम डेलरिम्पल ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा निर्मित इस भव्य ईमारत को विशाल ताज महल का उपयुक्त उत्तर भी बताया है।
इस ईमारत का रखरखाव भी ला मार्टिनियर कॉलेज के संचालकों द्वारा किया जाता है। मुख्य इमारत बेहद प्रभावशाली है, जिसका बेज रंग (हलके भूरे रंग का, मटियाला) पुराने अवध साम्राज्य की कई इमारतों के समान है। इसे अपनी गॉथिक औपनिवेशिक वास्तुकला (Gothic Colonial Architecture) के आधार पर एक उल्लेखनीय इमारत माना जाता है, जिसमें छत पर ग्रीक मूर्तियाँ, ऊँचे खंभे और मेहराबदार खिड़कियाँ शामिल हैं।
आप चौड़ी सीढ़ियाँ चढ़कर कॉन्स्टेंटिया के पूर्वी छत तक पहुँच सकते हैं। वहां, आपको टीपू सुल्तान के खिलाफ सेरिंगपट्टम की घेराबंदी में लॉर्ड कॉर्नवालिस (Lord Cornwallis) द्वारा इस्तेमाल की गई एक बड़ी तोप देखने को मिलेगी। तोप के पीछे एक बड़ी घंटी है जिस पर मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन का नाम लिखा है।
इमारत में चैपल (Chapel) को बड़े दर्पणों, संगमरमर की मेजों और आयातित चित्रों से खूबसूरती से सजाया गया है। इमारत की छत पर बाइबल की कहानियों से प्रेरित होकर प्लास्टर से खूबसूरत काम किया है। चैपल में एक पुराना पियानो (Piano) भी है, जिसे पाइप ऑर्गन (Pipe Organ) कहा जाता है। इसे 1895 में कॉलेज की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए बनाया गया था।
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आप शीर्ष मंजिलों और कॉन्स्टेंटिया के उच्चतम बिंदु क्राउन तक पहुँच जाएँगे। वही सीढ़ियाँ तहखाने की ओर जाती हैं, जहाँ इमारत के संस्थापक, मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन को दफनाया गया है। 1800 में उनकी मृत्यु हो गई और उनकी इच्छा के अनुसार उनका शव लेप कर कॉन्स्टेंटिया में एक कब्र में रख दिया गया। यह कॉलेज इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि इसे 1857 के युद्ध में अपनी भूमिका के लिए रॉयल बैटल ऑनर्स (Royal Battle Honors) प्राप्त हुआ था। इस ऐतिहासिक इमारत को देखना अपने आप में ही एक शानदार अनुभव है। यह न केवल एक जीवंत स्मारक नहीं है, बल्कि नवाबों के शहर लखनऊ के सबसे अच्छे शैक्षणिक संस्थानों में से एक भी है। शहर में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसे अवश्य देखना चाहिए।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन और उनके भव्य सपने कॉन्स्टेंटिया हाउस के बारे में और अधिक रोचक बातें जान सकते हैं।
Https://Prarang.In/Lucknow/Posts/7368/The-Interesting-History-Of-Claude-Martin-A-French-Mercenary-From-Lucknow
Https://Prarang.In/Rampur/Posts/2162/Raza-Library-Interior-Art-Similar-To-La-Martiniere-Lucknow
संदर्भ
https://shorter.me/PHFTn
https://shorter.me/ULjyF
https://shorter.me/84E9X
https://shorter.me/mlq9f
https://shorter.me/e3rSW
चित्र संदर्भ
1. ला मार्टिनियर कॉलेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सामने से देखने पर ला मार्टिनियर कॉलेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ला मार्टिनियर कॉलेज के सुंदर दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1862 में ली गई ला मार्टिनियर कॉलेज की तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. क्लाउड मार्टिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रात में कॉन्स्टेंटिया के पूर्वी दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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